Supreme Court on Government criticism : सरकार की प्रत्येक आलोचना अपराध नहीं मानी जा सकती  ! – सर्वोच्च न्यायालय

  • विरोध और असंतोष इस तरह व्यक्त किया जाना चाहिए जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वीकार्य हो ।

  • धारा ३७० समाप्त  करने का विरोध करने वाले शिक्षक जावेद अहमद हजाम पर अपराध निरस्त करने का आदेश !

नई देहली – पुलिस को यह बताना आवश्यक हो गया है कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं लांघी गई हैं या नहीं। साथ ही इसके संबंध में संवेदनशील होने की बात कहते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ७ मार्च को बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त कर दिया। संबंधित प्रकरण अगस्त २०२२ में कोल्हापुर जिले का था जहां एक शिक्षक ने अनुच्छेद ३७० हटाने के विरुद्ध व्हाट्सएप स्टेटस पोस्ट किया और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दीं । उसके आधार पर हातकणंगले पुलिस ने जावेद अहमद हजाम नाम के शिक्षक के विरुद्ध प्रकरण प्रविष्ट किया ।

न्यायालय ने अपराध से दोषमुक्त करते हुए यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते हुए विरोध और असंतोष को लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वीकार्य तरीके से व्यक्त किया जाना चाहिए । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद १९ के खंड (२) के अंतर्गत लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है । वर्तमान प्रकरण में याचिकाकर्ता (प्राध्यापक) ने इस सीमा को नहीं लांघा है ।

इस कार्रवाई के विरुद्ध अप्रैल २०२३ में बॉम्बे उच्च न्यायालय में प्रविष्ट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अपराध को रद्द करने से मना कर दिया था। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने अपराध से मुक्त करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति अभय ओक और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को अनुच्छेद ३७० को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति की आलोचना करने का अधिकार है ।

शिक्षक ने क्या कहा ?

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जिस दिन अनुच्छेद ३७० हटाया गया उस दिन को ‘काला दिवस’ कहना विरोध और संताप व्यक्त करने की एक पद्धति है । यदि अनुच्छेद ‘१५३ ए’ के अंतर्गत राज्य की कार्रवाई के विरुद्ध प्रत्येक आलोचना या विरोध को अपराध माना जाता है, तो भारतीय संविधान की विशेषता वाला लोकतंत्र जीवित नहीं रहेगा ।