सनातन की ८६ वीं संत पू. (श्रीमती) शालिनी माईणकरजी (आयु ९२ वर्ष) का देहत्याग

नम्रता, निरपेक्ष प्रीति आदि दैवी गुणों से युक्त और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति अनन्य भाव रखनेवालीं तथा वर्तमान में सनातन के रामनाथी आश्रम में निवास कर रहीं सनातन की ८६ वीं संत पू. शालिनी माईणकरजी (आयु ९२ वर्ष) ने ११ मई को रात १.३८ पर देहत्याग किया ।

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में साधकों की समस्याओं का समाधान करने की विलक्षण क्षमता तथा साधकों को उनके प्रति लगनेवाला अपनापन

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से हुई एक भेंट में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के संदर्भ में बोलते हुए वे मुझसे कहने लगे, ‘‘उनका कितना अच्छा चल रहा है न ! उनके जैसा हमारे पास और कौन हैं ?’’ उनके ये उद्गार सुनने पर उनके प्रति मेरे ध्यान में आए सूत्र यहां दिए गए हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की एकरूपता के संदर्भ में साधकों को हुई अनुभूतियां

सनातन के साधकों को जैसी अनुभूति परात्पर गुरु डॉक्टरजी के संदर्भ में होती है, वैसी ही अनुभूति उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचितशक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के संदर्भ में भी होती हैं । इससे ‘गुरुतत्त्व एक ही है’, परात्पर गुरुदेवजी की इस सीख की प्रतीति होती है ।

साधना की तीव्र लगन और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रख असाध्य रोग में भी भावपूर्ण साधना कर ‘सनातन के १०७ वें (समष्टि) संतपद’ पर आरूढ हुए अयोध्या के पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) !

रामनाथी (गोवा) – यहां के सनातन आश्रम में निवास करनेवाले डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) का दीर्घकालीन रोग के कारण ११ मई २०२१ की संध्या को निधन हुआ । वे मूलत: अयोध्या (उत्तर प्रदेश) निवासी थे ।

राजस्थान के स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी का देहत्याग !

ओजस्वी वक्ता, धर्मध्वजा संवाहक, गीतामर्मज्ञ, लेखक, आध्यात्मिक गुरु एवं अधिष्ठाता श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर, शिवमठ बीकानेर स्थित शिवबाडी मठ के स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी (आयु ७८ वर्ष) ने १८ मई २०२१ को बीकानेर में देहत्याग किया ।

‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप द्वारा निर्गुण स्थिति प्राप्त करने में सहायता होना

मन जब तक कार्यरत है तब तक मनोलय नहीं होता। मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि कितने भी प्रयास किए, तो भी मन कार्यरत रहता है । परंतु ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप अखंड करने पर मन को अन्य कुछ स्मरण नहीं होता ।

आपको परम पूज्‍य कहूं या भगवान । परम पूज्‍य हैं एक भगवान ॥

‘विगत ३० वर्षों से परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ‘गुरुकृपायोग’ नामक साधनामार्ग के माध्‍यम से मुझसे साधना करवा रहे हैं । उनकी कृपा से मेरी शारीरिक, मानसिक एवं आध्‍यात्मिक स्‍तर की समस्‍याएं दूर होकर मैं आनंदित हूं ।

‘यज्ञसंस्‍कृति’ को पुनर्जीवित करनेवाले मोक्षगुरु परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘इहलोक में अर्थात पृथ्‍वी पर धर्मसंस्‍थापना करने हेतु ही, हे श्रीमन्‍नारायण, आपने जन्‍म लिया ।

‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप द्वारा निर्गुण स्‍थिति प्राप्‍त करने में सहायता होना

‘मन जब तक कार्यरत है तब तक मनोलय नहीं होता । मन निर्विचार करने हेतु स्‍वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, भावजागृति इत्‍यादि कितने भी प्रयास किए, तो भी मन कार्यरत रहता है । उसी प्रकार किसी देवता का नामजप अखंड किया, तो भी मन कार्यरत रहता है और मन में देवता की स्‍मृति, भाव इत्‍यादि आते हैं ।

स्‍वभावदोष और अहं निर्मूलन का ‘ऑनलाइन’ सत्‍संग लेनेवाली ६१ टक्‍के आध्‍यात्मिक स्‍तर की कु. मधुलिका शर्मा में हुए परिवर्तन !

चैत्र शुक्‍ल पक्ष चतुर्दशी (२६.४.२०२१) को झारखंड की साधिका कु. मधुलिका शर्मा का तिथिनुसार जन्‍मदिन है । इसी दिन उनके द्वारा लिए जा रहे सत्‍संग को भी एक वर्ष पूर्ण हो रहा है । परात्‍पर गुरु डॉ. आठवले जी की कृपा से मुझे पिछले दो वर्षों से मधुलिका दीदी के साथ सेवा का अवसर मिला ।