‘पृथ्वी पर धर्मसंस्थापना होकर अखिल मानवजाति आनंदित हो तथा सर्वदृष्टि से आदर्श सात्त्विक राज्य (ईश्वरीय राज्य, रामराज्य, हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हो’; इसके लिए सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी (गुरुदेवजी) विगत ३५ वर्षाें से अखंड कार्यरत हैं । उनके इस कार्य की वाहक सनातन संस्था को सनातन की ग्रंथसंपदा से आवश्यक ज्ञानबल एवं चैतन्यबल मिलता है ।
गुरुदेवजी ने एक बार मुझसे कहा था, ‘‘सनातन के ग्रंथ ही वास्तविक धर्मप्रसारक हैं !’’ अब उसकी प्रतीति भी हो रही है । वर्ष १९९९ में स्थापित सनातन संस्था की इस वर्ष रजत जयंती है । इस उपलक्ष्य में ‘सनातन के ग्रंथों के कारण सनातन संस्था का राष्ट्र एवं धर्म से संबंधित कार्य कैसे शीघ्रगति से बढ रहा है ?’, इस पर संक्षेप में प्रकाश डालनेवाला यह लेख !
संकलनकर्ता : पू. संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के संकलनकर्ता
१. ‘ग्रंथों के कारण धर्मप्रसार कैसे होता है ?’, इस विषय में धर्मप्रचारक साधक का अनुभव
‘वर्ष २०१५ में उज्जैन एवं मध्य प्रदेश में होनेवाले कुंभपर्व में अध्यात्मप्रसार की तैयारी करते समय विभिन्न व्यक्तियों से संपर्क करने का मुझे अवसर मिला । उस समय हम उन्हें सनातन का ‘धर्मशिक्षा फलक’ ग्रंथ देखने के लिए देते थे । उसे देखकर अनेक व्यक्तियों ने बडी सहजता से हमें उनके भवन की दीवारों पर धर्मप्रसार का लेखन करने की अनुमति दी, साथ ही अनेक लोगों ने हमें बडे फलक लगाने हेतु स्थान भी उपलब्ध करवाया ।’
– श्री. निरंजन चोडणकर, उज्जैन, मध्य प्रदेश. (१८.२.२०१६)
२. ग्रंथों के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों का सनातन से जुडना
धर्म, अध्यात्म, विभिन्न साधनामार्ग, देवता, स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन, बालसंस्कार, बच्चों का विकास, आयुर्वेद आदि विषयों पर सनातन ने ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । अनेक विज्ञासु विविध विषयों पर आधारित ग्रंथों में समाहित उन्हें भानेवाले ज्ञान के कारण सनातन की ओर आकर्षित होते हैं तथा आगे चलकर साधना भी करने लगते हैं ।
३. राष्ट्रनिष्ठ एवं धर्मप्रेमी साधक तैयार करनेवाले ग्रंथ !
गुरुदेवजी ने राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?’, ‘हिन्दू राष्ट्र : आक्षेप एवं खंडन’ आदि ग्रंथ लिखे हैं । इन ग्रंथों के कारण अनेक राष्ट्रनिष्ठ एवं धर्मप्रेमियों को ‘आदर्श हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रयास करना काल के अनुसार आवश्यक समष्टि साधना ही है’, यह सीख मिलती है । उसके साथ ही वैधानिक पद्धति से आवश्यक कृतियों के संदर्भ में मार्गदर्शन भी मिलता है ।
‘सनातन के ग्रंथों के कारण धर्मप्रसार कैसे होता है ?’, इस विषय में सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडयेजी का अनुभव‘कुछ दिन पूर्व हमने केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री श्री. श्रीपाद नाईक, (गोवा) को बच्चों एवं छात्रों के लिए उपयुक्त सनातन के ग्रंथ दिखाए, जिन्हें देखकर वे बहुत आनंदित हुए तथा उन्होंने स्वयं के लिए ग्रंथ के २ संच खरीदे । उन्होंने कहा, ‘‘सनातन संस्था ने समाज के लिए आवश्यक सभी विषयों पर ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । समाज को इन ग्रंथों की बहुत आवश्यकता है । मैं अपनी क्षमता के अनुसार इन ग्रंथों को समाज तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा ।’’ २०० विद्यालयों में इन ग्रंथों का संच देने का उनका मनोदय है तथा उन्होंने हमें प्रतिमाह २५ विद्यालयों में संच देने का सुझाव दिया ।’’ – सद्गुरु स्वाती खाडये, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था. (२४.१०.२०२१) |
४. धर्मप्रचारक संतों की पंक्ति बनानेवाले ग्रंथ !
