संतवाणी के कारण आनंददायी भजन !
‘भजन’ बाबा का सर्वाधिक प्रिय विश्राम का माध्यम है ! बाबा अर्थात भजन और भजन अर्थात बाबा । शिष्यावस्था में भजन ही बाबा की साधना एवं सेवा थी । गुरु के समक्ष खडे रहकर बाबा ने घंटों भजन गाए । गुरुपद पर आरूढ होने पर शिष्यों को उपदेश देने और चैतन्य से एकरूप होकर मार्गदर्शन करने के माध्यम बन गए ‘भजन’ । प.पू. बाबा उच्च स्तर के संत होने के कारण भजनों के रचनाकार, संगीतकार एवं गायक संत ही हैं । संतमुख से उद़्धृृत भजन चैतन्य प्रक्षेपित करते हैं । इसलिए भजन सुननेवालों को अनुभूतियां होती हैं । ऐसे भजनों की निर्मिति करनेवाले प.पू. बाबा के चरणों में साष्टांग नमन !
भजन में मग्न प.पू. भक्तराज महाराजजी की विविध भावावस्थाएं, हमें अंतरंग से भक्ति करने की प्रेरणा देती है !
प्यारे लागे मोहे गुरुचरणन रे ।
प्यारे लागे मोहे गुरुचरणन रे ।
प्रभु चरणन रे हरि चरणन रे ॥
रूप है सांवरा पग में घुंगरा ।
नयनभरी मधु प्रीतम की रे ॥१॥
मुख पर चांद की छबिया छाई ।
नयनभरी छटी काजल की रे ॥२॥
हृदय की धडकन गीत सुनावत ।
याद आवत मुझे गोकुल की रे ॥ ३॥
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ -‘संत भक्तराज महाराज विरचित भजनामृत’)
वेद एवं भजनवेदों की भांति भजनों का महत्त्व केवल उनके श्ब्दों में ही नहीं, उनके उच्चारण और नाद में भी है । जैसे वेदऋचा का वाचन नहीं, अपितु संथा लेकर उचित उच्चारण सीखकर वेद पठन करना महत्त्वपूर्ण है, उसी प्रकार भजन भी उचित ढंग से गाना आवश्यक है । इसीलिए भजन गाते समय बाबा (प.पू. भक्तराज महाराज) पेटी बजानेवाले, तबलची व अन्य साथियों को भजन कैसे गाएं, यह बार-बार सिखाते हुए दिखाई पडते हैं । फिर भी यह बात विशेष है कि वेदाच्चार जैसे होने चाहिए, वैसे न हुए तो वेद पढनेवाले पर दुष्परिणाम हो सकते हैं; परंतु गुरुभक्तों का भजन बेसुरा ही क्यों न हो, फिर भी भावपूर्ण होने के कारण उसका दुष्परिणाम न होकर, भक्तों का उद्धार ही होता है । – (संदर्भ : संत भक्तराज विरचित हिन्दी भजनामृत) |
प.पू. भक्तराज महाराजजी द्वारा गाए भजनों की लय पर सनातन के २३ वें संत पू. विनायक
कर्वेजी के (आयु ८० वर्ष) भावविभोर होकर नाचने की दृश्यश्रव्य-चक्रिका देखते हुए आई अनुभूति
प.पू. भक्तराज महाराजजी भजन गाते समय चित्पावन अवस्था में रहते हैं । चित्पावन अवस्था अर्थात जिस समय चित्त चैतन्य के प्रवाह में मग्न होकर कार्य करता है, उस समय जीव की चारों देह एक-दूसरे से एकरूप होकर स्वयंभू कार्य करती हैं । इस प्रकार के भजन सुनते समय चित्त चैतन्य से जुड जाता है । प.पू. भक्तराज महाराजजी के भजन सुनते समय सनातन के संत पू. विनायक कर्वेजी ने यही स्थिति अनुभव की । उनकी भावविभोर अवस्था को सभी अनुभव कर पाए । इस समय शॉन क्लार्क सिक्वेरा को हुई अनुभूति देखेंगे ।
पू. कर्वेजी के हाथों की उंगलियों से श्वेत प्रकाश प्रक्षेपित होते हुए अनुभव होना, उनके नख तेजस्वी और प्रकाशित दिखाई देना तथा ५ घंटे तक भावजागृति की स्थिति बनी रहना
‘प.पू. भक्तराज महाराजजी द्वारा गाए भजनों की धुन पर सनातन के २३ वें संत पू. विनायक रघुनाथ कर्वेजी भावविभोर होकर नाचने लगते हैं । उनकी दृश्यश्रव्य-चक्रिका २४.८.२०१९ को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर साधकों को दिखाई गई थी । उस समय मुझे लगा कि भजन की धुन पर नाचते हुए पू. कर्वेजी के हाथों की उंगलियों से श्वेत प्रकाश प्रक्षेपित हो रहा है, साथ ही उनकी उंगलियों के नख भी तेजस्वी और प्रकाशित दिखाई दे रहे थे । उनका नृत्य रुकने पर उनकी उंगलियों से प्रक्षेपित प्रकाश न्यून होता गया तथा नखों का रंग पूर्ववत होता गया । उनकी दृश्यश्रव्य-चक्रिका देखते समय मेरी अत्यधिक भावजागृति हुई और यह स्थिति अगले ५ घंटे तक बनी रही । यह अनुभूति प्रदान करने हेतु मैं श्रीकृष्ण के चरणों में कृतज्ञ हूं ।’
– शॅरन सिक्वेरा, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३०.८.२०१९)