शिष्य दिनकर भए ‘भक्तराज’ !
प.पू. भक्तराज महाराजजी का मूल नाम श्री. दिनकर सखाराम कसरेकर था । गुरुप्राप्ति के उपरांत श्रीगुरु ने अर्थात प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी ने उनकी भक्ति देखकर उनका नामकरण ‘भक्तराज’ किया । ९ फरवरी १९५६ को रात दस बजे दिनकर को (प.पू. भक्तराज महाराजजी को) श्रीगुरु के प्रथम दर्शन हुए और १२ दिसंबर १९५७ को गुरु ने देहत्याग किया; अर्थात दिनकर को एक वर्ष दस मास, केवल इतना ही गुरु का संग प्राप्त हुआ । इतनी अल्प कालावधि में भी गुरु ने दिनकर की शिष्य से गुरुपद तक प्रगति करवा ली । इतनी अल्प कालावधि में प.पू. भक्तराज महाराजजी ने अत्यंत लगन से गुरुसेवा कर तीव्र प्रगति की, यह देखने में आता है ।
माया में होते हुए भी वैराग्यभाव में रहनेवाले आदर्श गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी !
सनातन संस्था के श्रद्धाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी (भक्त उन्हें प.पू. बाबा कहते हैं ।) का जन्मोत्सव ७ जुलाई, २०२१ को है । प.पू. बाबा कलियुग में भक्तों के आधारस्तंभ थे । उन्होंने अनेक भक्तों को कठिन परिस्थितियों से बाहर निकाला । ‘मैं ऐसा-वैसा गुरु नहीं हूं । मैं मार्ग बतानेवाला नहीं, अपितु मार्ग पर चलानेवाला गुरु हूं’, ऐसा वे कहते थे । प.पू. बाबा ने विविध प्रकार से शिष्यों को तैयार किया । शब्दजन्य और शब्दातीत, अर्थात अनुभूतिजन्य, ऐसी दोनों पद्धतियों से वे शिष्यों को सिखाते थे; परंतु शब्दों द्वारा सिखाते समय कई बार वे क्या सिखा रहे हैं ?, यह समझ में नहीं आता था; क्योंकि तब मन शून्य हो जाता था अथवा ध्यान लग जाता था । प.पू. बाबा केवल अध्यात्म नहीं सिखाते थे; अपितु शिष्यों से साधना, एवं नामजप करवा लेते थे ।
‘माया में रहकर भी संन्यस्त जीवन कैसे जीएं ?’, इसका आदर्श उदाहरण हैं प.पू. बाबा ! वैराग्यभाव के कारण निरंतर शिवब्रह्म स्थिति में रहनेवाले वे अलौकिक संत थे । आज प.पू. बाबा हमारे बीच नहीं हैैं, तब भी जहां ‘बाबा’ ऐसी आर्त पुकार गुंजती है, वहां वे दौडे चले आते हैं, इसकी अनुभूति भक्तों को हुई है । इससे निर्गुण स्थिति में वे हमारे साथ हैं, यह ध्यान में आता है । ऐसे गुरु के चरणों में भक्तों द्वारा कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, तब भी वह अल्प है । प.पू. बाबा के चरणों में हम सभी की ओर से भावपूर्ण नमन !
‘प.पू. बाबा केवल उच्च कोटि के संत ही नहीं अपितु अवतारी पुरुष भी हैं’, ऐसा सभी का भाव है । घोर कलियुग में भक्तिबीज अंतरंग में रोपनेवाले, मोक्षद्वार तक जाने के लिए दीपस्तंभ समान मार्गदर्शन करनेवाले प.पू. बाबा का चैतन्य उनके भक्त भावस्मृति और सीख द्वारा आगामी अनेक वर्षों तक प्राप्त करेंगे !
‘प.पू. बाबा भक्तों के हृदयसिंहासन पर सदैव विराजमान रहें’, ऐसी उनके चरणकमलों में जन्मोत्सव निमित्त आर्त प्रार्थना !