सप्तर्षियों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की महत्ता बताकर किया गौरवगान !
१. अद्वितीय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी जैसे ‘गुरु’ पृथ्वी पर अन्य कोई नहीं । पृथ्वी पर स्वयं को ‘गुरु’ कहलानेवालों में किंचित ही सही किंतु स्वार्थ होता है; परंतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी स्वार्थ संबंधी कोई भी विचार नहीं करते ।
२. आद्यशंकराचार्यजी के उपरांत भगवान द्वारा लिया अवतार अर्थात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
३. गुरुदेवजी का स्मरण करने पर साधकों को संतोष और धैर्य प्राप्त होना : सनातन के साधकों के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘मां’ समान हैं और सभी साधक भी गुरुदेवजी को ‘मां’ के रूप में देखते हैं । कितने भी संकट आएं, तो भी गुरुदेवजी का स्मरण करने पर साधकों को संतोष और धैर्य मिलता है ।’ – सप्तर्षि [संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १६२ (११.१२.२०२०)]
४. आगामी पीढी का विचार करनेवाले नि:स्वार्थी प्रवृत्ति के परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
‘एक व्यक्ति विधायक बना, तो वह सांसद होने की इच्छा रखता है । सांसद को मंत्री होने की इच्छा होती है । मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा कभी समाप्त नहीं होती; किंतु सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ऐसा कोई भी स्वार्थी दृष्टिकोण न रख प्रत्येक कृत्य करते हुए आनेवाली पीढी का विचार करते हैं । इससे उनकी दूरदृष्टि ध्यान में आती है ।’ – सप्तर्षि [संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १६४ (६.१.२०२१)]
१. ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, इन दोनों के संदर्भ में लिखने का भाग्य प्राप्त हुआ’, इसलिए सप्तर्षियों द्वारा आदिशक्ति जगदंबा के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करना : सप्तर्षि कहते हैं, ‘हम सप्तर्षि आदिशक्ति जगदंबा से आज प्रार्थना कर रहे हैं, ‘हे देवी, आपकी कृपा से हम सप्तर्षियों को आपके अंश रूप ‘उत्तरापुत्री’ और ‘कार्तिकपुत्री’ के संदर्भ में लिखने का भाग्य प्राप्त हुआ है । हे कार्तिकपुत्री, आप भूलोक में हैं, तो भी आपकी यात्रा देवलोक समान होनी चाहिए । ‘उत्तरापुत्री का रामनाथी आश्रम में रहकर आध्यात्मिक स्तर पर सनातन संस्था का परिपालन करना और सभी साधकों की रक्षा हेतु कार्तिकपुत्री का यात्रा करना’, यह ईश्वरीय नियोजन है ।
२. सनातन के तीन गुरुओं का जन्म केवल धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ है, इसलिए धर्म अब सुंदर रूप धारण करेगा : सनातन के तीनों गुरुओं का जन्म सूर्यदशा में हुआ है । युग-युग से सूर्य का अस्तित्व है । वह भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनों काल देखता है । तीनों गुरु सूर्य के समान भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनों काल जानते हैं । पूर्ण विश्व में धर्मग्लानि दूर करने के लिए और केवल सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए उनका जन्म हुआ है । अरुणोदय सुंदर होता है । तीनों गुरुओं के कारण धर्मग्लानि दूर होकर धर्म अब पुनः सुंदर रूप धारण करनेवाला है ।’ – सप्तर्षि [संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १६१ (१०.१२.२०२०)]
गुरुदेवजी की कृपा से श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में दैवीतत्त्व जागृत होकर उनसे हो रहे कार्य !
१. साधकों का पालन-पोषण और साधकों की रक्षा हेतु तीर्थाटन,’ ये दोनों कृत्य ऐतिहासिक होना
‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, दोनों परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी’ हैं; क्योंकि यह त्रिदेवों द्वारा घोषित सत्य है । अब से सनातन संस्था के संदर्भ में दो कृत्य ऐतिहासिक होंगे, प्रथम श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा सभी साधकों का आध्यात्मिक स्तर पर पालन-पोषण करना और द्वितीय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा साधकों की रक्षा हेतु तीर्थाटनरूपी दैवी यात्रा !
२. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से देवीतत्त्व जागृत होकर अनेक साधकों को अनुभूति आना
आगामी काल में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के केवल दर्शन से ही अनेक लोग साधना करना आरंभ करेंगे । उन दोनों के माध्यम से अनेक नए साधकों की निर्मिति होगी । अभी से अनेक साधकों को उनके संदर्भ में अनुभूति हो रही है । जिस प्रकार मनौती मांगने पर देवी की कृपा होती है, वैसे साधकों को अनेक अनुभूतियां हो रही हैं । गुरुदेवजी की कृपा से उनमें सुप्त देवीतत्त्व अब जागृत हुआ है ।’ – सप्तर्षि [संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १५५ (२६.१०.२०२०)]
श्रीगुरु के प्रति श्रद्धा और साधना ही अंतत: प्राणरक्षा का कार्य करती है
‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने पृथ्वी पर अवतार लिया है । उनका जन्म पृथ्वी पर सभी जीवराशियों के कल्याण के लिए हुआ है । इसलिए साधना और श्रद्धा बढाना साधकों के हाथ में है । श्रद्धा और साधना न हो, तो भगवान साधकों की रक्षा कैसे करेंगे ? प्राणरक्षा हेतु मंत्रजप का उपयोग कर सकते हैं; किंतु ऐन समय पर वह भी संभव नहीं होता । तब केवल श्रद्धा ही कार्य करती है ।’ – सप्तर्षि (सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १५०)
१. ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, आदिशक्ति के दो रूप : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने आदिशक्ति के दो रूप (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को) ढूंढकर अपने ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी’ घोषित किए हैं ।
२. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को छोटी बहन समान संभालना : सप्तर्षि श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को संबोधित कर कहते हैं, ‘हे कार्तिकपुत्री, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी आपकी बडी बहन हैं । घर में बडी बहन छोटी बहन की देखभाल करती है, उसी प्रकार वे श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को संभालती हैं । वह श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के दौरे के लिए आवश्यक सभी सामग्री भी उन्हें देती हैं ।’
३. प्रत्येक जन्म में एकत्रित जन्म लेनेवाली कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री ! : सप्तर्षि कहते हैं, ‘अब तक आदिशक्ति का अंशावतार कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री ने प्रत्येक जन्म में एकत्रित जन्म लिया है और आगे भी वे श्रीगुरु के कार्य के लिए पुन: जन्म लेंगी ।’ – सप्तर्षि [संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १४९ (१.१०.२०२०)]
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी’ श्रीसत्शक्ति
(श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का दायित्व
१. कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री अर्थात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के दो नेत्र ! : ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री, दोनों पर समान ध्यान रहता है; क्योंकि ‘इन दोनों के कारण ही आनेवाले काल में साधकों की रक्षा होगी’, यह उन्हें ज्ञात है । कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री अर्थात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के दो नेत्र !
२. कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री दोनों एक ही हैैं ! : कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री, दोनों एक ही हैं । उत्तरापुत्री गर्भगृह में रखी देवता की मूर्ति समान रामनाथी आश्रमरूपी मंदिर में रहती हैं, तो कार्तिकपुत्री उत्सव के लिए सभी ओर जानेवाले मंदिर की उत्सवमूर्ति समान हैं । – सप्तर्षि (संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १५६ (३१.१०.२०२०))
कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री की भाषा, प्रांत, प्रकृति इत्यादि घटक भिन्न होते हुए भी उनका एक होना
‘विश्वकल्याण हेतु श्रीविष्णु की कृपा चाहिए, साथ ही श्री महालक्ष्मी की कृपा भी चाहिए । कार्तिकपुत्री और उत्तरापुत्री, दोनों श्री महालक्ष्मी के अंशावतार हैं । हम सप्तर्षि दोनों को ही ‘महालक्ष्मी’ कहकर संबोधित करते हैं । दोनों का जन्म समय भिन्न है, साथ ही उनकी भाषा, प्रांत, प्रकृति आदि भिन्न हैं, तो भी वे एक ही
हैं ।’ – सप्तर्षि (१६.१०.२०२०)
सनातन के साधकों का गुरुदक्षिणा स्वरूप श्रीगुरु के चरणों में कृतज्ञभाव से जीवन समर्पित करना पर्याप्त है !
‘द्रोणाचार्य ने एकलव्य को कुछ नहीं सिखाया, तो भी श्रीगुरु के मांगने पर उसने त्वरित गुरुदक्षिणा स्वरूप स्वयं का अंगूठा काटकर दिया । सनातन के साधकों को तीन गुरुओं को गुरुदक्षिणा देना संभव नहीं, तो भी उन्होंने कृतज्ञभाव से श्रीगुरु के चरणों में जीवन समर्पित किया, तो वह पर्याप्त है ।’
– सप्तर्षि [संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १६० (१३.१२.२०२०)]
सनातन के तीनों गुरुओं पर श्रद्धा रखने से साधक निश्चित ही सभी संकट से बाहर निकलेंगे !
