भ्रमणभाष का उपयोग रोकने पर युवक ने की अपनी मां की हत्या !

कन्नूर (केरल) की भयावह घटना !

अपनी मां की हत्या करनेवाला युवक

थिरूवनंथपुरम् (केरल) – राज्य के कन्नूर जिले में कनिचिरा में एक युवक को उसकी मां ने भ्रमणभाष का उपयोग करने से रोकने पर, उसने चिढकर अपनी मां की हत्या कर दी । लडके को पुलिस ने बंदी बना लिया है । उसने अपनी मां की हत्या करने की स्वीकृति दी है । उसके विरोध में अपराध प्रविष्ट हुआ है ।

(सौजन्य : India News National) 

पुलिस का कहना है कि युवक को भ्रमणभाष का व्यसन था । मां ने उसे फटकारा और भ्रमणभाष का उपयोग करने के लिए मना किया । इससे उसे क्रोध आ गया और मां का सिर जोर से दीवार पर मारा । फिर मां को अस्पताल में भरती किया गया था और वहां ७ दिन उपचार चल रहा था; परंतु १४ अक्टूबर को उसकी मृत्यु हो गई ।

स्थानीय प्रसारमाध्यमों के अनुसार आरोपी मानसिकदृष्टि से अस्वस्थ था । उसे एक बार कोळीकोड के कुथिरावट्टम् में मानसिक रोगियों के अस्पताल में भरती भी किया गया था । इसके पीछे ‘नोमोफोबिया’ नामक रोग बताया जा रहा है ।

भ्रमणभाष के अत्यधिक उपयोग से होनेवाला यह ‘नोमोफोबिया’व्यसन वास्तव में क्या है ?

भारत के ४ में से ३ लोग अल्प-अधिक मात्रा में ‘नोमोफोबिया’से ग्रस्त !

(चित्र पे क्लिक करें)

भ्रमणभाष के अत्यधिक उपयोग से होनेवाले व्यसन के लिए ‘नोमोफोबिया’ (नो मोबाईल फोबिया) अर्थात मोबाईल न होने का भय, यह संज्ञा उपयोग की जाती है । यह समस्या मानसिक विकार है अथवा नहीं, यह अबतक सिद्ध नहीं हुआ है, तब भी भ्रमणभाष के व्यसन से पीडित व्यक्ति का मानसिक आरोग्य पर विपरीत परिणाम होता है । धीरे-धीरे उसका परिणाम रिश्ते -नातों पर भी होने लगता है । एक ब्योरे के अनुसार भारत के ४ लोगों में से ३ लोग कम-अधिक मात्रा में ‘नोमोफोबिया’से ग्रस्त हैं । उनमें से कुछ ने स्वीकार किया है कि ‘इंटरनेट बंद होना’, ‘भ्रमणभाष बिगड जाना’, ‘बैटरी समाप्त होना’ इत्यादि के कारण उन्हें भावनिक समस्याओं का समाना करना पडता है । (इससे आज विज्ञान और तंत्रज्ञान का मानव पर कितना हावी है, यह ध्यान में आता है । धर्मविहीन विज्ञान के अतिरेक का परिणाम ! – संपादक)

संपादकीय भूमिका 

आज की युवा पीढी जिसे ‘जेन जी’ नाम से संबोधित करते हैं, वह अत्यंत चंचल स्वभाव की एवं उथले विचारों की है । इस पीढी को धर्मशिक्षा न दिए जाने से और उससे साधना न करवाने से उसका पतन हो रहा है । यह घटना केवल उसका एक छोटा सा उदाहरण है !

(वर्ष १९९६ से वर्ष २०१० तक, इस काल में जन्मी पीढी को ‘जेन जी’ अर्थात ‘जनरेशन जेड’ कहा जाता है । पश्चिमी देशों में यह संज्ञा अधिक प्रचलित है ।)