केवल ३ प्रतिशत प्रकरणों में ही अपराधियों को दंड सुनाया गया !
नई देहली – द्रुत गति विशेष न्यायालयों में जनवरी २०२३ तक प्रलंबित पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट) प्रकरणों का ‘इंडियन चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड’ ने एक विवरण (रिपोर्ट) प्रकाशित किया है । उसमें कहा है कि देश में पोक्सो के २ लाख ४३ सहस्र प्रकरण प्रलंबित हैं । वर्ष २०२२ में केवल ३ प्रतिशत प्रकरणों में अपराधियों को दंड सुनाया गया था । यदि नए प्रकरण प्रविष्ट नहीं होंगे, तो इन प्रकरणों का निष्कर्ष देने में न्यायालय को ९ वर्ष लगेंगे ।
कानून मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण विभाग की जानकारी के अनुसार यह विवरण बनाया गया है । इसमें कहा गया है कि जनवरी २०२३ तक २ लाख ६८ सहस्र ३८ प्रकरणों की प्रविष्टियां की गई थीं, उनमें से केवल ८ सहस्र ९०९ प्रकरणों में दोषियों को दंडित किया गया है ।
पोक्सो द्रुत गति विशेष न्यायालयों में प्रतिवर्ष अपेक्षित १६५ नहीं, अपितु केवल २८ प्रकरणों पर सुनवाई होती है !
केंद्र सरकार द्वारा वर्ष २०१९ से द्रुत गति विशेष न्यायालयों का आरंभ किया है । इनके लिए १ सहस्र ९०० करोड रुपए का प्रबंध किया गया था । इन न्यायालयों को प्रत्येक ४ माह के उपरांत ४१-४२ अभियोग एवं प्रतिवर्ष १६५ अभियोगों पर सुनवाई करने का लक्ष्य दिया गया था; परंतु प्रति वर्ष केवल २८ प्रकरणों की सुनवाई की गई है, इस रिपोर्ट से यही स्पष्ट हुआ है । इस परिस्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ सूचनाएं दी गई हैं । इनमें से कुछ इस प्रकार हैं, ‘पोक्सो प्रकरणों की सूची जालस्थल पर होनी चाहिए । द्रुत गति विशेष न्यायालयों की संख्या बढानी चाहिए । पीडिता एवं उसके परिजनों को सुरक्षा की आपूर्ति की जानी चाहिए ।’
संपादकीय भूमिकाद्रुत गति विशेष न्यायालयों के केवल एक कानून के संदर्भ में इतने प्रकरण प्रलंबित हैं, तो अन्य प्रकरणों के प्रलंबित अभियोगों की कल्पना भी नहीं कर सकते । यदि द्रुत गति विशेष न्यायालयों की यह स्थिति होगी, तो भारत में द्रुत गति से न्याय मिलना कठिन है, यही ध्यान में आता है ! |