बैंक हमारे नित्य आर्थिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी हैं । सभी बैंक उनके ग्राहकों को अच्छी सेवा दें, इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ नियम बनाए हैं । बैंक ग्राहक इन नियमों को समझकर अपने ग्राहक अधिकार अक्षुण्ण रखें, साथ ही ग्राहकों के लिए बैंकों के क्या नियम हैं, इस लेख में इसका विस्तृत विवेचन किया है; ग्राहक इसे ध्यान में रखें ।
इस संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण नियम निम्न प्रकार से हैं
१. बैंक उनके खाता धारकों पर ‘ए.टी.एम.’ से ही (पैसे की निकासी करने का यंत्र) पैसे निकालना अनिवार्य नहीं कर सकते । ग्राहक ‘ए.टी.एम.’ से अथवा बैंक के काउंटर से किसी भी पद्धति से पैसे निकाल सकते हैं ।

२. बैंक धनादेश (चेक) जमा करनेवाले खाता धारकों को ‘ड्रॉप बॉक्स’ में ही (धनादेश को बैंक में देने के लिए रखी जानेवाली एक पेटी) धनादेश जमा करने के लिए अनिवार्य नहीं कर सकती । इसके विपरीत, ‘ड्रॉप बॉक्स’ पर ‘खाता धारकों को काउंटर पर धनादेश जमा कर उसकी आश्वस्तता कर लेने की सुविधा उपलब्ध है’, यह फलक लगाकर ऐसी सेवा देना बैंकों के लिए अनिवार्य है ।
३. ग्राहकों को धनादेश पुस्तक (चेकबुक) कोरियर के माध्यम से ही स्वीकारना अनिवार्य नहीं कर सकती । ग्राहक बैंक आकर धनादेश पुस्तक ले सकेंगे । (कुछ बैंक लिख रही हैं, ‘कोरियरवाले ने धनादेश पुस्तक खो दिया, तो उसका उत्तरदायित्व बैंक का नहीं होगा ।’ इसलिए यह नियम बनाया गया है ।)

४. ग्राहक को यदि बैंक में लॉकर की सेवा चाहिए, तो उसके लिए बडी धनराशिवाली आपूर्ति जमा रखना अनिवार्य नहीं होगा । इसके लिए केवल ३ वर्ष का लॉकर का किराया जमा करना ही अनिवार्य किया जा सकता है । लॉकर के किराए की प्रति (कॉपी) ग्राहक को देना अनिवार्य रहेगा । बैंक में लॉकर प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा सूची हो, तो उसमें पारदर्शिता रखना तथा उस सूची में समाहित प्रत्येक ग्राहक को उसका प्रतीक्षा क्रमांक सूचित करना आवश्यक है ।
५. ‘ए.टी.एम.’ से पैसे निकालते समय पैसे न मिलना, धनराशि निकालने के लिए टंकण की गई धनराशि की अपेक्षा अल्प धनराशि मिलना, ऐसी कोई भी शिकायत ग्राहक ने की, तो ऐसी शिकायत प्रविष्ट करने से ७ दिन के कामकाजी दिनों में (वर्किंग डेज) शिकायत का निराकरण करना आवश्यक है, अन्यथा बैंक को विलंब के अगले प्रत्येक दिन के लिए खाता धारक को प्रतिदिन १०० रुपए हानि-भरपाई देना अनिवार्य है; परंतु इसके लिए घटना के ३० दिनों के अन्दर ग्राहक को इस संबंध में शिकायत करना आवश्यक है ।

६. बैंकों को ‘ए.टी.एम.’ के विषय में शिकायत प्रविष्ट करने के लिए ‘ए.टी.एम.’ के कक्ष में सूचना फलक पर संबंधित अधिकारियों के नाम, पते, दूरभाष अथवा चल-दूरभाष क्रमांक तथा ‘ए.टी.एम. आईडी (क्रमांक)’, ये सब स्पष्ट लिखा होना चाहिए ।
