धर्मांधों का विध्वंसक आक्रोश !


उत्तराखंड में हलद्वानी जनपद के बनभुलपुरा में ८ फरवरी को बडे स्तर पर  में पत्थर फेंकने की घटना हुई । इसके मूल में अवैध मदरसा गिराने का प्रकरण था ! इस समय कट्टरपंथियों ने पुलिसकर्मी, महापालिका के अधिकारी और पत्रकारों पर भी पत्थर फेंके । इसमें ५० से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं । उस समय पुलिस थाने में पुलिसकर्मियों को जलाने का प्रयास भी किया गया । इसमें अबतक ६ लोगों की मृत्यु हुई है और लगभग ६०० व्यक्ति घायल हुए हैं । यह आंकडा भयंकर है । इस समय आगजनी भी की गई । बडा दंगा होने से परिसर में कर्फ्यू (संचारबंदी) लगाया गया है तथा दंगाईयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस विषय में आगे की कार्यवाही कर रहे हैं ।

दबदबा नहीं रहा !

अवैध मदरसा और नमाज पठन के लिए बनाया भवन जेसीबी द्वारा गिरा दिया गया । इससे दंगा हुआ; किंतु पुलिस ने केवल अश्रु गैस छोडे । इसलिए कुछ अधिक ही आक्रामक होकर भीड ने उपरोक्त प्रकरण किया । यह घटना यद्यपि उत्तराखंड में हुई है, तो भी यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अंतत: पूरे भारत में इसका प्रभाव दिखाई देगा । इसलिए सरकार, पुलिस तथा प्रशासन को ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए । वास्तव में उक्त घटना में पुलिस और अधिकारी न्यायालय का आदेश लेकर कार्यवाही करने गए थे; किंतु उससे कोई लाभ नहीं हुआ । इसका अर्थ यह कि कट्टरपंथी मुसलमान केवल पुलिस ही नहीं, अपितु सीधे न्यायालय की बात भी नहीं सुनते, यही स्पष्ट दिखता है । भय का दबाव तो मुसलमानों पर रहा ही नहीं । ‘मानो भारत देश अपना ही है और यहां की पूरी भूमि पर केवल अपना ही अधिकार है’, ऐसा मानकर वे सभी स्थानों पर अपना शौर्य दिखाते हैं । इसमें कितनी हिंसा हुई, कौन मरा, इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं रहता । ‘मस्जिद तथा मदरसे को क्षति नहीं होनी है’, वे केवल इतना मानते हैं । यदि किसी ने उन पर कार्यवाही करने का प्रयास किया, तो उनका आक्रोश ही देखने में आता है । यह सब जानते हुए भी बनभुलपुरा की पुलिस पूरी शक्ति के साथ और बडी संख्या में क्यों नहीं गई ? इससे पूर्व हुई घटनाओं अथवा अनुभवों से शिक्षा लेकर पुलिस इन कार्यवाहियों का पूर्व नियोजन क्यों नहीं करती ?

स्वयं कबतक घायल होते रहेंगे? ‘अपने ऊपर हाथ उठाने का साहस किसी को न हो’, पुलिस ऐसा भय कब निर्माण कर पाएगी? अपना महत्त्व स्वयं ही अल्प कर दिया, तो पुलिस का क्या उपयोग? पुलिस को इन प्रश्नों पर विचार करना चाहिए । पुलिस के पर्याप्त नियोजन का अभाव एवं अकार्यक्षमता के कारण ५० व्यक्ति घायल हुए, पुलिस प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए । इससे भी पहले ऐसे प्रकरणों में पुलिस ही होती थी ! ‘अवैध मस्जिद अथवा मदरसा पूर्णत: गिराकर तथा वहां कट्टरपंथियों के आक्रमण को असफल कर पुलिस यदि सशक्त प्रत्युत्तर दे, साथ ही पुलिस को मारने का उनका षड्यंत्र विफल करे’, जनता को अपेक्षित ऐसा पराक्रम पुलिस कब दिखा पाएगी? अथवा क्या प्रत्येक बार इन कट्टरपंथियों का लक्ष्य ही बनती रहेगी?आज उत्तराखंड में हुआ, कल किसी और जिला अथवा राज्य में ऐसा होगा । कुछ समय पहले कट्टरपंथियों ने कोल्हापुर में अवैध मदरसे पर कार्यवाही करने गए महापालिका के अधिकारियों का भारी विरोध किया था । ‘ऐसी घटनाओं को नियंत्रित कौन करेगा?’ यह एक बडा प्रश्न है । सरकार इस पूरी पृष्ठभूमि पर त्वरित ध्यान दे ।

