१. पृथ्वी पर देवता का मंदिर स्थापित होने की सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया तथा उसका आध्यात्मिक महत्त्व
‘पृथ्वी पर जब किसी देवता के मंदिर का निर्माण होता है, उस समय संबंधित देवता की तत्त्वतरंगें ब्रह्मांड के देवलोक से पृथ्वी की दिशा में आकृष्ट होती हैं । वे इस मंदिर के शिखर के माध्यम से मंदिर में प्रविष्ट होती हैं । उसके उपरांत ये तत्त्वतरंगें मंदिर के शिखर से सीधे मंदिर में स्थापित देवता की मूर्ति में आकृष्ट होकर मंदिर के गर्भगृह में स्थित देवता की मूर्ति में कार्यरत होती हैं तथा उस देवता की मूर्ति से उसके आसपास के वायुमंडल में प्रक्षेपित होती हैं । इस प्रकार पृथ्वी पर किसी देवता का मंदिर स्थापन होने के कारण ‘मंदिर में आनेवाले श्रद्धालु, मंदिर के आस-पास के परिसर तथा पृथ्वी के वायुमंडल’, इन तीनों घटकों की शुद्धि होकर वे सात्त्विक बन जाते हैं । उसके कारण पृथ्वी पर स्थित मनुष्य के मन में धर्माचरण एवं साधना करने से संबंधित सात्त्विक विचार आते हैं । उनके द्वारा धर्माचरण तथा व्यष्टि एवं समष्टि स्तर की साधना होने लगती है । पृथ्वी पर हिन्दू देवता का मंदिर स्थापित होने के कारण मनुष्य की भौतिक एवं आध्यात्मिक, इन दोनों स्तर पर उन्नति होनेवाली है ।
२. श्रीरामजी के मंदिर की स्थापना के कारण भारत में सुप्तावस्था में स्थित दैवी शक्ति जागृत होकर भारत आध्यात्मिक दृष्टि से शक्तिशाली बनेगा
जिस प्रकार मनुष्य में इडा, पिंगला एवं सुषुम्ना, ये तीन नाडियां होती हैं; उसी प्रकार विराट पुरुष की चंद्रनाडी, सूर्यनाडी एवं सुषुम्ना नाडी, ऐसी ३ प्रमुख नाडियां होती हैं । विराट पुरुष को परमेश्वरीय तत्त्व से जोडनेवाली दिव्यतम ‘ब्रह्मनाडी’ होती है । भारत के अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होने के कारण भारतदेश ब्रह्मनाडी से जुड जाएगा । उसके कारण पृथ्वी की ओर विश्वस्तरीय सकारात्मक ऊर्जा, चैतन्य, धर्मतत्त्व एवं ब्रह्मज्ञान का प्रवाह आरंभ होगा तथा वह भारत में कार्यरत होगा । उसके कारण भारत में नवचेतना का संचार होगा । भारत के ५१ शक्तिपीठ, १२ ज्योतिर्लिंग, अष्टविनायक, दत्तपीठ, धर्मपीठ इत्यादि धार्मिक शक्तिस्थलों में सुप्तावस्था में स्थित दैवीय शक्ति जागृत होकर भारत आध्यात्मिक दृष्टि से शक्तिशाली हो जाएगा । अयोध्या के प्रभु श्रीराम के मंदिर के रूप में भूगर्भ की गहराई में सुप्तावस्था में स्थित धर्मबीज तथा ज्ञानबीज का अंकुरण होगा । उसके कारण मानवजाति के कल्याण हेतु आवश्यक अखंड हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने में भारतदेश संपूर्ण विश्व के लिए ‘विश्वगुरु’ के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।
३. श्रीराम की कृपा के कारण समस्त हिन्दुओं में श्री दुर्गादेवी एवं हनुमान का तत्त्व जागृत होकर उनके द्वारा राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति का कार्य होगा
प्रभु श्रीराम की कृपा से कर्महिन्दुओं में श्री दुर्गादेवी का तत्त्व कार्यरत होकर राष्ट्र का उत्कर्ष होगा, साथ ही समस्त हिन्दू श्रद्धालुओं में श्री हनुमान के तत्त्व जागृत हो जाएगा । उसके कारण उनमें राष्ट्राभिमान एवं धर्माभिमान जागृत होकर उनके द्वारा भारत की रक्षा का कार्य होगा । श्रीराम की कृपा से कर्महिन्दुओं के मन में व्यष्टि स्तर पर श्री हनुमान की भांति दास्यभाव तथा श्रीराम के प्रति भक्ति जागृत होकर उनकी व्यष्टि स्तर की साधना होगी, साथ ही समष्टि स्तर पर उनमें शौर्य जागृत होकर उनके द्वारा हिन्दू धर्म की रक्षा का पुनीत कार्य होगा ।
