आसुरीवृत्ति का नाश करनेवाली श्री दुर्गादेवी
देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि । मान्यता है कि नवरात्रि के इन नौ दिनों में देवी दुर्गा महाबलशाली दैत्यों का वध कर महाशक्ति बनी । उस समय समस्त देवताओं ने उनकी स्तुति की । देवी ने प्रसन्न होकर सभी को अभयदान देते हुए वचन दिया कि,
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।
तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ॥ — मार्कंडेयपुराण ९१.५१
अर्थ : जब-जब दैत्यों द्वारा संसार को कष्ट दिया जाएगा, तब-तब मैं अवतार धारण करूंगी तथा असुरों का नाश करूंगी ।
अर्थात संसार में जब भी तामसी, आसुरी एवं दुष्ट प्रवृत्तियां प्रबल होकर सात्त्विक, उदार एवं धर्मनिष्ठ व्यक्तियों को अर्थात साधकों को कष्ट पहुंचाती हैं, तब धर्मसंस्थापना हेतु देवी अवतार लेती हैं तथा उन असुरों का नाश करती हैं ।
श्री दुर्गादेवी नवरात्रि के नौ दिनों में संसार का तमोगुण घटाती हैं और सत्त्वगुण बढाती हैं ।
ॠअसुषु रमन्ते इति असुर: ।’ इसका अर्थ है जो नित्य भोग-विलासिता में तथा भौतिक सुख में लिप्त रहता है, वह असुर कहलाता है ।’ वर्तमान में प्रत्येक के हृदय में इस आसुरी वृत्ति का ही आधिपत्य है, जिसने व्यक्ति की मूल आंतरिक दैवीवृत्तियों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है । हमें अपने अंतर की आसुरी वृत्ति का नाश करना है, इन आसुरी बंधनों से मुक्त होना है तो इसके लिए शक्ति की उपासना करना आवश्यक है । इसलिए नवरात्रिके नौ दिनों में शक्ति की उपासना करनी चाहिए । हमारे ऋषिमुनियों ने विविध श्लोक, मंत्र इत्यादि द्वारा श्री दुर्गादेवी की स्तुति कर उनकी कृपा प्राप्त की है ।