बैंकॉक (थाईलैंड) – माता अमृतानंदमयी देवी, जिन्हें पूरी दुनिया श्रद्धापूर्वक ’अम्मा’ कहती हैं, ने २६ नवंबर को ’विश्व हिन्दू कांग्रेस’ के अंतिम दिन सुबह के सत्र का मार्गदर्शन किया । इस समय उन्होंने कहा, ’’हम आज यहां ‘विश्व की सबसे प्राचीन तथा महान सभ्यता’ के नाम पर एकत्रित हुए हैं ।’ हिन्दू आस्था विभिन्न सिद्धांतों तथा मूल्यों का संगम है तथा इसमें विश्व का कल्याण करने एवं समृद्धि लाने की क्षमता है । सनातन धर्म सदा से ही मनुष्य तथा प्रकृति के मध्य प्रगाढ संबंध के प्रति जागरूक रहा है । यह हिन्दू धर्म ही था जिसने विश्व को धर्म तथा यज्ञ, गुण तथा आत्म-बलिदान की शिक्षा दी । आज संसार में ’प्रेम’ एवं ’निःस्वार्थ सेवा’ लुप्त होती जा रही है । केवल धर्म की पुनर्स्थापना ही विश्व तथा मानवता को बचा सकती है । समय की मांग है कि शरणागत भाव से इस प्रकार के कार्य बारबार आयोजित करें !’’
(सौजन्य : World Hindu Congress)
आधुनिक विश्व में तनाव धर्म की उपेक्षा के कारण है !
अम्मा ने आगे कहा कि आधुनिक विश्व में सारा तनाव धर्म को दुर्लक्ष करने तथा उसका आचरण न करने के कारण निर्माण हुआ है । हम मानव निर्मित कानूनों को स्वीकार करते हैं; लेकिन इन सबके ऊपर ईश्वरीय विधान है जिसके कारण हम एक सूत्र में पिरोए गए हैं । इसी को ’धर्म’ कहते हैं । हम मानव निर्मित कानूनों के भय से अनुचित कार्य करने से बचते हैं । इसी प्रकार धर्म के नियमों को तोड़ने का परिणाम संसार को भुगतना पड़ेगा । जैसे गुरुत्वाकर्षण प्रकृति का नियम है, वैसे ही धर्म संपूर्ण ब्रह्मांड का नियम है । सरकारें राष्ट्र के संविधान तथा कानूनों में परिवर्तन कर सकती हैं; लेकिन सृष्टि के नियम अर्थात धर्म को कोई नहीं बदल सकता । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब लोग धर्म से दूर होते हैं तभी समाज की सारी समस्याएं हमारे सामने खडी हो जाती हैं ।
प्रत्येक मनुष्य को धर्म का पालन करना चाहिए !
इस समय अम्मा ने रामायण में जटायु का उदाहरण देते हुए कहा कि अधर्म को रोकने के प्रयास कभी व्यर्थ नहीं होते । जब हम अपनी क्षमता से धर्म की रक्षा करने का प्रयास करते हैं तो धर्म हमारी रक्षा करता है । ऋषियों ने ’धर्म’ नाम दिया है तथा यह सौंदर्य एवं पूर्णता के माध्यम से मानव जाति, प्रकृति तथा ईश्वर को जोड़ने का काम करता है । प्रत्येक मनुष्य को धर्म का पालन करना चाहिए ।