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी मनुष्यरूप में होने से सामान्य व्यक्ति का उन्हें
समझ न पाना और मनुष्य समान ही सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों से उन्हें युद्ध करना पडना
‘सनातन संस्था’ नाम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ही रखा है । रामनाथी आश्रम का भोजन-पानी सभी ‘संजीवनी’ है ! साक्षात श्रीविष्णु ही ‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी’ मनुष्य रूप में धर्मसंस्थापना करने आए हैं । पृथ्वी पर होने के कारण गुरु को मनुष्य समान शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तरों पर अनिष्ट शक्तियों से युद्ध करना पडता है । यही यदि देवलोक में घटित होता, तो गुरुदेवजी केवल मंत्रशक्ति से ही अनिष्ट शक्तियों का विनाश कर देते ।
२. सनातन के साधक श्रीगुरु के कारण सुरक्षित हैं और वे सब कुछ श्रीगुरु पर छोडकर श्रद्धा रखकर निश्चिंत रहें !
विश्व में श्रद्धा महत्त्वपूर्ण है । पक्षी आकाश में उडते हैं पर वे उनकी छाया से घरौंदे में रखे अपने बच्चों को भी संभालते हैं । ‘उन पक्षी के बच्चों को, हम किसके कारण सुरक्षित हैं’, यह ज्ञात नहीं होता । उसी प्रकार गुरु के कारण सभी साधक सुरक्षित हैं; किंतु साधकों को यह ज्ञात नहीं होता । साधक सबकुछ गुरु पर छोड दें, वे सब देख लेंगे । ‘कितना भी बडा संकट हो, तो भी सनातन के तीन गुरुओं पर श्रद्धा रखने से साधक उन संकटों से बाहर निकल जाएंगे’, यह निश्चित है ।
३. स्त्रीरूप में जन्मीं उत्तरापुत्री और कार्तिकपुत्री, इन दो अवतारी जीवों का अहित कर सकनेवाला इस संपूर्ण विश्व में कोई भी नहीं है ।’
– सप्तर्षि (संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १६६ (१८.१.२०२१))
सनातन संस्था पर कितने भी संकट आएं, तो भी गुरुकृपा से सनातन संस्था विजयी होगी !
‘सनातन संस्था पर कितने भी संकट आएं, तो भी सनातन संस्था उसमें विजयी होगी ! ऐसे संकटों पर विजय प्राप्त होने पर साधक और हिन्दुओं को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक क्षमता ज्ञात होगी । सनातन संस्था पर सभी संकट एकत्रित आएं, तो भी गुरुकृपा से सनातन संस्था ही विजयी होगी ! सनातन के तीनों गुरुओं की कीर्ति सभी ओर फैलाने हेतु हम सप्तर्षि पृथ्वी पर कार्य कर रहे हैं !’
– सप्तर्षि (संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १६९ (८.२.२०२१)
प्रभु श्रीराम के चरणस्पर्श से शापमुक्त हुई अहिल्या की कथा से अवतारों की श्रेष्ठता समझें
‘आपको गौतम ऋषि और अहिल्या की कथा ज्ञात ही है । गौतम ऋषि के शाप से पत्थर बनी अहिल्या कुछ समय पश्चात श्रीराम के चरणस्पर्श से शापमुक्त होती हैं । तब अहिल्या गौतम ऋषि से कहती हैं, ‘‘अब आप मुझे स्वीकार करें ।’’ तब वे कहते हैं, ‘‘तुमसे चूक हुई, उसी समय तुमने मेरी पत्नी होने का अधिकार खो दिया है ।’’ उस समय श्रीराम गौतम ऋषि को कहते हैं, ‘हे गौतम ॠषि, मेरे चरणस्पर्श होने से उसका पुनर्जन्म हुआ है । इसलिए आप उसे स्वीकार करें ।’ इससे अवतारों की श्रेष्ठता समझ में आती है ।’ – सप्तर्षि (संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १५९ (२५.११.२०२०))
इस लेख में ‘कार्तिकपुत्री’ उल्लेख श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के लिए तथा ‘उत्तरापुत्री’ उल्लेख श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के लिए है । |