आयुर्वेद में विशद दिनचर्या सहस्रों वर्षाें के उपरांत भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक !

दिनचर्या का पालन करना क्यों आवश्यक है ?

यदि आप इस लेख में दी गई दिनचर्या का अध्ययन करते हैं, तो आपको ध्यान में आएगा कि,

अ. व्यायाम एवं स्नान करने के उपरांत शरीर की जठराग्नि प्रदीप्त होती है एवं उसी समय आहार लेने के उपरांत उसका अच्छे से पाचन होता है । बहुत लोग कहते हैं, ‘मुझे उठने पर पहले चाय चाहिए ।’ भूखे पेट चाय पीने से जठराग्नि मंद हो जाती है एवं वहीं से पाचन की शिकायतें आरंभ हो जाती हैं ।

आ. जिस प्रकार प्रतिदिन आहार महत्त्वपूर्ण है, ठीक उसी प्रकार व्यायाम भी महत्त्वपूर्ण है, यह बात मन पर अंकित करनी चाहिए ।

इ. अपनी नौकरी, व्यवसाय का स्वरूप कैसा है, उसके अनुसार स्वयं का नियोजन कर दिनचर्या में विशद किए गए जो-जो कृत्य करना संभव है, वे करने का आरंभ करें । इससे स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायता होगी ।

– वैद्या (श्रीमती) मुक्ता लोटलीकर, पुणे (२९.१.२०२४)

कुछ दिन पूर्व एक विख्यात योग प्रशिक्षक ने एक व्याख्यान में अपने स्वास्थ्य का रहस्य बताते हुए अपनी दिनचर्या विशद की । वह पूर्णतः आयुर्वेद में विशद किए नियमों के अनुसार थी । आयुर्वेद सहस्रों वर्षाें से हैं; परंतु उसमें विद्यमान सिद्धांत आज भी लागू होते हैं एवं उसी आधार पर मानव का स्वास्थ्य अबाधित रख सकते हैं; इसीलिए आयुर्वेद चिरंतन हैं । आज के इस लेख में हम ‘स्वयं की दिनचर्या आयुर्वेद के अनुसार कैसी होनी चाहिए ? वह वैसी क्यों हो ?’, इसका महत्त्व ज्ञात कर लेंगे । वर्तमान भागदौड एवं तनावभरे जीवन में हम इस आदर्श दिनचर्या का १०० प्रतिशत पालन, एक ही दिन में संभव नहीं होगा; परंतु प्रत्येक को आदर्श जीवनशैली अधिकाधिक आत्मसात करने का प्रयास निश्चित रूप से करना चाहिए ।


१. सवेरे शीघ्र उठना

‘ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः । (अष्टाङ्गहृदय, सूत्रस्थान, अध्याय २, श्लोक १)’, अर्थात ‘निरोगी व्यक्ति को जीवन की रक्षा के लिए (अच्छे स्वास्थ्य के लिए) ब्रह्म मुहूर्त पर उठना चाहिए ।’ छोटे बालक, बीमार व्यक्ति, वयोवृद्ध अथवा जो रात को देर से सोते हैं, वे इसके अपवाद हैं । इस श्लोक में ‘निरोगी व्यक्ति’ पर बल दिया गया है । प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त पर उठना चाहिए; परंतु उसके लिए रात को समय से सोना चाहिए एवं न्यूनतम ७ घंटे की नींद होनी चाहिए । इससे आयु की रक्षा होती है । प्रातः शीघ्र उठने से मलप्रवृत्ति साफ होती है । प्रतिदिन देर से उठनेवाले व्यक्ति को मलबद्धता का कष्ट होता ही है । तदनंतर पेट साफ नहीं होता; इसलिए चाय पीना, तंबाकू खाना, फिर ऐसा किए बिना शौच नहीं होता । यदि पेट साफ न हो, तो अनेक रोगों को निमंत्रण मिलता है । मुंह से दुर्गंध आती है, अन्न ठीक से नहीं पचता, भूख नहीं लगती, आलस्य जैसी समस्याएं निर्माण होती हैं; इसलिए रात को शीघ्र सोना एवं सवेरे शीघ्र उठना, यह सरल कृति करने से हमारी स्वास्थ्य संबंधी अधिकांश समस्याएं घट जाती हैं ।

२. सवेरे उठने पर प्रथम शौच जाना

सवेरे उठने पर पेट साफ होना, अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है । कई लोग शौच के लिए बैठे-बैठे समाचार पत्रिका पढना, चल-दूरभाष (मोबाइल) देखना आदि करते हैं । यह अत्यंत अनुचित है । मल-मूत्र विसर्जन करते समय यदि मन को विचलित करनेवाली बातें हो जाएं, तो पेट साफ नहीं होगा । परिणामतः ऐसा व्यक्ति बहुत सा समय शौचालय में बिताता है; इसलिए ऐसी चूकें टालनी चाहिए । यदि किसी को शौच की संवेदना न आए, तो बल लगाने की आवश्यकता नहीं है । शौच की संवेदना होने पर ही शौच जाएं ।