४. हिन्दुओं को विभिन्न प्रकार के बल प्राप्त होकर भारत बलसंपन्न हिन्दू राष्ट्र बनेगा ।
श्रीराम श्रीविष्णु के सातवें अवतार हैं । श्रीविष्णु के विभिन्न अवतार पृथ्वी पर धर्मसंस्थापना करने हेतु अवतरित होते रहते हैं । उसके कारण वे सभी दृष्टि से बलसंपन्न होते हैं । अतः श्रीराम की उपासना करनेवाले जन्महिन्दुओं में रज-तम का स्तर अल्प होकर उनमें सात्त्विकता बढने के कारण वे जन्महिन्दू से कर्महिन्दू बनने की ओर अग्रसर होनेवाले हैं । ऐसे कर्महिन्दुओं को प्रभु श्रीराम के अवतारी बल के विभिन्न रूपों से युक्त बाहुबल, मनोबल, बुद्धिबल, प्रज्ञाबल अथवा ज्ञानबल तथा आत्मबल प्राप्त होकर उनके द्वारा निम्न प्रकार से भारत में स्थूल से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का अवतारी कार्य होगा ।
विभिन्न प्रकार के बल, बल का स्तर तथा हिन्दुओं को बल प्राप्त होने के कारण उनपर होनेवाला परिणाम
५. श्रीराम की कृपा से अखिल विश्व के सभी कर्महिन्दू चारों ऋणों से मुक्त होंगे
प्रत्येक मनुष्य पर ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण’, ऐसे ४ प्रकार के ऋण होते हैं । श्रीराम के मंदिर की स्थापना के उपरांत संपूर्ण पृथ्वी पर श्रीराम की अवतारी शक्ति एवं चैतन्य कार्यरत हो जाएगा । उसके कारण संपूर्ण विश्व के हिन्दुओं के मन में स्थूल से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने की दैवीय प्रेरणा जागृत होगी । श्रीराम की कृपा से धर्मसंस्थापना के अवतारी कार्य में हिन्दू सम्मिलित होकर वे इस दैवी कार्य को पूर्णत्व की ओर ले जाएंगे । श्रीराम श्रीविष्णु के ७ वें अवतार हैं, उनके मंदिर की स्थापना से कर्महिन्दू देवऋण से मुक्त हो जाएंगे । श्रीराम की कृपा से समस्त हिन्दुओं को हिन्दुओं के धर्मशास्त्र एवं अध्यात्मशास्त्र का दैवीय ज्ञान मिलेगा, उनके द्वारा ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम एवं संन्यासाश्रम इन चारों आश्रमों की भांति धर्माचरण एवं साधना होगी । इससे हिन्दुओं के अतृप्त पूर्वजों को सद्गति प्राप्त होगी, हिन्दू पितृऋण चुका पाएंगे । हिन्दुओं के द्वारा धर्माचरण एवं साधना करने के कारण गोत्रप्रवर्तक, सत्यधर्मप्रवर्तक एवं धर्मरक्षक ऋषियों की कृपा होगी तथा कर्महिन्दू ऋषिऋण से मुक्त हो जाएंगे । उसी प्रकार जागृत कर्महिन्दुओं का हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में सम्मिलित होने के कारण समस्त हिन्दू समाज का ही उद्धार होनेवाला है; जिससे कर्महिन्दू समाजऋण से भी मुक्त हो जाएगा । इस प्रकार समस्त हिन्दुओं पर श्रीराम की कृपा होने के कारण सभी कर्महिन्दू चारों ऋणों से मुक्त हो जाएंगे ।
६. कर्महिन्दुओं में क्षात्रतेज एवं ब्राह्मतेज जागृत होकर उनका ऐहिक एवं पारमार्थिक उत्कर्ष होगा
अज्ञानी हिन्दुओं को हिन्दू धर्म के धर्मशास्त्र एवं अध्यात्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त होने से, उनमें ब्राह्मतेज जागृत होगा एवं व्यष्टि स्तर पर साधना करने के कारण उन्हें मोक्षप्राप्ति होगी, तथा कर्महिन्दुओं द्वारा समष्टि स्तर पर संपूर्ण पृथ्वी पर रामराज्यरूपी अखंड हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के कारण उन्हें पृथ्वी पर राज्य का उपभोग करने का सात्त्विक सुख प्राप्त होगा । इस प्रकार प्रभु श्रीराम की कृपा के कारण कर्महिन्दुओं का ऐहिक एवं पारमार्थिक उत्कर्ष होगा ।
