हिन्दुओ, शक्तिदायी विजयादशमी कैसे मनाओगे ?

शमीपूजन

आगे दिए श्लोकों से शमी से प्रार्थना करते हैं ।

शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका ।
धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ॥
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया ।
तत्र निर्विघ्नकर्त्री त्वं भव श्रीरामपूजिते ॥

अर्थ : शमी पापों का शमन (नाश) करती है । शमी के कांटे तांबे के रंग के होते हैं । शमी राम की स्तुति करती है तथा अर्जुन के बाणों को भी धारण करती हैं । हे शमी, राम ने तुम्हारी पूजा की है । मैं यथाकाल विजययात्रा पर निकलूंगा । तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्न एवं सुखकारक करो ।

कचनार का पूजन

इस समय आगे दिए मन्त्र का उच्चारण करते हैं ।

अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ॥

अर्थ : हे अश्मन्तक (कचनार) महावृक्ष, तुम महादोषों का निवारण करते हो । मुझे मेरे मित्रों का दर्शन करवाओ और मेरे शत्रु का नाश करो ।

तदुपरान्त उस वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी एवं सुवर्ण (पर्याय से तांबे) की मुद्रा रखते हैं । फिर वृक्ष की परिक्रमा कर उसके मूल के पास की थोडी मिट्टी एवं उस वृक्ष के पत्ते घर लाते हैं ।

शमी के नहीं; अपितु कचनार के पत्ते सोने के रूप में भगवान को अर्पण करते हैं एवं इष्टमित्रों को देते हैं । बडे बुजुर्गों को सोना दें, ऐसा संकेत है ।

अपराजिता पूजन

जिस स्थान पर शमी की पूजा होती है, उसी स्थान की भूमि पर अष्टदल बनाकर अपराजिता की मूर्ति रखते हैं एवं उसकी पूजा कर आगे दिए गए मन्त्र द्वारा प्रार्थना करते हैं ।

हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला ।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम ॥

अर्थ : गले में विचित्र हार धारण करनेवाली, कटि पर (कमर पर) जिसके जगमगाती स्वर्णकरधनी (मेखला) है एवं (भक्तों के) कल्याण हेतु जो तत्पर रहती है, ऐसी हे अपराजितादेवी, मुझे विजयी करें ।

कुछ स्थानों पर अपराजिता की पूजा सीमोल्लंघन हेतु निकलने से पूर्व भी करते हैं ।

राजविधान

दशहरा विजय का त्योहार है, इसलिए इस दिन राजाओं के लिए विशेष विधान बताया गया है ।

लौकिक प्रथा

कुछ घरानों में नवरात्रि (देवी) नवमी के दिन, तो कहीं दशमी के दिन विसर्जित होती है ।

शस्त्र एवं उपकरणों का पूजन

इस दिन राजा, सामन्त एवं सरदार, अपने शस्त्रों-उपकरणों को स्वच्छ कर एवं पंक्ति में रखकर उनकी पूजा करते हैं । उसी प्रकार किसान एवं कारीगर अपने (कृषि हेतु उपयुक्त) उपकरणों एवं शस्त्रों की पूजा करते हैं । (कुछ लोग यह शस्त्रपूजा नवमी पर भी करते हैं ।) लेखनी व पुस्तक, विद्यार्थियों के शस्त्र ही हैं, इसलिए विद्यार्थी उनका पूजन करते हैं । इस पूजन का उद्देश्य यही है कि उन विषय-वस्तुओं में ईश्वर का रूप देख पाना; अर्थात ईश्वर से एकरूप होने का प्रयत्न करना ।

दशहरा संबंधी वीडियो इस लिंक पर देखें – bit.ly/451aV0R