७. बचत खाते में न्यूनतम कितनी धनराशि शेष रखनी चाहिए तथा न रखने पर ग्राहक को कितना आर्थिक दंड होगा, इस संदर्भ में बैंक को समय-समय पर खाता धारक को सूचित करते रहना चाहिए । खाता धारक के खाते में धनराशि आवश्यक स्तर से कम हो जाए, तो बैंक को खाता धारक को तत्काल ‘एस.एम.एस.’ (लघुसंदेश) / ‘ई-मेल’ (संगणकीय पत्र) द्वारा सूचित करना चाहिए तथा १ महीने के अंदर खाते की न्यूनतम धनराशि को आवश्यक स्तर पर बनाए रखने के लिए सूचित करना चाहिए । उसके उपरांत भी यदि खाता धारक यह धनराशि न्यूनतम स्तर तक नहीं ले आता, तो उस पर केवल उसके खाते में न्यूनतम आवश्यक शेष तथा प्रत्यक्ष शेष में स्थित अंतर की धनराशि जितना आर्थिक दंड लगाया जा सकेगा (कोई विशिष्ट आर्थिक दंड नहीं) तथा उसे इस विषय में सूचित किया जाना चाहिए । किसी भी स्थिति में इस दंड के कारण उसके खाते की धनराशि शून्य के नीचे नहीं जाएगी, इसकी ओर ध्यान देना बंधनकारक है । इसका अर्थ यह है कि नियम के अनुसार खाते में न्यूनतम शेष धनराशि १ सहस्र रुपए होना आवश्यक है तथा किसी के खाते में यदि ९९९ रुपए शेष हो, तो उस पर १०००-९९९ = १ रुपए के अनुपात में (१० अथवा २० पैसे आर्थिक दंड) लगाया जा सकता है, थोक ४०० अथवा ५०० रुपए आर्थिक दंड नहीं लगाया जा सकेगा ।
८. बैंक ग्राहक से बार-बार ‘केवाईसी’ (ग्राहक की पहचान के लिए कागदपत्र) को अद्यतन करने के लिए कागदपत्र नहीं मांग सकते । बैंक सर्वसामान्य खाता धारक को १० वर्ष में एक बार ही ‘केवाईसी’ अद्यतन (अपडेट) करने के लिए कह सकते हैं तथा ग्राहक की जानकारी में यदि कोई भी परिवर्तन न हो, तो ग्राहक ने बैंक को ‘ई-मेल’ से मात्र ऐसे सूचित किया कि ‘केवाईसी’ की जानकारी में कोई परिवर्तन नहीं है’, तब भी पर्याप्त होगा ।
९. बैंक के प्रत्येक कर्मचारी को अपने छायाचित्र के साथ पहचान-पत्र सभी को सहजता से दिखाई दे, इस प्रकार से अपने पास रखना चाहिए ।
१०. बैंक की प्रत्येक शाखा में शिकायत निवारण की पद्धति की जानकारी प्रदर्शित की जानी चाहिए, जिसमें शिकायत पुस्तक, शिकायत मिलने की प्राप्ति देने की व्यवस्था, शिकायत निवारण अधिकारी का नाम एवं क्रमांक, बैंकिंग लोकपाल का नाम एवं संपर्क की जानकारी ग्राहकों के लिए सरलता से उपलब्ध की जानी चाहिए ।
११. सभी बैंकों को ग्राहक हानि-भरपाई की नीति घोषित करनी चाहिए, जिसमें ग्राहकों के खाते से अज्ञानवश धनराशि न्यून करना, धनादेश को स्वीकार करने के विषय में (‘चेक कलेक्शन’ के लिए सामान्य की तुलना में अत्यंत विलंब), ‘डुप्लिकेट ड्राफ्ट’ (‘डिमांड ड्राफ्ट’ की दुय्यम प्रति – ‘डिमांड ड्राफ्ट’ अर्थात बैंक द्वारा पैसे देने के संबंध में उपलब्ध किया गया एक आर्थिक साधन) देने में होनेवाला विलंब, जिससे ग्राहकों की आर्थिक हानि होती है; बैंक से हुई इस प्रकार की कृतियों के संदर्भ में बैंक को कितनी हानि-भरपाई देनी होती है, यह घोषित करना आवश्यक है ।