वैद्या (श्रीमती) मुक्ता लोटलीकर

३. दांत स्वच्छ करना एवं गंडूष (कुल्ला) करना

दांत स्वच्छ करने के लिए वर्तमान में सर्वत्र ‘टूथपेस्ट’ का ही प्रयोग किया जाता है । हमारे यहां वनस्पतियों की कोमल टहनियां चबाना, दंतमंजन का उपयोग करना, ये प्रथाएं पूर्व से चली आ रही हैं; परंतु भारत में पश्चिमियों ने टूथपेस्ट की आदत डाली । काल के अनुरूप यह परिवर्तन है; तथापि हमें बीच-बीच में दांत स्वच्छ करने के लिए दंतमंजन का उपयोग करना चाहिए । उसमें विद्यमान कसैली, तीखी एवं कडवे स्वाद की वनस्पतियां दांत एवं मसूडों का स्वास्थ्य बनाए रखती हैं ।

तदनंतर गंडूष अर्थात कुल्ला करना आवश्यक है । तब वे पानी के हों अथवा औषधी काढे के अथवा तेल के हों । दांत, मसूडे, गले का स्वास्थ्य अच्छा रहने के लिए तेल से (तिल अथवा नारियल तेल से) कुल्ला करें । कुल्ला करने के उपरांत वह तेल थूक दें एवं कुल्ला करें । इसी क्रिया को ‘ऑइल पुलिंग’ कहते हैं ।

४. प्रतिदिन अभ्यंग करना महत्त्वपूर्ण !

प्रतिदिन देह पर तेल मलने का महत्त्व हमने पहले भी समझ लिया है । अभ्यंग करने से देह की थकान दूर होती है, वायु घटती है, देह सुदृढ रहती है, आयु बढती है, त्वचा सुकुमार रहती है । हमारे यहां दीपावली की अवधि में अथवा ठंड के मौसम में अभ्यंग किया जाता है । अन्य समय कोई अभ्यंग नहीं करता; परंतु आयुर्वेद ने दिनचर्या में इसका समावेश किया है, अर्थात प्रतिदिन अभ्यंग करना अपेक्षित है । यदि प्रतिदिन संभव न हो, तो न्यूनतम सप्ताह में २ बार तो संपूर्ण देह का अभ्यंग करना चाहिए । इसके लिए तिल के तेल का प्रयोग कर सकते हैं । यदि पूरे शरीर का अभ्यंग करना संभव न हो, तो सिर एवं पांव पर तेल अवश्य लगाएं । जिन्हें कफ अथवा अपचन हुआ है, ऐसे लोगों को अभ्यंग नहीं करना चाहिए ।

५. प्रतिदिन व्यायाम करना

व्यायाम के लाभ तो प्रत्येक व्यक्ति जानता ही है । व्यायाम से शरीर हलका रहता है, पूरे दिन हम जो कुछ काम करते हैं, व्यायाम करने से उसके लिए सामर्थ्य मिलता है । शरीर सुडौल एवं बलशाली होता है । व्यायाम करते समय यथासंभव स्वयं की शक्ति की आधी मात्रा का उपयोग करें, अर्थात मुंह से जब सांस लेनी पडे, तो रुक जाएं । अधिक मात्रा में व्यायाम करना टालें ।

६. शरीर पर उबटन लगाना एवं तदनंतर स्नान करना

इसे आयुर्वेद में ‘उद्वर्तन’ कहते हैं । शरीर पर प्रतिदिन उबटन लगाने से कफ घटता है, अतिरिक्त चरबी घटती है, त्वचा स्वच्छ होती है । उबटन लगाकर उष्ण (गुनगुना) पानी से स्नान करें । कंधे से नीचे उष्ण पानी का उपयोग करें, माथा एवं मुंह गुनगुने अथवा ठंडे पानी से धोएं । आंख एवं बाल के लिए गरम पानी अहितकारी है । जिन्हें जुकाम, अपचन, अतिसार हुआ है, ऐसे लोगों को एवं सर्वसामान्य लोगों को भोजन के पश्चात स्नान नहीं करना चाहिए ।

७. स्नान के उपरांत भोजन करना

रात तो किया हुआ भोजन पूर्णतः पचने के उपरांत ही स्वयं की प्रकृति के लिए उचित एवं आवश्यक मात्रा में भोजन करें ।

– वैद्या (श्रीमती) मुक्ता लोटलीकर, पुणे (२९.१.२०२४)