अवैध मदरसे बनाए ही कैसे जाते हैं ? उस पर किसी का नियंत्रण कैसे नहीं है? अथवा इसकी अनदेखी करनेवालों पर कार्यवाही क्यों नहीं होती? अवैध मस्जिदें  और मदरसों में बंद द्वारों के पीछे क्या होता है, इस पर भी कौन ध्यान देता है? अनेक वर्षाें से राष्ट्रद्रोह की ऐसी बातों पर कार्यवाही न करने के प्रकरण में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दंड क्यों नहीं दिया जाता? ये प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं । अवैध निर्माण गिराने के साथ इन प्रश्नों का भी समाधान होना आवश्यक है ।

आक्रमणों का मूल !

आज जो उत्तराखंड में हुआ, उसका मूल ढूंढना हो, तो हमें कुछ वर्ष पीछे देखना होगा । पुलिस पर हाथ उठाया, तो भी हमारा कुछ नहीं बिगडेगा, वर्ष २००६ में भिवंडी दंगे के उपरांत कट्टरपंथियों में यह मानसिकता पूरी तरह घर कर गई है ! इस दंगे में कट्टरपंथियों ने २ पुलिसकर्मियों को सबके सामने जला दिया था । वर्ष २०१२ में मुंबई के आजाद मैदान में हुए दंगे में कट्टरपंथियों के आक्रमण में अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए, महिला पुलिस के तो कपडे भी फाड डाले गए । पुलिस की प्रतिमा खंड खंड हो गई । कभी ‘मुंबई पुलिस’ के रूप में अपनी धाक जमानेवाले पुलिसकर्मियों ने इस दंगे के कारण अपना आत्मसम्मान खो दिया । संक्षेप में कहा जाए, तो प्रत्येक बार पुलिस को ही लक्ष्य किया जाता है ! विधि-व्यवस्था की रक्षा करनेवालों पर ही कार्यवाही की जाती हो, तो भविष्य में एक दिन पुलिस प्रशासन का अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा । ‘कट्टरपंथी भी इतने अल्प समय में सारी सामग्रियों के साथ कैसे आक्रमण करते हैं?’ पुलिस को इसका भी अध्ययन करना चाहिए । लापरवाही छोड पुलिस को अब सतर्क रहना होगा । इस विषय में उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी और भाजपा के सांसद ब्रिजलाल ने आरोप लगाया है कि इतना पूर्व नियोजित षड्यंत्र रचा गया, तो उसमें  बांगलादेशी घुसपैठिए और ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ के हाथ होने की संभावना है । सांसद के इस वक्तव्य पर विचार कर सरकार को दंगे की जडें उखाड फेंकनी  चाहिए ।

भारत का विध्वंसक भविष्य !

अभी तो स्थानीय स्तर पर भारत में सर्वत्र बने अवैध निर्माणों को तोडने की कार्रवाई हो रही है और हिन्दू संगठन इसमें पहल कर रहे हैं; यह संतोषजनक है । किंतु सिक्के के दूसरे भाग को अस्वीकार नहीं सकते । इसलिए अवैध निर्माण गिराने का यह काम करते समय संबंधित लोगों को पर्याप्त सुरक्षा कैसे मिले, इस पर भी विचार होना चाहिए । उत्तराखंड में एक दंगे के कारण यद्यपि स्थानीय लोगों की हानि हुई, तो भी इसका प्रतिसाद पूरे देश में सुनाई देगा । इस दंगे से कट्टरपंथियों को अधिक क्रोध आएगा तथा वे और भी आक्रामक हो जाएंगे, ऐसे में हिंसा को फैलने से रोकना कठिन हो जाएगा । उत्तराखंड में हुआ विध्वंस भविष्य में होनेवाले चुनावों की पृष्ठभूमि पर गंभीर है । पुलिस को संवेदनशील एवं सतर्क रहकर अपने साथ देश को भी सुरक्षित जीवन प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए ।

पुलिस जनता को अपेक्षित उपलब्धि प्राप्त करेगी अथवा बार बार कट्टरपंथियों का ही लक्ष्य (निशान) बनती रहेगी ? पुलिस को इसका उत्तर देना चाहिए !