सनातन के ग्रंथों में दिए ज्ञानामृत का कार्यान्वयन कर १.२.२०२४ तक १२२ साधकों ने ‘संतपद’ प्राप्त किया है तथा १,०५४ साधक ‘संतपद’ प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं । सनातन के अनेक संत एवं उन्नत साधक धर्मप्रचारक के रूप में सेवारत हैं । संतों की वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण, साथ ही संतों एवं उन्नत पुरुषों के साधकों पर आसन्न ईश्वरीय कृपा के कारण सनातन का अध्यात्मप्रसार का कार्य अनेक गुना बढ रहा है ।
५. ग्रंथों की अद्वितीय विशेषताओं के कारण जिज्ञासुओं का साधना की ओर मुडना
सनातन के अध्यात्म से संबंधित ग्रंथों में अध्यात्म की प्रत्येक बात के विषय में ‘क्यों एवं कैसे ?’ इन प्रश्नों के शास्त्रीय उत्तर दिए गए हैं । अधिकतर ग्रंथों में ‘न भूतो न भविष्यति ।’, इस प्रकार से गहन ईश्वरीय ज्ञान भी दिया गया है । सनातन के ग्रंथों में जीवन आनंदित होने हेतु साधना का केवल सैद्धांतिक विवेचन ही नहीं, अपितु साधना का कार्यान्वन करने के विषय में मार्गदर्शन भी दिया गया है । सनातन के ग्रंथ पाठकों की साधना में उत्पन्न बाधाएं दूर कर उनकी साधना को दिशा भी देते हैं । ऐसी अनेक विशेषताओं के कारण जिज्ञासुओं को सनातन के ग्रंथ अच्छे लगते हैं तथा वे उनका अध्ययन कर साधना करने लगते हैं ।
६. ग्रंथों में विद्यमान चैतन्य के कारण भी जिज्ञासुओं का साधना की ओर मुडना
गुरुदेवजी जैसे उच्च कोटि के आध्यात्मिक व्यक्तित्व की सिद्धहस्त लेखनी से साकार सनातन के ग्रंथ चैतन्यमय हैं । इसीलिए उनमें दी गई सीख पाठकों के मन को दृढ संस्कार देकर जाती हैं तथा पाठक अपनेआप ही उसके कार्यान्वयन हेतु अर्थात साधना हेतु प्रेरित होते हैं ।
६ अ. ग्रंथों में विद्यमान चैतन्य से मुद्रणालय के कर्मचारियों को भी अनुभूतियां होना : ‘वर्ष २०११ से सनातन संस्था के ग्रंथों का मुद्रण कोल्हापुर स्थित ८ मुद्रणालयों में हो रहा है । सनातन के ग्रंथों का मुद्रण करते समय वहां कार्यरत कर्मचारियों को भी विभिन्न अनुभूतियां होती हैं । उसके कारण सनातन संस्था के प्रति उनकी श्रद्धा बढ गई है ।’
– श्री. संतोष गावडे, कोल्हापुर. (३१.३.२०१८)
६ आ. सनातन के ग्रंथ पढने के कारण जिज्ञासु के मन में समाहित नकारात्मक विचार नष्ट होना, साथ ही उस जिज्ञासु का व्यसनमुक्त हो जाना : ‘अक्टूबर २०१९ में महाराष्ट्र एवं गुजरात की सीमा पर स्थित नवापुर में सनातन के धर्मरथ (बडे वाहन) पर स्थित चलित ग्रंथ-प्रदर्शनी लगाई गई थी । वहां एक जिज्ञासु आए । वे कहने लगे, ‘‘पारिवारिक समस्या के कारण मैं नकारात्मक हो गया था । घर से निकलते समय गांव के लोग किसी विषय पर बातचीत करते