भगवान के प्रति पूर्ण शरणागत एवं भोलेभाव में रहनेवाले रामनगर (बेलगांव) के सनातन के ५६ वें संत पू. शंकर गुंजेकर !

महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय की ६८ प्रतिशत स्‍तरप्राप्‍त साधिका कु. प्रियांका लोटलीकर द्वारा रामनगर (बेलगांव) के सनातन के संत पू. शंकर गुंजेकर के साथ ‘साधना का प्रवास’ विषय में हुआ संवाद यहां दिया है ! आज माघ शुक्‍ल पक्ष अष्‍टमी को तिथि के अनुसार पू. गुंजेकरमामा का जन्‍मदिन है ! इस उपलक्ष्य में यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं ।
(भाग १)

वृद्धावस्‍था की पूर्वसिद्धता के रूप में अभी से स्‍वयं को मनोलय की प्रकृति(आदत)लगाएं और परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी की प्रेरणा से स्‍थापित आध्‍यात्मिक संस्‍था निर्मित करनेवाले ‘साधक-वृद्धाश्रमों’ का महत्त्व समझिए !

‘वृद्धावस्‍था में स्‍वयं में विशेष कुछ करने की शारीरिक क्षमता न रहने से छोटी छोटी बातों के लिए भी परिजनों पर निर्भर रहना पडता है । कभी कभी कुछ वस्‍तुएं क्रय करने के लिए पैसे भी परिजनों से मांगने पडते हैं । परिजन जो भी खाने-पीने देते हैं, उसी में संतुष्‍ट रहना पडता है ।

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ अनुभव हुए कुछ भावक्षण !

वर्ष 2004 में, जब मैं भारतीय नौसेना में कार्यरत था, तब मेरे मन में ‘परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के दर्शन करना चाहिए’, ऐसा विचार आया । उस समय मैं असोगा, तालुका खानापुर में घर पर था । हमने (मैं और मेरा मित्र श्री. राजू सुतार) सुखसागर जाकर वहां उनके दर्शन कर उनके चरणों में नतमस्‍तक होने का विचार किया ।

साधना के रूप में अन्‍य लोगों की चूक कब बतानी चाहिए ? इस सूत्र का अभ्‍यास करते समय श्री. यशवंत कनगलेकर द्वारा हुई विचार प्रक्रिया

२०.९.२०१९ के दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में पृष्‍ठ क्रमांक ७ पर परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के बताए कुछ मार्गदर्शक सूत्र प्रकाशित हुए थे । उसमें परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘साधना के रूप में अन्‍य लोगों को उनकी चूक कब बतानी चाहिए ?’ इस प्रश्‍न का उत्तर बताया था ।

यातायात बंदी की कालावधि में घर पर रहते हुए भी आश्रम में रहने के संदर्भ में हुई अनुभूति

‘कोरोना महामारी के कारण हुई यातायात बंदी की कालावधि में प्रथम ‘ऑनलाईन’ भावसत्‍संग में (दि.२६.३.२०२० को) श्रीसत्‍शक्‍ति (सौ.) बिंदा सिंगबाळजी ने कहा, ‘‘घर पर रहकर साधना करें, घर को आश्रम बनाना है; अर्थात आश्रम में रह कर जैसे साधनावृद्धि के लिए प्रयास करते हैं, वैसे ही घर पर रहते हुए करना है । आश्रम में जैसा सात्त्विक वातावरण होता है, घर में वैसा वातावरण रखने का प्रयास करेंगे । इसके अनुसार उनका संकल्‍प कार्यरत हो रहा था ।’’

ब्राह्ममुहूर्त पर उठने के ९ लाभ !

सर्वप्रथम हम सब को यह ध्‍यान में लेना चाहिए कि ‘ब्रह्ममुहूर्त’ की अपेक्षा योग्‍य शब्‍द है ‘ब्राह्ममुहूर्त’ । ब्राह्ममुहूर्त सुबह ३.४५ से ५.३० अर्थात पौने दो घंटे का होता है । इसे रात्रि का ‘चौथा प्रहर’ अथवा ‘उत्तररात्रि’ भी कहते हैं । इस कालावधि में अनेक घटनाएं ऐसी होती हैं जिनसे हमें पूरे दिन के काम के लिए आवश्‍यक ऊर्जा मिलती है । इस मुहूर्त पर उठने से एक ही समय हमें ९ लाभ होते हैं ।

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुआें के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘स्पिरिच्‍युअल साइन्‍स रिसर्च फाउंडेशन’ संस्‍था के प्रेरणास्रोत हैं । पूरे विश्‍व में अध्‍यात्‍मप्रसार करने हेतु उन्‍होंने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है।

‘अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ में सम्मिलित हुए मान्यवरों द्वारा रामनाथी आश्रम देखने पर दिए गए अभिमत !

यह आश्रम अर्थात आध्‍यात्मिक चेतना का विस्‍तार है और सामान्य लोगों के लिए कल्याणकारी एवं अडचनों का निराकरण करनेवाला केंद्र है ।

राष्ट्र की ओर देखने का सर्वदलीय शासकों का अपूर्ण दृष्टिकोण एवं परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी का परिपूर्ण दृष्टिकोण !

वर्तमान सर्वदलीय शासक राष्ट्र को केवल स्थूल दृष्टि से एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं; अत:वे केवल राष्ट्र के भौतिक विकास, जनता के लिए आधुनिक सुविधाएं आदि के अनुसार ही विचार करते हैं । चराचर में स्थित प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व के पीछे स्थूल कारण सहित सूक्ष्म कारण भी होते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी राष्ट्र की ओर स्थूल दृष्टि के साथ-साथ सूक्ष्म दृष्टि से, अर्थात धर्म की दृष्टि से देखते हैं;क्योंकि धर्म राष्ट्र की आत्मा है ।

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुआें के लिए परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी का मार्गदर्शन

परात्पर गुरु डॉक्टरजी स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन संस्था के प्रेरणास्रोत हैं । पूरे विश्‍व में अध्यात्मप्रसार करने हेतु उन्होंने महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की स्थापना की है । इस विश्‍वविद्यालय की ओर से भारत के आध्यात्मिक शोधकेंद्र, गोवा में ५ दिनों की आध्यात्मिक कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं ।