सबसे संकटकारी ‘आर्थिक जिहाद’ एवं उसे रोकने के उपाय !

गत लेख में हमने आर्थिक जिहाद के विषय में समझ लिया । अब उस पर किए जानेवाले समाधानों के संदर्भ में अधिक विस्तृत जानकारी लेंगे । आर्थिक जिहाद नियोजनपूर्वक किया जा रहा है । उसे समाप्त करने के लिए हमें भी योग्य दिशा में कदम उठाने होंगे ।

(भाग -२)

५. आर्थिक जिहाद क्यों एवं कैसे बढ रहा है ?

आर्थिक जिहाद क्यों एवं कैसे बढ रहा है ? यह समझना आवश्यक है । कुछ वर्ष पूर्व शास्त्रज्ञों ने ऐसा अनुमान लगाया था कि सऊदी अरेबिया जैसे अरब देशों में पाया जानेवाला खनिज तेल समाप्त हो जाएगा । इसलिए अरब देशों को अपनी अर्थव्यवस्था चलाने के लिए नए स्रोतों की आवश्यकता होगी । यहां सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि हज यात्रा से सऊदी अरेबिया को भरपूर आय होती है । विश्व में मुसलमानों की संख्या बढेगी, तो हज यात्रा से होनेवाली आय में भी वृद्धि होगी तथा बिना कुछ किए ही सऊदी अरेबिया का काम चलता रहेगा । इसीलिए भारत के मुसलमानों को हवाला इत्यादि के माध्यम से व्यवसाय आरंभ करने के लिए पैसा उपलब्ध करवाया जाता है । उन्हें मदरसों एवं ‘मजलिस ऑफ इंडिया’ में व्यवसाय करना है सिखाया जाता है । सरकार पर दबाव डालकर एवं अल्पसंख्यकों के नाम पर वे ये सुविधाएं लेते हैं । वे अधिक बच्चों को जन्म देते हैं । इसलिए उनके पास काम करनेवाले हाथ बढ रहे हैं । उसी के साथ सरकार की दोहरी नीतियों एवं वामपंथी विचारधारा की शिक्षा के कारण हिन्दू समाज संकुचित हो रहा है तथा उधर धर्मांध अपना विस्तार करने में मग्न हैं ।

श्री. सचिन सिजारिया

६. हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन हिन्दुओं की बेरोजगारी समाप्त करने के लिए आगे आएं !

अपने सभी सनातन हिन्दू संगठनों को धर्म की शिक्षा देने के साथ-साथ हिन्दुओं की अर्थव्यवस्था सबल करने का प्रयत्न करना चाहिए । हमें अपने निर्धन हिन्दुओं को जिन्हें धर्म में सम्मिलित होना है, उन्हें अर्थार्जन का प्रशिक्षण देना चाहिए । इससे वे आत्मनिर्भर होंगे । कुछ दिन पूर्व ही एक संस्था द्वारा देहली में पाकिस्तानी शरणार्थी हिन्दुओं को इलेक्ट्रिक दुरुस्ती (रिपेयर)का प्रशिक्षण दिया गया । इससे उन्हें जीविका (रोजगार) पाने का माध्यम मिल गया । उसी प्रकार अपने संगठनों को आवश्यक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करनी चाहिए ।

७. धनाढ्य हिन्दुओं को अल्प शुल्क में शिक्षा उपलब्ध करवाना आवश्यक !

शिक्षा व्यवस्था में वामपंथी विचारधारा के नीति-नियमों पर चलनेवाले ईसाई समर्थकों की भरमार है । वे हिन्दू समाज को सर्वाधिक भ्रमित करके बेरोजगारी निर्माण करते हैं । इसलिए बडे-बडे उद्योगपति एवं धनाढ्य वर्ग के लोग विद्यालय खोलकर हिन्दू विचारधारा के शिक्षकों को भरती करें । उन्हें हिन्दुओं को ऐसी शिक्षा देने का प्रबंध करना चाहिए जो उनके लिए सहज एवं सुलभ हो ।

८. हिन्दुओं को संगठित होकर व्यवसाय करने की आवश्यकता !