थे, तो ‘वे मेरे विषय में ही बात कर रहे हैं’, ऐसा लगकर मुझे अपराधी प्रतीत होता । मेरा आत्मविश्वास टूट गया था और मैं मदिरापान के अधीन हो गया । उस समय धर्मरथ पर मैंने सनातन के स्वभावदोष-निर्मूलन से संबंधित कुछ ग्रंथ खरीदे । उन्हें पढकर मेरे शरीर एवं मन पर परिणाम होता । उसके कारण मैं व्यसनमुक्त हो पाया । इनकी सहायता से मैं नकारात्मकता से बाहर निकल सका; इसके लिए मैं आपका आभारी हूं ।’’ उन्होंने इस बार साधना संबंधी कुछ अन्य ग्रंथ खरीदे ।’
– धर्मरथसेवक श्री. सागर म्हात्रे, सातारा, महाराष्ट्र. (अक्टूबर २०१९)
७. सनातन के ग्रंथों के संबंध में समाज के संत-महंतों के अभिमत !
७ अ. ‘वर्तमान मैकालेप्रणित विदेशी शिक्षा-पद्धति के कारण आज की पीढी हिन्दू धर्म के आचार-विचारों से दूर चली गई है । इस पृष्ठभूमि पर हिन्दुओं को धर्मज्ञान मिलने के लिए सनातन ने जो धार्मिक ग्रंथ प्रकाशित किए हैं, वे प्रशंसनीय हैं ।’ ’
– श्री श्री श्री सद्गुरु ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज, श्रीराम क्षेत्र महासंस्थान, कन्याडी, दक्षिण कन्नड.
७ आ. ‘सनातन के ग्रंथों में दी धर्मशिक्षा अच्छी होती है । ये ग्रंथ अन्य लोग पढें, इसके लिए मैं कीर्तन में प्रबोधन करता रहता हूं ।’ – ह.भ.प. दिगंबरबुवा नाईक, नागपुर (दैनिक ‘सनातन प्रभात’, १४.११.२०१३)
७ इ. ‘प्रयागराज के कुंभमेले में लगाई सनातन की ग्रंथ-प्रदर्शनी अत्यधिक अच्छी है । ऐसी प्रदर्शनी लगाने से अध्यात्मप्रसार होकर धीरे -धीरे देश में सर्वत्र जागृति होगी । विश्व में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए ऐसी प्रदर्शनी लगाकर आप हिन्दुओं को जागृत कर रहे हैं । यह अच्छा कार्य है तथा इस कार्य में मैं भी आपको सहयोग करूंगा ।’
– श्री महंत कृष्णदास महाराज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय श्री पंच दिगंबर अग्नि अखाडा (दैनिक ‘सनातन प्रभात’, ३०.१.२०१९)
८. सनातन के ग्रंथों के विषय में हिन्दुत्वनिष्ठ मान्यवरों के अभिमत !
८ अ. ‘हम जयपुर, वाराणसी एवं धनबाद में एक बडे हिन्दुत्वनिष्ठ
संगठन के कार्यकर्ताओं से तथा अन्य हिन्दुत्वनिष्ठों से मिले । उन्हें सनातन के ग्रंथ दिखाने पर उन्होंने कहा, ‘‘आज तक हम केवल कार्य ही कर रहे थे । हमें धर्मशिक्षा का महत्त्व एवं शास्त्र के विषय में कुछ ज्ञात नहीं था । अब इन ग्रंथों के कारण हम भावपूर्ण कार्य कर पाएंगे ।’’
– स्मिता नवलकर, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (८.४.२०१४)
८ आ. ‘सनातन का ग्रंथ ‘देवनदी गंगाकी रक्षा करें !’ ‘Its not a book. Its thesis !’, अर्थात ‘यह ग्रंथ नहीं, अपितु एक शोधनिबंध है !!’
