संयुक्त राष्ट्रों ने पाकिस्तान को सुनाई !
न्यूयॉर्क (अमेरिका) – पाकिस्तान में ईसाई और हिन्दू समुदाय की युवतियां विशेषरुप से बलपूर्वक धर्मांतरण, अपहरण, तस्करी, बालविवाह, अल्प आयु में बलपूर्वक विवाह, पारिवारिक अपराधिता और यौन अत्याचारों की बलि होती हैं, ऐसे शब्दों में संयुक्त राष्ट्रों के विशेषज्ञों निराशा व्यक्त की है । विशेषज्ञों ने बताया कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत अपने दायित्वों का पालन करना आवश्यक है । धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं और युवतियों पर होनेवाले इस प्रकार के जघन्य तथा मानवी अधिकारों का उल्लंघन करनेवाले अपराधों को भविष्य में स्वीकार नहीं किया जाएगा, ऐसी चेतावनी भी दी है ।
संयुक्त राष्ट्रों के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार एक निवेदन प्रसारित किया है । इसमें कहा है कि,
१. धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की युवतियों के बलपूर्वक विवाह और धर्मांतरण को न्यायालयों ने सहमति दर्शाई है । पीडितों को उनके अभिभावकों के पास लौटने की अनुमति देने के स्थान पर उनके अपहरणकर्ताओं के साथ रहने की अनुमति देने के लिए धार्मिक कानून उपयोग में लाए जाते हैं । प्रेमविवाह के नाम पर पुलिस ऐसे अपराधों का अस्वीकार करती है ।
२. अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार पीडिता की आयु १८ वर्षाें से अल्प हो, तो सहमति अप्रासंगिक है । स्त्री के लिए उसका जीवनसाथी चुनने का और मुक्तरुप से विवाह करने का अधिकार उसके जीवन, सम्मान और मनुष्य के रुप में समानता मिलने के लिए आवश्यक है और कानून उसे बनाए रखने में सफल होना चाहिए ।
३. पीडितों को न्याय, उपाय, सुरक्षा और आवश्यक सहायता मिले, इसलिए बलपूर्वक विवाह निरस्त किए जाने जैसे प्रावधान होने की आवश्यकता है ।
संपादकीय भूमिकासंयुक्त राष्ट्र केवल नाममात्र हैं । उनका इतिहास देखा जाए तो उन्होंने कोई समस्या सुलझाई अथवा किसी की रक्षा की है, ऐसा देखने को नहीं मिलता । इसलिए ऐसे वक्तव्य देने की अपेक्षा प्रत्यक्ष कृति कर दिखाना आवश्यक है ! |