व्यवसाय का प्रशिक्षण लेने के उपरांत वे उसे सहजता से चला पाएं, साथ ही अन्य हिन्दुओं को जोडकर रख सकें, ऐसी योजना हिन्दुओं को तैयार करनी चाहिए । झारखंड में कुछ हिन्दू युवकों ने ‘झटका मांस’ बेचने का व्यवसाय आरंभ किया । वे एक ‘हिन्दू पोल्ट्री फार्म’ से प्रतिदिन ४०-५० मुर्गियां लेकर आते तथा ‘झटका मांस’ बेचते थे । धीरे-धीरे उनके ‘झटका मांस’ की विक्री बढने लगी । इससे धर्मांध घबरा गए । तब उन्होंने ऐसी भूमिका अपनाई, कि यदि ‘हिन्दू पोल्ट्री फार्म’ ने झटका मांस की बिक्री करनेवालों को मुर्गियां बेचीं, तो हम उनसे मुर्गियां लेना (खरीदना) बंद कर देंगे । हम भी यदि ऐसा करें तो …?

९. अल्प व्यय में एवं शीघ्र सीख पानेवाले उद्योग !

अ. अब हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को स्वयं- उपजीविका (रोजगार) निर्माण करने के लिए हिन्दुओं को प्रेरित करना चाहिए । जिससे नौकरी ढूंढने में ही उनका जीवन समाप्त न हो जाए । हिन्दुओं को उनके अपने परिसर में ही सहजता से प्रशिक्षण मिले तथा वे अपने आसपास के परिसर में अपना व्यवसाय कर पाएं, इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए । ऐसे अनेक उद्योग हैं, जो अल्प व्यय में एवं शीघ्र सीखे जा सकते हैं । जैसे बेकरी के काम (टोस्ट, ब्रेड, बिस्किट इत्यादि बनाना), टायर एवं पंक्चर दुरुस्ती, इलेक्ट्रिक काम, वाहन (साइकल एवं दुपहिया) दुरुस्ती, फेब्रिकेशन काम, निर्माण कार्य, प्लंबर, इलेक्ट्रॉनिक वस्तु दुरुस्ती, सिलाई-कढाई एवं कलाकारी (कशीदाकारी), जरी का काम, मांस बिक्री, कम्प्यूटर दुरुस्ती, नाईकाम (केश (बाल) काटना), कश्मीरी शालें जैसे गरम वस्त्रों की निर्मिति एवं बिक्री, मेंहदी लगाना, ब्यूटी पार्लर, खाद्यपदार्थ बनाना, बिर्यानी बनाना, आईस्क्रीम एवं कुल्फी बनाना, सजावट की वस्तु बनाना, पूजा-सामग्री बनाना, साबुन एवं हैंडवॉश बनाना, सौंदर्य उत्पाद बनाना, गौआधारित उत्पाद बनाना, गुड बनाना, फल का रस, फूलों का काम, ‘बैंड बाजा’, ‘डीजे’ इत्यादि व्यवसायों के विषय में छोटे अभ्यासक्रम रखके, ये सब हिन्दू समाज के युवकों को सिखाकर, उन्हें व्यवसाय आरंभ करने में सहायता करनी चाहिए । इसके लिए अपने मंदिरों में उपलब्ध अतिरिक्त स्थान का उपयोग कर सकते हैं । केरल के एक आश्रम में ऐसे प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है ।

आ. कला के क्षेत्र में भी भरपूर रोजगार उपलब्ध हो सकता है । कश्मीरी हस्तकला, लकडी पर उकेरी गई कलाकृति, (नक्काशी) कागद की लुगदी से सजावट की वस्तुएं, कपडे पर छपाई काम, जरी का काम, गलीचा बनाना, हाथ से कढाई, चित्रकला, अभिनय, गाना एवं वाद्य बजाना समावेश होता है । कश्मीरी हस्तकला का संपूर्ण काम विशेष समुदाय के हाथ में है । पूरे भारत में उनकी दुकानें देखने को मिलती हैं । उनके उत्पाद काफी मंहगे होते हैं । उससे वे बहुत पैसा अर्जित करते हैं । कश्मीरी हस्तकला समान वस्तुएं बनाकर सस्ते दामों में बेचने से भी अच्छी आय हो सकती है । सहारनपुर में भी लकडी पर कलाकृति उकेरने का काम करनेवाले अन्य लोग हैं । वह काम भी सीखकर, हिन्दू उसे अपना व्यवसाय बना सकते हैं । बांगलादेश के धर्मांधों ने भारत में इंटरनेट के माध्यम से हाथ से कढाई करना, उदाहरणार्थ सिंधी कढाई-कशीदा, कांच पर रंगाई, कपडे पर शीशे लगाकर कढाई इत्यादि सीखकर अपना व्यवसाय आरंभ किया है ।

इ. मुंबई एवं पुणे में बिर्यानी बनाने एवं बेचने का काम अधिकतर उनके ही हाथों में है । जिसमें वे शाकाहारी एवं मांसाहारी बिर्यानी बनाकर बेचते हैं । वे उसे उत्सवों एवं कार्यालयों में भी पहुंचाते (सप्लाई करते) हैं । इस व्यवसाय में भी भरपूर लाभ है । हिन्दू युवक ऐसे व्यवसाय आरंभ कर भरपूर आय कर सकते हैं । इसे सीखने में भी अल्प समय लगता है ।

ई. बेकरी का काम भी विशिष्ट लोग ही करते हैं । नानखटाई, विविध प्रकार के बिस्किट, टोस्ट, केक आदि बेकरी उत्पादों की अच्छी मांग है । इस व्यवसाय में भरपूर लाभ होने के साथ ही यह स्थायी उपजीविका देनेवाला व्यवसाय है । यह व्यवसाय भी सीखकर इसे आरंभ कर सकते हैं । मुंबई-पुणे क्षात्रों में ब्रेड की बहुत मांग है । इसलिए हिन्दुओं को यह व्यवसाय अपनाना चाहिए ।

उ. मेंहदी लगाने का काम देखने में बहुत ही छोटा लगता है, तब भी आजकल उसकी मांग बढ रही है । अपनी हिन्दू बहनें यह काम सीखकर सहजता से अच्छी आय ले सकती हैं । वर्तमान में विवाह समारोह में मेंहदी लगाने के काम में अनेक धर्मांध युवक सम्मिलित होने लगे हैं । इससे ‘लव जिहाद’ का संकट बढ गया है ।

ऊ. बांगलादेशी मुसलमान देहली एवं गाजियाबाद भाग में बहुमजली इमारतों में छत का काम करते हैं । हिन्दुओं को भी यह काम करना चाहिए, क्योंकि उसमें बहुत लाभ है । अपनी धार्मिक संस्थाओं को भी ऐसी व्यवस्था आरंभ करनी चाहिए, जिससे हिन्दुओं की समझ में आए कि किस क्षेत्र में कौन सा व्यवसाय करना है ? एवं विशिष्ट व्यवसाय कैसे स्थापित करना है ?

१०. हिन्दुओं को एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए !

हिन्दुओं को अपने धर्मबंधुओं से सामग्री खरीदनी चाहिए । इसका प्रचार करने के लिए धार्मिक संगठनों को सर्वाधिक प्रयत्न करना आवश्यक है । हिन्दुओं को उनके परिश्रम का उचित मूल्य लगाना चाहिए; जिससे पैसों के लोभ में उनका व्यवसाय बंद नहीं हो । ग्रामीण क्षेत्रों के हिन्दुओं को कृषि आधारित उत्पाद एवं सेंद्रिय खेती करने का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है । इससे स्थानीय हिन्दुओं का पलायन थमेगा ।

११. हिन्दुओं को सर्वाधिक लाभ देनेवाले मांस व्यवसाय की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए !

मांस व्यवसाय के माध्यम से धर्मांध सर्वाधिक कमाई करते हैं । सरकार ने उस पर अल्प कर (टैक्स)रखा है । मांस व्यवसाय में उनका एकाधिकार है; कारण हिन्दुओं ने यह व्यवसाय करना अल्प किया है । आजकल हिन्दुओं की रुचि मांसाहार में बढ रही है । शाकाहारी वर्ग में भी मांसाहार करने की मात्रा बढ रही है । इसलिए मांस की विक्री बढने लगी है । हिन्दुओं को यह व्यवसाय स्वीकार करके लाभ लेना चाहिए । इसके साथ ही मुर्गी-पालन, भेंढ-बकरी-पालन, मत्स्य-पालन आदि व्यवसाय आरंभ कर सकते हैं । ये व्यवसाय अल्प लागत (पूंजी) से भी कर सकते हैं ।

१२. हिन्दू युवक किसी भी काम को छोटा (कम) न समझें !

हिन्दू युवकों को यह समझाना अत्यंत आवश्यक है कि वे १० घंटे की नौकरी कर प्रतिमाह केवल १० से १२ सहस्र रुपए ही अर्जित कर सकते हैं; परंतु पंक्चर बनाने (दुरुस्ती) का काम सीखकर वे प्रतिदिन १ सहस्र से भी अधिक रुपए की आय कर सकते हैं । हिन्दू समाज नौकरियों के पीछे भागना बंद करके छोटे काम में कडा परिश्रम करने के स्थान पर कुछ नया काम सीखकर अपना निजी व्यवसाय आरंभ करे । हिन्दू युवकों को कुछ बनाकर बेचना चाहिए अथवा दुरुस्ती कर पैसे कमाने का विचार करना चाहिए ।

१३. आर्थिक जिहाद को हिन्दुओं का संगठितरूप से प्रत्युत्तर !

अ. कुछ वर्ष पूर्व कट्टरपंथियों ने असम के हिन्दूबहुल एवं बौद्धबहुल क्षेत्रों में आकर व्यवसाय आरंभ किया । उन्होंने धीरे-धीरे वहां के बाजार पर अपना वर्चस्व स्थापित करना आरंभ किया । इससे स्थानीय लोगों के व्यवसाय की हानि होने लगी । तदुपरांत कुछ युवकों ने एक योजना बनाई । उन्होंने हिन्दू दुकानदारों को एक विशेष क्रमांक कोड लगाया तथा साथ ही इस विषय में वहां के स्थानीय लोगों को भी समझाया । तदुपरांत स्थानीय लोगों ने उन्हीं दुकानों से खरीददारी आरंभ कर दी । परिणामस्वरूप कट्टरपंथियों का व्यवसाय ठप्प हो गया । इसलिए कुछ माह में ही उन्हें वह क्षेत्र छोडना पडा ।

आ. मध्य प्रदेश के एक गांव में कट्टरपंथियोंकी संख्या बढने लगी । इसलिए वहां एक बार वाद-विवाद हुआ । गांव के हिन्दुओं ने विवाह समारोह के समय निकलनेवाली शोभायात्रा बिना बैंडबाजा एवं प्रकाश (रोशनी) के ही निकालनी आरंभ कर दी । तब से पुन: वहां कोई वाद-विवाद नहीं हुआ ।

आर्थिक जिहाद का सामना करना कठिन नहीं है । हमें केवल सजग एवं सतर्क रहना होगा । इसके लिए रणनीति बनाकर काम करना हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । हिन्दुओं को पुन: दृढतापूर्वक एवं आपसी सूझ-बूझ से अपना व्यवसाय आरंभ करना होगा, तभी वे इस संकट पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ।’

(समाप्त)

– श्री. सचिन सिजारिया, पुणे. (१४.७.२०२३)