– श्री. अश्वनीकुमार च्रोंगू, ‘पनून कश्मीर’, जम्मू
९. सनातन के ग्रंथों के विषय में सनातन के संतों के अभिमत !
९ अ. सनातन के ग्रंथ वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक जगत के असामान्य ग्रंथों के रूप में लोगों के नित्य स्मरण में रहेंगे ! : ‘सनातन के अनेक ग्रंथों में विद्यमान ३० से ८० प्रतिशत लेखन पृथ्वी पर अब तक प्रकाशित अन्य किसी भी ग्रंथ में नहीं दिया गया है, अतः वह संपूर्णतः नया है ! वह तो ऋषि-मुनियों की भांति ध्यान में जाकर विश्वबुद्धि से प्राप्त किया गया अतींद्रिय ज्ञान है । इस ग्रंथसंपदा की प्रमुख विशेषता है शास्त्रीय परिभाषा में धर्मशिक्षा देना । सहस्रों साधकों को इन ग्रंथों के विषय में प्राप्त अनुभूतियां, इन ग्रंथों में विद्यमान चैतन्य को प्रमाणित करनेवाला मानो आध्यात्मिक प्रमाणपत्र ही है ।’ – सद्गुरु (स्व.) डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (वर्ष २०१३)
१०. ग्रंथों में विद्यमान ज्ञान की नियतकालिक, सामाजिक प्रसारमाध्यम आदि के द्वारा प्रसिद्धि !
१० अ. सनातन संस्था एवं उससे संलग्न संस्थाएं, समविचारी संगठनों के जालस्थल (‘ट्विटर’, ‘वॉट्सएप, ‘टेलिग्राम’ आदि जालस्थल) तथा ‘एप्स’ के द्वारा सनातन के ग्रंथों की जानकारी प्रकाशित की जाती है ।
१० आ. ‘www.youtube.com/Dharmashikshan’ इस ‘लिंक’ पर कार्यरत ‘धर्मशिक्षा’ वाहिनी (‘चैनल’) पर सनातन के ग्रंथों में विद्यमान ज्ञान पर आधारित ‘धर्मध्वजा कैसे खडी करनी चाहिए ?’, ‘उत्सव कैसे मनाने चाहिए ?’, ‘होलिकापूजन कैसे करें ?’ जैसे विषयों पर आधारित ८ भाषाओं में लघु चलचित्र (‘वीडियोज’) उपलब्ध हैं । ११.५.२०११ को आरंभ हुई इस ‘यूट्यूब वाहिनी’ का फरवरी २०२४ तक ३७ लाख ५७ सहस्र से अधिक लोगों ने अवलोकन किया है ।
१० इ. सनातन के ग्रंथों में विद्यमान लेखन संपूर्ण देश के २० नियतकालिकों, २१ ‘न्यूज पोर्टल’ तथा ४० समाचार-वाहिनियों अथवा स्थानीय वाहिनियों पर प्रसारित किया जा रहा है ।
११. सनातन के ग्रंथों के मुद्रण का मार्गक्रमण संख्या में १ करोड की ओर !
सनातन के ग्रंथों का शीघ्र ही १ करोड प्रतियों का मुद्रण पूर्ण होगा ! एक आध्यात्मिक संस्था के ग्रंथों की इतनी प्रतियां मुद्रित होना दुर्लभ है !
