नागपुर (महाराष्ट्र) – ‘अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद’ ने दशहरे के दिन रावण की प्रतिमा का दहन करनेवले व्यक्तियों तथा मंडलों के विरुद्ध अपराध पंजीकृत करने की मांग की है, साथ ही इस प्रथा को स्थाईरूप से बंद करने की भी मांग की है । ‘अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद’ की भंडारा जिले की तुमसर एवं मोहाडी शाखाओं ने, साथ ही ‘ऑल इंडिया आदिवासी पीपल्स फेडरेशन, नागपुर’ की तुमसर शाखा ने भंडारा के पुलिस अधीक्षक, तहसीलदार एवं मंडल विकास अधिकारी को ज्ञापन सौंपकर यह मांग की है । यह ज्ञापन सामाजिक माध्यमों पर भी प्रसारित हुआ है । यदि इस मांग को माना नहीं गया, तो इन संगठनों ने ‘आक्रोश फेरी’ निकालने की चेतावनी दी है ।
इस ज्ञापन में परिषद ने कहा है कि,
१. रावण सभी के साथ न्याय करनेवाला न्यायप्रिय राजा था । (रावण ने अनेक ऋषि-मुनियों की हत्याएं की, साथ ही स्त्रियों परअत्याचार किए । ऐसा होते हुए भी उसे न्यायप्रिय बोलना हास्यास्पद है ! – संपादक) रावण विभिन्न गुणों का समुच्चय है । वह संगीत विशेषज्ञ, राजनीतिज्ञ, उत्कृष्ट शिल्पी, आयुर्वेदाचार्य तथा विवेकवादी था । ऐसा होते हुए भी उसकी प्रतिमा का दहन कर उसे तथा उसके गुणों का अनादर करना अनुचित है । (संपूर्ण विश्व में ओसामा बिन लादेनसहित अनेक आतंकी उच्चशिक्षित हैं; इसलिए उन पर कार्यवाही करना क्या उनके गुणों का अनादर करना है’, ऐसा परिषद को लगता है ? – संपादक)
२. इतिहास का विकृतिकरण कर रावण को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है । प्रतिवर्ष दशहर के दिन रावण की प्रतिमा का दहन किया जाता है । इस व्यवस्था ने ऐसे एक राजा को बदनाम करने में कोई कसर शेष नहीं रखी है । (इतिहास में रावण की क्रूरता के अनेक स्थानों पर वर्णन मिलते हैं । रावणप्रेमियों को उनका अध्ययन क रना चाहिए ! – संपादक) वास्तव में देखा जाए, तो रावरण जैसा महापराक्रमी योद्धा हुआ नहीं तथा इसके आगे होगा भी नहीं । इसलिए किसी को भी रावण दहन की अनुमति न दी जाए ।
संपादकीय भूमिकाआज असुर का महिमामंडन करनेवाले कल आतंकियों, धर्मांधों एवं भ्रष्टाचारियों का भी महिमामंडन करने में कोई कसर नहीं छोडेंगे ! इसलिए ऐसे लोगों का वैचारिक प्रतिवाद करने के साथ ही सरकार को उन पर कठोर कार्यवाही करना आवश्यक ! |