मुंबई, १ जून (समाचार) – राज्य के मध्यवर्ती कारागृह, जिला कारागृह, महिला कारागृह आदि भिन्न भिन्न ६० कारागृहों में २६ सहस्र ३८७ बंदीजनों को रखने का प्रबंध है । प्रत्यक्ष में इन कारागृहों में वर्तमान में ४० सहस्र ४८५ बंदीजनों को रखा गया है । अर्थात क्षमता की अपेक्षा राज्य के कारागृहों में १४ सहस्र ९८ अधिक बंदीजन हैं । महाराष्ट्र कारागृह विभाग के अधिकृत जालस्थल पर यह आंकडे दिए गए है ।
With 14,000 excess prisoners, the jails in Maharasthra are functioning beyond capacity.
👉 80 percent of detainees are waiting for the court’s decision.
👉 The prison administration should be considering this as a serious issue and take measures to improve the condition of… pic.twitter.com/sftV5sykCN
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) June 1, 2024
राज्य के अमरावती, नागपुर, छत्रपति संभाजीनगर, नाशिक, कोल्हापुर, येरवडा (पुणे), मुंबई, ठाणे एवं तलोजा (रायगढ) इन स्थानों में कुल ९ मध्यवर्ती कारागृह हैं । इनकी क्षमता १६ सहस्र ११० बंदीजन रखने जितनी है, परंतु प्रत्यक्ष में इन कारागृहों में २७ सहस्र ८०० बंदीजनों को रखा गया है । राज्य में कुल २८ जिला-कारागृह हैं तथा उनकी बंदीजन समाहित करने की क्षमता ७ सहस्र १३६ हैं । प्रत्यक्ष में जिला कारागृहों में वर्तमान में १० सहस्र २७९ बंदीजनों को रखा गया है । तथापि विशेष कारागृह, बालसुधारगृह, खुले कारागृह एवं अन्य कारागृहों में क्षमता की अपेक्षा अल्प बंदीजन हैं ।
८० प्रतिशत बंदीजन न्यायालय के निर्णय की प्रतिक्षा में !
राज्य के कारागृहों में ४० सहस्र ४८५ बंदीजनों में से केवल ७ सहस्र ८५० बंदीजनों का अपराध प्रमाणित हुआ है तथा वे अपना दंड भुगत रहे हैं । कुल बंदीजनों की अपेक्षा अपराध प्रमाणित बंदीजनों की संख्या १९ प्रतिशत है । इसके विपरीत न्यायालय में निर्णय न होने के कारण कारागृह में बंदीजनों की संख्या ३२ सहस्र २१५ जितनी बडी है, अर्थात कारागृह के कुल बंदीजनों में से ८० प्रतिशत बंदीजन न्यायालय के निर्णय की प्रतिक्षा में हैं । इन में से कुछ बंदीजन अपराधी हो सकते हैं, तो कुछ निर्दोष भी । वर्ष २०२३ में कारागृह में निर्णय की प्रतिक्षा में बंदीजनों के आंकडे ७९ प्रतिशत थे । इस वर्ष उसमें १ प्रतिशत वृद्धि हुई है ।
वर्ष २०२३ में दुगुना से अधिक बंदीजन रहे कारागृहों की संख्या १० थी । इस वर्ष २ कारागृहों में बंदीजनों की संख्या अल्प हुई है । यदि न्यायालयीन प्रलंबित अभियोगों की सुनवाई तीव्र गति से हो, तो कारागृह में बंदियों की संख्या न्यून हो सकती है ।
संपादकीय भूमिकाकारागृह प्रशासन को इस संदर्भ में गंभीरता से विचार कर कारागृह की दुःस्थिति सुधारने हेतु समाधान ढूंढना चाहिए ! |