सर्वत्र के छात्र-साधकों को सनातन के आश्रम में रहने का स्वर्णिम अवसर !
१. भावी पीढी को साधना का संस्कार देने के लिए साधक-अभिभावक छुट्टियों में अपने बच्चों को सनातन के आश्रमों में भेजें !
साधक-अभिभावको, हमारे बच्चे तो हिन्दू राष्ट्र की भावी पीढी हैं ! इस पीढी को सुसंस्कृत करना तथा उनके मन में साधना का बीज बोना आवश्यक है । अगली पीढी को अभी से तैयार किया गया, तो ये बच्चे हिन्दू राष्ट्र के आदर्श नागरिक बनेंगे ! कुछ ही दिन में विद्यालयीन-महाविद्यालयीन शिक्षा ले रहे छात्रों को गर्मियों की छुट्टियां होनेवाली हैं । इस अवधि में छात्र-साधकों को रामनाथी, देवद एवं वाराणसी आश्रमों में तथा मथुरा सेवाकेंद्र में रहकर आश्रम जीवन अनुभव करने का स्वर्णिम अवसर है । साधक-अभिभावक १३ वर्ष से अधिक आयु के अपने बच्चों को निकट के आश्रमों में भेज सकते हैं । आश्रम में चलनेवाली विभिन्न प्रकार की सेवाओं में सहायता करने से वे अनेक बातें सीख सकेंगे, साथ ही उनमें व्यष्टि एवं समष्टि साधना के प्रति रुचि उत्पन्न होगी ।
२. आश्रमों में उपलब्ध सेवाएं
२ अ. सनातन के ग्रंथों से संबंधित सेवाएं : मराठी भाषा में टंकण करना, लेखन का भाषांतर एवं भाषाशुद्धि करना, ग्रंथ संरचना करना, ग्रंथों के लिए मुखपृष्ठ बनाने के लिए संगणकीय छायाचित्रों पर काम करना, रेखाचित्र (आउटलाइन) एवं सात्त्विक कलाकृति तैयार करना
२ आ. नियतकालिकों से संबंधित सेवाएं : समाचारों का संकलन करना तथा विज्ञापनों की संरचना करना
२ इ. ध्वनिचित्रीकरण से संबंधित सेवाएं : चित्रीकरण करना, छायाचित्र खींचना, ध्वनिमुद्रण (रेकॉर्डिंग) करना, चित्रीकरण का संकलन करना तथा अंग्रेजी भाषा में टंकण करना
२ ई. अमूल्य वस्तुओं का संरक्षण करने से संबंधित : संपूर्ण भारत से प्राप्त विशेषतापूर्ण वस्तुओं, साथ ही संतों के द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं का संरक्षण करने के लिए उन्हें धूप में सुखाना, इन वस्तुओं की प्रविष्टियां तथा बांधना (पैकिंग), साथ ही स्कैनिंग करना इसके साथ ही संगणक-सुधार, ग्रंथालय, रसोई, निर्माण कार्य, व्यवस्थापन, जालस्थल इत्यादि से संबंधित सेवाएं भी उपलब्ध हैं ।
छात्र-साधकों की प्रकृति, रुचि, कौशल, सेवा सीखने की क्षमता तथा घर जाने के उपरांत उनके द्वारा सेवा के लिए दिया जानेवाला समय, इन घटकों का विचार कर उन्हें सेवाएं सिखाई जाएंगी । इन सेवाओं को सीखने के लिए उन्हें जितने दिन आश्रम में रहना संभव है, उतने दिन वे रह सकते हैं ।
उपरोक्त सेवाओं में सहायता कर धर्मकार्य में योगदान देने के इच्छुक छात्र-साधक जिलासेवकों के माध्यम से आश्रमसेवकों से संपर्क करें । (२६.२.२०२४)
जिलासेवको, छात्र-साधकों को आश्रम भेजने से पूर्व निम्न सूत्र ध्यान में लें !
जिलासेवक छात्र-साधकों का चयन करते समय, वे आश्रमजीवन का, साथ ही सेवा से संबंधित प्रशिक्षण का लाभ उठाकर आगे जाकर सेवा के लिए समय दे सकें, ऐसे छात्र-साधकों का ही नियोजन करें । छात्र-साधकों का जिले से आश्रम आना सुनिश्चित होने पर अन्य जानकारी के साथ उनके स्वभावदोष एवं गुण भी सूचित करें, जिससे ‘स्वभावदोषों पर कैसे विजय प्राप्त करनी चाहिए’, इस विषय में उनका दिशादर्शन कर साधना में उनकी सहायता की जा सके ।
अन्य महत्त्वपूर्ण सूचनाएं
१. ‘आश्रम में रहकर छात्र-साधकों की बुरी आदतें तथा समष्टि की दृष्टि से उनकी हानिकारक आदतें आदि स्वभावदोष अल्प होकर उनमें साधकत्व उत्पन्न होगा’, इस बात को ध्यान में रखते हुए अभिभावक ऐसे बच्चों को आश्रम न भेजें, जो साधना एवं सेवा करने के इच्छुक नहीं हैं ।
२. आश्रम में आने के संदर्भ में आश्रम से निश्चित रूप से सूचित किए जाने के उपरांत ही आरक्षण करें । आश्रम में आने के लिए वाहन का आरक्षण करते समय वापसी का भी आरक्षण करें, अन्यथा अंतिम क्षण में टिकट मिलने में समस्या आ सकती हैं ।
३. आश्रम में रहने के लिए आते समय छात्र-साधक अपनी चद्दर, साथ ही यदि वे औषधियां ले रहे हैं, तो औषधियां भी अपने साथ लाएं ।