श्री : श्री हैं आप, श्रीहरि के सगुण अवतार हैं आप श्रीमन्,
श्री : श्रेष्ठतम साधना का उपहार दिया है हमें आपने श्रीमन्,
श्रीचरणों में स्वीकार करें यह वर्णसुमन रचित अभिनंदन ॥
ज : जयी ही नहीं, कालजयी कृतियां अविरत विश्व को दी हैं आपने श्रीमन्,
य : यशस्वी हैं आप, अध्यात्म ज्योत से आलोकित किया विश्व को आपने श्रीमन्,
न : नकरात्मक वृत्तियों को समूल नष्ट करने को अमोघ अस्त्र दिए हैं आपने श्रीमन्,
त : तत्त्वनिष्ठा के अधिष्ठाता हे गुरुवर, हम अंकिचनों को आधार भी दिया है आपने श्रीमन्,
श्रीचरणों में स्वीकार करें यह वर्णसुमन रचित अभिनंदन ॥
बा : बालक तुल्य अनगिनत साधकों को जीवनमुक्त कराया है आपने श्रीमन्,
ला : लाने हेतु ‘धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र’ संकल्प किया है आपने श्रीमन्,
जी : जीवों का उद्धार हो कैसे, जन-जन को निरंतर मार्ग दिखाया है आपने श्रीमन्,
श्री चरणों में स्वीकार करें यह वर्णसुमन रचित अभिनंदन ॥
आ : आदर्श के सर्वोच्च शिखर-से कीर्तिमान अमित बनाए हैं आपने श्रीमन्,
ठ : ठहरे न तनिक पलभर भी, गुरु-कार्य किया निरंतर बिन विश्राम के आपने श्रीमन्,
व : व्याप्त क्षितिज में अध्यात्मप्रसार को सप्तरंगी दिव्यता भी दी है आपने श्रीमन्,
ले : लेखन अद्वितीय अनमोल धर्म-ग्रंथों का कर, सृजन को जीवंत किया है आपने श्रीमन्,
श्री चरणों में स्वीकार करें यह वर्णसुमन रचित अभिनंदन ॥
आपकी चरण-रज पाने का सौभाग्य मिले,
श्रीचरणों के नित दर्शन का सौभाग्य मिले,
व्यष्टि-समष्टि के प्रयासों को आयाम मिले,
हे पूज्यवर आपके श्रीचरणों में स्थान मिले,
हे पूज्यवर आपके श्रीचरणों में स्थान मिले ।।
– गुरुचरणों में कृतज्ञता, श्री. सुदामा शर्मा, जमशेदपुर, झारखंड (५.७.२०२०)