१२. प्रत्येक बैंक की शाखा में ‘कस्टमर सर्विस कमिटी’ (ग्राहक सेवा समिति) का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को स्थान दिया जाना चाहिए । महीने में न्यूनतम एक बार इस समिति की बैठक कर बैंक को सेवाओं के विषय में प्राप्त शिकायतों पर विचारमंथन कर उनका निवारण किया जाना चाहिए ।
१३. खाता धारक का धनादेश यदि वापस जाता है (‘चेक बाउंस’ होता है, तो उसे इस विषय में २४ घंटे में कारण बताकर वापस भेजना चाहिए ।
१४. बैंक की शाखा, साथ ही ‘ए.टी.एम.’ में ‘व्हील चेयर’ का उपयोग करनेवाला (वयोवृद्ध अथवा दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उपयोग की जानेवाली पहिएवाली कुर्सी) व्यक्ति प्रवेश कर सके, इसके लिए ‘रैंप’ (चढने-उतरने के लिए ढलान) का होना आवश्यक है ।
१५. बचत अथवा वर्तमान खाते में निरंतर २ वर्षाें से किसी प्रकार का लेन-देन न हो, तभी उस खाते को ‘डॉर्मंट’ (निष्क्रिय खाता) घोषित किया जा सकेगा ।
१६. ग्राहक के द्वारा बैंक में जाली नोट जमा की गई, तो बैंक उसके बदले में उसे वैध नोट नहीं देगा; परंतु ग्राहक को उसकी रसीद दी जा सकेगी तथा बैंक उस नोट पर ‘जाली नोट’ लिखी मुद्रा लगाएगी, जिससे संबंधित नोट पुनः लेन-देन में न आ सके ।
१७. सभी बैंकों की सभी शाखाओं में किसी भी नागरिक को नोट तथा सिक्कों के संदर्भ में निम्न सुविधाएं देना बंधनकारक रहेगा –
अ. ग्राहक जिसकी मांग करेगा, उन सभी प्रकार के नए नोट तथा सिक्के ग्राहक को देना
आ. सभी प्रकार की खराब, फटी तथा चिपकाई नोटों को बदलकर देना

१८. बैंक ने यदि ग्राहकों की शिकायतों का संज्ञान नहीं लिया, तो ऐसी स्थिति में ग्राहकों को संतुष्ट रखने हेतु रिजर्व बैंक ने केंद्रीभूत शिकायत निवारण व्यवस्था गठित की है, जिसका नाम है ‘बैंकिंग लोकपाल !’ बैंक के शिकायत करने पर ३० दिनों के अंदर उसका समाधानकारक निवारण नहीं किया गया, तो ग्राहक एक वर्ष की अवधि में https://cms.rbi.org.in इस जालस्थल पर लोकपाल से शिकायत कर सकता है । बैंकिंग लोकपाल पहले समझौते से शिकायत का निवारण करने का प्रयास करता है; परंतु यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वह शिकायत पर अपना निर्णय देता है । यदि यह निर्णय शिकायतकर्ता अथवा बैंक को स्वीकार नहीं हुआ, तो उन्हें अगले ३० दिनों के अन्दर उसके विरुद्ध अपील करने का अवसर मिलता है ।
१९. सभी बैंकों की शाखाओं में बैंकिंग लोकपाल संबंधी पूरी जानकारी प्रदर्शित करना अनिवार्य है ।
२०. यदि कोई ‘फ्रॉड ट्रांजैक्शन’ (घोटाले का लेन-देन) हुआ हो तथा ग्राहक ने यदि उसे ३ कामकाजी दिन के अंदर बैंक को सूचित किया, तो उससे होनेवाली हानि के लिए पूर्णतया बैंक ही उत्तरदायी होगा । इस संदर्भ में रिजर्व बैंक का ६ जुलाई २०१७ को प्रकाशित परिपत्रक अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । (१५.३.२०२५)
– श्री. विवेक वेलणकर, अध्यक्ष, सजग नागरिक मंच, पुणे, महाराष्ट्र.
(साभार : दैनिक ‘महाराष्ट्र टाइम्स’)