सनातन के ग्रंथकार्य में आप भी सम्मिलित हों !‘धर्मप्रसार करने के संदर्भ में सनातन के ग्रंथों का महत्त्व जानकर लेकर ग्रंथकार्य में सम्मिलित होना समष्टि साधना का तथा ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने का अनमोल अवसर है । गुरुदेवजी द्वारा वर्गीकृत कर रखे गए ५,००० से भी अधिक ग्रंथों का लेखन ग्रंथरूप में समाजतक यथाशीघ्र पहुंचना आवश्यक है । इस कार्य में आपके सहभाग के लिए हम आपका सदैव ही स्वागत करेंगे । ‘इस कार्य में सम्मिलित होने की इच्छा रखनेवाले अधिक जानकारी हेतु (0832) 2312334 क्रमांक पर अथवा [email protected], इस संगणकीय पते पर संपर्क करें’, यह आपसे अनुरोध है !’ |
सनातन के ग्रंथों के विषय में सनातन के संतों के अभिमत !
सनातन के ग्रंथ तो जीवन का सोना बनानेवाले पारस पत्थर !
‘गुरुदेवजी द्वारा निर्मित सनातन के ग्रंथ लोहे को सोना बनानेवाले पारसपत्थर की भांति हैं । इन ग्रंथों को पढकर अनेक लोगों ने उनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आने की अनुभूति की है । इन ग्रंथों से हमारे जीवन को गुरुभक्ति एवं ईश्वरभक्ति के पारसपत्थर का स्पर्श होता है तथा ये ग्रंथ हमारा जीवन चमकाते हैं ।’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी, गोवा. (१८.२.२०२२)
सनातन के ग्रंथ तो पृथ्वी पर स्थित ‘आध्यात्मिक रत्न’ हैं !
‘जिज्ञासुओं की आध्यात्मिक उन्नति हेतु सनातन के ग्रंथों के माध्यम से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अव्यक्त संकल्प कार्यरत हुआ है । उसके कारण ‘जो साधक ग्रंथों में विद्यमान मार्गदर्शन का सर्वांगीण दृष्टि से कार्यान्वयन करेंगे, उनकी आध्यात्मिक उन्नति होना निश्चित है । साधना के आरंभ से लेकर ईश्वरप्राप्ति तक का मार्गदर्शन देनेवाले ये ग्रंथ आगे जाकर सहस्रों वर्षाें तक ‘ब्रह्मांड में विद्यमान गुरुतत्त्व’ के रूप में अखंड कार्यरत रहेंगे !’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी, गोवा.) (१७.२.२०२४)
सनातन के ग्रंथ वेदों के समान स्वयंभू चैतन्य के स्रोत हैं !
‘वेदों के समान सनातन के ग्रंथ स्वयंभू चैतन्य के स्रोत हैं तथा उनका अध्ययन करनेवाले जिज्ञासु यदि ओं ने इन ग्रंथों में दिए गए मार्गदर्शन का कार्यान्वयन कियाकरें, तो वे साधक, शिष्य तथा आगे जाकर संत भी बन सकते हैं !’
– पू. रमानंद गौडा, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था, कर्नाटक. (२.९.२०२१)
सनातन के ग्रंथ वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक जगत के असामान्य ग्रंथों के रूप में लोगों के नित्य स्मरण में रहेंगे !
‘सनातन के अनेक ग्रंथों में विद्यमान ३० से ८० प्रतिशत लेखनकर पृथ्वी पर अबतक प्रकाशित अन्य किसी भी ग्रंथ में नहीं दिया गया है, अतः वह संपूर्णतः या नया है ! वह तो ऋषि-मुनियों की भांति ध्यान में जाकर विश्वबुद्धि से प्राप्त किया गया अतींद्रिय ज्ञान है । इस ग्रंथसंपदा की प्रमुख है विशेषता शास्त्रीय परिभाषा में धर्मशिक्षा देना । इन ग्रंथों में विद्यमान चैतन्य से सहस्रों साधकों को प्राप्त अनुभूतियां मानो आध्यात्मिक प्रमाणपत्र ही
है ।’
– सद्गुरु (स्व.) डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (वर्ष २०१३)