७. श्रीराम की ‘राजाराम’ रूप की शक्ति कार्यरत होने के कारण आदर्श एवं दैवीय गुणों से संपन्न राजा का उदय होगा
अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर की स्थापना होने के कारण उनके अनेक आदर्श रूपों में से उनका ‘आदर्श राजा’ का रूप कार्यरत होगा । इससे संपूर्ण पृथ्वी पर ‘अखंड हिन्दू राष्ट्र’ रूपी राजाराम का ‘रामराज्य’ स्थापित हो जाएगा । श्रीराम के ‘राजाराम’ रूप की शक्ति कार्यरत होने कारण राजाराम की भांति आदर्श राजा का उदय होगा ।
७ अ. आदर्श राजा में समाहित दैवी लक्षण
इस राजा में प्रभु राजाराम की भांति ‘बुद्धिमान, कुलीन, इंद्रियनिग्रह से युक्त, विद्यासंपन्न, पराक्रमी, मितभाषी, यथाशक्ति दान देनेवाला तथा कृतज्ञ रहनेवाला’ तेजस्वी राजा के ये अष्टगुण उसमें विद्यमान होंगे, साथ ही उसमें श्री हनुमान की भांति ‘बुद्धि, बल, कीर्ति, धैर्य, निर्भयता, उत्तम स्वास्थ्य, चपलता एवं भाषण कुशलता’, ये दैवी गुण भी होंगे ।
८. पंचमहाभूत एवं महाकाल के प्रसन्न होने से क्रमशः निसर्गचक्र एवं कालचक्र अनुकूल होगा; जिसकेफलस्वरूप धर्माधिष्ठित साम्राज्य लंबे समय तक टिके रहेंगे
राजा एवं प्रजा, ये दोनों जब धर्माचरणी तथा साधना करनेवाले होंगे, तब धर्म की मूर्ति विभिन्न देवता तथा ऋषिगण उन पर अत्यंत प्रसन्न होते हैं । साथ ही उनके संपूर्ण राज्य पर कृपा का वर्षाव करते हैं । उसके कारण पंचमहाभूत तत्त्व शांत होकर तारक स्थिति में कार्यरत हो जाते हैं । इसके फलस्वरूप निसर्गचक्र मानव के लिए अनुकूल बन जाता है । धर्माचरण एवं साधना के कारण महाकाल अर्थात शिवजी का परमरूप प्रसन्न होता है । उसका परिणाम काल पर होकर कालचक्र धर्मचक्र के अनुरूप होता है । उसके कारण जब धर्माधिष्ठित साम्राज्यों का उदय होता है, तो वे लंबे समय तक टिके रहते हैं । इसके फलस्वरूप ऐसे राज्यों की प्रजा मुक्ति एवं मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं ।
९. अयोध्या में श्रीराम मंदिर की स्थापना होने से भारत में हिन्दू राष्ट्र की नींव रखी जाना
इस प्रकार ‘सभी दृष्टि से आदर्श रामराज्य की स्थापना होने हेतु अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर की स्थापना होना’ अत्यंत आवश्यक है । इस मंदिर की स्थापना के कारण राजाराम की भांति यथार्थ आदर्श तथा दैवी गुणों से संपन्न आदर्श हिन्दू राज्य का उदय होगा । उसके कारण श्रीराम की जन्मभूमि में अर्थात अयोध्या में श्रीराम के मंदिर की स्थापना होने से भारत में हिन्दू राष्ट्र की नींव रखी जाएगी तथा आनेवाले समय में यह दैवीय कार्य पूर्णत्व को पहुंचेगा तथा उससे अखिल धरती अर्थात ‘एकछत्र हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होगी ।
१०. प्रार्थना
‘हे श्रीराम, ‘हम हिन्दुओं पर आपकी कृपा होकर शीघ्रातिशीघ्र आदर्श राजा एवं आदर्श प्रजा की निर्मिति हो तथा इस धरती पर शीघ्रातिशीघ्र संपूर्ण सृष्टि का कल्याण करनेवाले अखंड हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो’, यही आपके श्रीचरणों में हम कर्महिन्दुओं की आर्त प्रार्थना है ।’
– सुश्री (कु.) मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६५ प्रतिशत) (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (७.११.२०२३)
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |