सबसे धोकादायक ‘आर्थिक जिहाद’ और उसे रोकने के उपाय !

‘जगभर में इस्लाम का जिहाद चल रहा है । उनके शस्त्रास्त्र जिहाद के बारे में लगभग सभी को पता है; परंतु महत्त्वपूर्ण है कि सभी प्रकार के जिहाद में केवल २.५ प्रतिशत ही शस्त्रास्त्रों का जिहाद है । अपने देश में लव जिहाद, भूमि (लैंड) जिहाद, वैद्यकीय जिहाद, शिक्षा जिहाद, कला जिहाद इत्यादि जिहाद शुरू हैं । उन जिहादों में से अनेक हिन्दुओं को केवल लव जिहाद ही पता है, जबकि इन जिहादों के साथ आर्थिक जिहाद भी शुरू है, जो अत्यंत धोकादायक है । उस विषय में हमें समाज में जागरुकता का अभाव दिखाई देता है । आर्थिक जिहाद एक मंद गति का जिहाद है, जो अत्यंत शांति से और प्रभावीरूप से शुरू है । उसका सीधा परिणाम दिखाई नहीं देता । हलाल जिहाद केवल उसका एक भाग है । इसप्रकार आर्थिक जिहाद अत्यंत चतुराई से किया जा रहा है और उसमें अनेक राजकीय पक्षों का भी बडा योगदान है ।


१. आर्थिक जिहाद के स्वरूप और उसकी पद्धति

अ. पूर्वकाल में हिन्दू सभी प्रकार के परिश्रमी काम स्वयं कर, उससे अपना उदरनिर्वाह करते थे । कपडे सीना, इलेक्ट्रिकल दुरुस्ती का काम, प्लंबिंग काम, फलविक्रेता, नाई, बढई का काम (carpentry), वेल्डिंग, पंचर निकालना, वाहन दुरुस्ती, जरी का काम, कढाईकाम, कार्पेट बनाना, ढाबा, उपाहारगृह, बेकरी, इमारत बनाना, बिर्यानी बनाना, डाईंग एवं प्रिंटिंग, परफ्युमरी, मांस व्यवसाय, कपडों की बिक्री, जूते-चप्पलों की दुकान के साथ ही भंगार व्यवसाय, संगणक उपकरण ये सर्व व्यवसाय मुसलमान समाज के पास जा रहे हैं । सर्व हस्तकला के काम भी हिन्दुओं के हाथों से निकलकर मुसलमानों के हाथ में जा रहे हैं ।

आ. देहली, गाजियाबाद भाग में छत एवं इमारत बनाने का काम भी बांगलादेशी मुसलमानों के हाथ में चला गया है । इस भाग में रेलवेस्टेशन पर फल बेचने का काम भी वही लोग करते हैं । पूजा सामग्री के व्यवसाय में उनकी घुसपैठ बढ रही है । उन्होंने कला के क्षेत्र में भी प्रवेश किया है, जिसका सबसे बडा उदाहरण ‘बॉलीवुड’ है । इस माध्यम से जिहाद फैलाया जा रहा है । मुंबई-पुणे परिसर में रात बिर्यानी बिक्री का काम उनके हाथ में है । मांस व्यवसाय में उनका एकाधिकार (monopoly) बढ रहा है । मांस व्यवसाय से उन्हें सर्वाधिक आमदनी होती है । गुजरात एवं राजस्थान के महामार्ग पर बहुतांश होटल भी मुसलमानों के हैं । इन होटलों को हिन्दू देवी-देवताओं के नाम हैं ।

इ. पहले मुंबई में मंगलदास मार्केट के बाहर हिन्दू विक्रेताओं की छोटी-छोटी दुकानें होती थीं; परंतु अब सर्वत्र मुसलमान आ गए हैं । लगभग सभी स्थानों पर अच्छे कपडे सिलनेवाले, मुसलमान दर्जी ही दिखाई देंगे । वे अधिकतर महिलाओं के कपडे सिलते हैं । इससे उन्हें सतत काम उपलब्ध रहता है और भरपूर लाभ भी मिलता है । बडे शहरों में आधुनिक व्यायामशाला एवं ‘मसाज पार्लर’ के संचालक भी मुसलमान ही हैं ।

ई. धर्मांधों के बच्चे बचपन से ही वाहन दुरुस्त करना एवं पंक्चर निकालना ऐसे काम करने लगते हैं । धर्मांध केस काटने एवं सौैंदर्य वर्धनालय की (ब्युटी पार्लर की) सामग्री बनाकर बेचने का काम भी करते हैं । ‘हबीब’ एवं ‘शहनाज हुसैन’ इस नाम से चलनेवाले ‘ब्यूटी पार्लर’की अनेक दुकानें भी उनकी ही हैं । हिन्दुओं के विवाह समारोह में उनकी महिलाएं ही वधु-वर को मेंहदी लगाने का काम करती हैं । कश्मीरी हस्तकला एवं शाल बनाने की उनका एकाधिकार है । देश के किसी भी कोने में ‍चले जाएं उनकी दुकानें वहां हैं और वे वहां वस्तु बेचते हुए दिखाई देते हैं । अपने किसी भी बडे त्योहार में जैसे गणेशपूजा, नवरात्रि इत्यादि में वाद्य, ‘डीजे’, गाने एवं नृत्य करनेवाले भी वे ही होते हैं । पुराने वाहनों के छुट्टे भाग (spare parts) चुराकर उन्हें नष्ट करने का काम भी कुछ लोग करते हैं ।

उ. वे नियोजनबद्ध पद्धति से संपूर्ण बाजारपेठ में व्यापत हैं । जिस व्यवसाय में अल्प व्यय, अल्प कष्ट एवं हेराफेरी कर अधिक नफा हो, वही व्यवसाय वे चुनते हैं । धीरे-धीरे वे अपनी धन-संपत्ति बढाते जाते हैं । उन्हें व्यवसाय आरंभ करने के लिए जकात के (जो मुसलमानों में वर्ष में एक बार वार्षिक उत्पन्न का ४० वां भाग दानधर्म में दिया जाता है ।) माध्यम से सहायता की जाती है, इसके साथ ही हवाला के माध्यम से भी उन्हें अरब देशों से भी सहायता मिलती है ।

ऊ. अनेक मस्जिदों एवं मदरसों में जानकारी एकत्र की जाती है और आर्थिक जिहाद के लिए योजना बनाई जाती है । अनेक मदरसों में बाजार पर पकड कैसे पानी है ?, इसका व्यावहारिक ज्ञान दिया जाता है । हिन्दुओं में जन्मदर अल्प होने से हिन्दू कामगार सहज उपलब्ध नहीं होते । मुसलमान कुटुंबों में युवक एवं काम करनेवालों की संख्या अधिक होती है । इसलिए हिन्दू व्यावसायिकों को भी उन्हें काम पर रखना होता है ।

ए. मतों की राजनीति के कारण उन्हें उद्योग-धंधे शुरू करने में विविध सुविधाएं एवं छूट मिलती है । मांस व्यवसाय में वस्तु एवं सेवा कर का (जी.एस्.टी.का) दर अल्प रखा गया है । सरकारी यंत्रणा उन्हें प्रत्येक स्तर पर सहायता कर रही है । वे अधिकतर काम नकद राशि लेकर करते हैं । इसलिए उनकी धन-संपत्ति की गणना करना कठिन होता है । अर्थात, वे कर बचाते हैं जबकि उनकी अच्छी आमदनी होती है । घूस देकर, अन्य अपराधी एवं अनधिकृत काम करते हुए भी वे पैसे कमाते हैं ।

श्री. सचिन सिजारिया

२. आर्थिक जिहाद फैलानेवालों को हिन्दुओं की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहायता

हिन्दू सदैव ही कार्याभिमुख एवं परिश्रमी होते हैं; परंतु कुछ वर्षों से उनकी विचारधारा में और स्थति में परिवर्तन हो रहा है । वामपंथी विचारधारा की शिक्षा के कारण हिन्दू समाज अपने कामों की ओर उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगा है । वह सरकारी एवं अन्य नौकरियों को प्रधानता देने लगा है । इसलिए उसने धीरे-धीरे अपना व्यवसाय बंद कर दिया । परिणामस्वरूप वे व्यवसाय धर्मांधों के नियंत्रण में जाने लगे । नौकरी के कारण हमारे परिवार बिखर गए; कारण हमें नौकरी के लिए अन्य शहरों में जाना पडता है । बढती महंगाई एवं महंगी शिक्षा के कारण हमारे कुटुंब के बच्चों की संख्या अल्प हो गई । संख्याबल के कारण भी हम दुर्बल हो गए और रोजगार पाने के लिए शिक्षा का विकल्प ही शेष रह गया । कोई भी काम करने के लिए मनुष्यबल लगता है; परंतु नौकरी अकेले कर सकते हैं । हम लोग परंपरागत काम करने का ज्ञान भी भूल गए । हमारी शिक्षाप्रणाली ने कष्ट के कामों से भी दूर कर दिया । कोई तांत्रिक ज्ञान एवं कौशल्य के न होने से हमारे हिन्दू युवक नौकरियां पाने के लिए हताश होकर दर-दर भटक रहे हैं ।

३. हिन्दुओं का शहरों में स्थलांतर

उत्तर भारत के गांवों की स्थिति भी अच्छी नहीं है । गांवों के युवक रोजगार के लिए शहरों में स्थानांतर हो गए । इससे गांव के हिन्दू कुटुंब न्यून हो रहे हैं । भविष्य में ऐसे सभी घर एवं भूमि धर्मांधों के हथियाने का धोखा है । यूरिया एवं कीटकनाशकों के कारण खेती लाभदायी न होने से भारी संख्या में हिन्दू कुटुंबों का स्थनांतर बढ रहा है । हिन्दू कुटुंब में धार्मिक ज्ञान का अभाव, परिश्रम से जी चुराना, कष्ट के पैसे उपभोग के साधनों में खर्च करना, स्वार्थी वृत्ति, पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व के प्रति उदासीनता, दिखावा, ऐशो-आराम का जीवनयापन करने से बीमारियां बढना इत्यादि कारणों से आर्थिक जिहाद को बल मिल रहा है । अपना कोई भी निजी व्यवसाय करना हो, तो पारिवारिक एवं सामाजिक सहयोग की आवश्यकता होती है ।

जिस कुटुंब में अधिक सक्रिय सदस्य हैं, वह कुटुंब सहजता से अपना व्यवसाय कर सकता है । हिन्दू कुटुंब में संख्याबल अल्प होने से व्यवसाय करते हुए अनेक अडचनों का सामना करना पडता है । ऐसा देखने में आता है कि बहुतांश व्यवसाय बंद कर दिए जा रहे हैं । सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण न दिए जाने से हिन्दू समाज में भी यह समस्या निर्माण हो रही है । वामपंथी विचारधारा की शिक्षा एवं प्रसारमाध्यमों ने हिन्दू युवकों को भ्रमित करने का भरपूर प्रयत्न किया । इसलिए आज हिन्दू युवक कुछ भटक से गए हैं । हिन्दुओं की जीवनशैली में दिखाऊपना एवं पैसे उडाना भी इस समस्या का एक कारण है ।

४. आर्थिक जिहाद रोकने के उपाय !

सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि हमारे पास अब भी समय है । इसलिए हम इस विचार पर नीति-नियम बनाकर गंभीरता से काम करेंगे, तो आनेवाले संकट का हम सामना कर सकते हैं । सर्वप्रथम हमें समाज में श्रम के प्रति आदर की भावना निर्माण करनी चाहिए । हिन्दू युवकों को आवश्यक प्रशिक्षण सहज उपलब्ध करवाया जाना चाहिए । प्रशिक्षण देने के उपरांत हिन्दू युवकों को काम मिले इसके लिए हमें जाल (नेटवर्क) तैयार करना होगा । मंदिरों द्वारा उन्हें संभवत: निशुल्क अथवा अल्प शुल्क लेकर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करनी चाहिए । इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रारंभ से अंतिम ग्राहक को सेवा मिलने तक अथवा वस्तु बिक्री होने तक संपूर्ण श्रृंखला में केवल हिन्दू ही रहेंगे, यह देखना होगा । हमारे बच्चे एवं युवकों को बचपन से ही प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करनी होगी । हिन्दुओं का काफी समय अनावश्यक बातों में जाता है, उसे नियोजित मार्ग से रोकना होगा । नौकरी करने का निरर्थक प्रोत्साहन रोकना होगा । अपने धार्मिक संगठनों को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए, जो हिन्दू युवकों को रोजगार देने में सहायता करेगी और जिससे हिन्दू उनके संगठन से अधिक जुडे रहेंगे ।

हिन्दू समाज के अनेक वर्ग मांसाहार करते हैं । इसलिए हिन्दू भी यह व्यवसाय करें । मुर्गीपालन, मत्स्यपालन, भेंढ-बकरी पालन इत्यादि व्यवसायों को प्रोत्साहन दें । ये व्यवसाय सबसे लाभदायी हैं । प्रत्येक व्यक्ति के शाकाहारी होनेतक यह चलेगा; परंतु मांसाहार छोडना ही चाहिए । हमारे साधु-संतों को ऐसी प्रेरणा हिन्दुओं को देनी चाहिए, जिससे उनके नैतिक मूल्य बढेंगे और वे अपना काम स्वाभिमान से कर सकेंगे । हिन्दू समाज को पैसों की फिजूलखर्ची रोककर हिन्दू युवकों को रोजगार दिलवाने के लिए कुछ काम की व्यवस्था करनी होगी । पाकिस्तान की निर्मिति के उपरांत मुसलमानों ने वहां रहनेवाले हिन्दुओं की दुकानों से वस्तु लेना बंद कर दिया था । इसकारण सक्षम हिन्दू स्थलांतरित हो गए और निर्धन हिन्दुओं का धर्मांतर हो गया । आर्थिक जिहाद चिंताजनक समस्या है । उससे लडने के लिए हमें नीति-नियम बनाने आवश्यक हैं । हम सभी हिन्दुओं को इस विषय में जागरूक रहकर उसपर कार्य करना अत्यंत आवश्यक है ।’

– श्री. सचिन सिजारिया, पुणे.