जागरण करना, यह देवी की कार्य ऊर्जा के प्रकट होने से संबंधित है । नवरात्रि में रात्रि के समय श्री दुर्गादेवी का तत्त्व इस कार्य ऊर्जा के बल पर इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान शक्ति द्वारा व्यक्ति को कार्य करने के लिए शक्ति प्रदान करता है । जागरण करने से उपवास के कारण देह सात्विक बन जाता है । जिससे भक्त वातावरण से श्री दुर्गादेवी का तत्त्व इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान इन तीनों स्तरों पर सरलता से ग्रहण कर पाता है । परिणामस्वरूप उसकी कुंडलिनी के चक्र भी जागृत होते हैैं । यह जागृति उसे साधनापथ पर आगे बढने में सहायता करती है । यही कारण है कि, शास्त्रों ने नवरात्रि की कालावधि में उपवास एवं जागरण करने का महत्त्व बताया है ।
साथ ही नवरात्रि के नौ दिनों में अधिकतर भक्त उपवास करते हैं । किसी कारण नौ दिन उपवास करना संभव न हो, तो प्रथम दिन एवं अष्टमी के दिन उपवास अवश्य करते हैं । उपवास करने से व्यक्ति का रजोगुण तथा तमोगुण घटता है तथा देह की सात्त्विकता बढती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण से शक्तितत्त्व को अधिक ग्रहण करने के लिए सक्षम बनता है ।