ऑनलाइन धोखाधडी तथा उसमें भी वर्तमान में डिजिटल एरेस्ट (आभासी गिरफ्तारी) की घटनाएं बडी संख्या में हो रही हैं । उसमें सर्वसामान्य लोगों से लेकर उच्चवर्ग के लोगों से धोखाधडी की जा रही है । व्यावहारिक क्षेत्र में बडे पद पर आसीन प्राध्यापक, अभियंता तथा डॉक्टरों का भी इसमें समावेश है । ‘डिजिटल एरेस्ट’ को एक व्यापक संकल्पना मान ली जाए, तब भी अन्य भी अनेक पद्धतियों से धोखाधडी की घटनाएं बढ रही हैं । इसमें मुख्यरूप से व्यक्ति से धोखाधडी किए जाने के उपरांत उस विषय में पुलिस में शिकायत देना, सांत्वना राशि प्राप्त करना, ये लंबी प्रक्रियाएं हैं । उससे पूर्व ही हम ऐसी घटनाओं से किस प्रकार जागरूक रह सकते हैं ?, इसका मैंने स्वयं जो अनुभव किया है, उसके आधार पर यहां बताने का प्रयास कर रहा हूं ।
१. ऑनलाइन खरीद करने पर पुरस्कार प्राप्त होने के विषय में संपर्क किया जाना
एक बार मैंने ऑनलाइन शॉपिंग प्लैटफॉर्म ‘फ्लिपकार्ट’से कुछ वस्तुएं खरीदी थीं । उसके ४ दिन उपरांत फ्लिपकार्ट से ही मुझसे संपर्क कर ‘फ्लिपकार्ट कस्टमर लकी ड्रॉ’के अंतर्गत आपका चयन हुआ है तथा आपको पुरस्कार में स्कॉर्पियो गाडी मिली है’, ऐसा बताया गया । संबंधित व्यक्ति ने तुरंत ही गाडी का छायाचित्र भेज दिया तथा ‘केवल आर्.टी.ओ. पासिंग (उपप्रादेशिक परिवहन कार्यालय का प्रमाणपत्र)’ तथा वाहन को भेजने का खर्चा भेजिए’, ऐसा बताया गया । संबंधित व्यक्ति ने मुझे उसका फ्लिपकार्ट प्रतिष्ठान का परिचयपत्र भी भेजा । इस अकस्मात संपर्क से पहले मैं चकरा गया; क्योंकि उसके द्वारा बताई जानकारी कुछ मात्रा में सत्य थी । उसके उपरांत मैंने पहले फ्लिपकार्ट के ग्राहक कक्ष से संबंधित ‘आईडी’ भेजकर (परिचयपत्र) भेजकर वह सत्य है अथवा झूठा है, इसकी आश्वस्तता की । अंततः वह परिचयपत्र फर्जी सिद्ध हुआ ।
उसके उपरांत मैंने संबंधित व्यक्ति को ‘गाडी ले जाने हेतु (वह गाडी बेंगलुरू से भेजी जानेवाली थी) मैं स्वयं विमान से अभी बेंगलुरू आता हूं’, ऐसा बताया । तब उस व्यक्ति ने ‘आप ऐसा मत कीजिए, उससे आपको आर्.टी.ओ पासिंग कराने में समस्या आएगी’, ऐसा कहा । उस पर मैंने उस व्यक्ति को ‘मेरे संबंधी बेंगलुरू में ही रहते हैं; इसलिए मुझे कोई समस्या नहीं आएगी । आप तुरंत मुझे वॉट्स एप पर अपना पता भेजिए और मेरे कागदपत्र तैयार कीजिए । मैं अब निकलने ही वाला हूं’, ऐसा कहा । तब उस व्यक्ति ने संपर्क कट (बंद) किया ।
२. आधारकार्ड ‘लिंक’ करने के उपरांत संपर्क
मैंने मेरा आधारकार्ड चलित भ्रमणभाष क्रमांक से ‘लिंक’ (जोडा) किया । उसके २-३ दिन उपरांत मेरा ‘ए.टी.एम्.’ (अधिकोष से पैसे की निकासी करने हेतु उपयोग किया जानेवाला एक कार्ड) जिस अधिकोष का है, उस अधिकोष से मुझसे संपर्क किया गया । उन्होंने मुझे ‘आपके खाते में कुछ समस्या आई है । उसके लिए आपको ‘केवाईसी’ (नो युवर कस्टमर – ग्राहक के सत्यापन के पडताल की पद्धति) करनी पडेगी तथा अभी मैं नो आपको लिंक भेज रहा हैं तथा मेरे बताए अनुसार आपको वह करना पडेगा’, ऐसा बताया । इसमें मुझे कुछ गडबड दिखाई दी; क्योंकि मैंने जब मेरा आधारकार्ड चलित भ्रमणभाष के क्रमांक से जोडा तथा अधिकोष से संपर्क होने से मैंने उस व्यक्ति को सीधे-सीधे बताया, ‘‘ठीक है, मैं पुलिस से संपर्क कर उन्हें आपका क्रमांक देता हूं, जिससे आप अधिकोष के आधिकारिक प्रतिनिधि होने की आश्वस्तता होगी’, ऐसा बोलने पर वह मुझे गालियां देने लगा तथा ‘मैं तुम्हें देख लूंगा’, ऐसा बोलते हुए उसने संपर्क कट किया । इससे वह एक फर्जी अधिकोष कर्मचारी था तथा उसे मुझसे मेरे खाते का विवरण लेकर उससे पैसे निकालने थे, यह मेरे ध्यान में आया ।
३. आधारकार्ड पर अंकित पता बदले जाने पर उस कार्ड में गडबडी होने की बात बताना
मैंने एक बार मेरे आधारकार्ड का पुराना पता बदलकर नया पता पंजीकृत किया । उसके उपरांत उसी सायंकाल को एक व्यक्ति ने मुझसे संपर्क कर ‘आप सुरेश सावंत हैं न ? मुझे आपका कार्ड अद्यत करने की ‘रिक्वेस्ट’ मिली है; इसलिए आप मुझे सहयोग कीजिए । आपकी इस प्रक्रिया में कुछ गडबडी हुई है, उसे ठीक करना पडेगा । आप अपने खाते का विवरण भेजिए’ इससे मुझे यह कोई धोखाधडी है, यह मेरे ध्यान में आया । मैंने उसे ‘मैं सुरेश सावंत नहीं हूं, आपने गलत संपर्क किया है (राँग नंबर)’, ऐसा बताकर मैंने संपर्क कट किया ।
४. ‘डिजिटल मार्केटींग’ प्रतिष्ठान की ओर से संपर्क
एक बार मुझे एक कॉल आया । उसमें सामनेवाली महिला ने ‘मैं एक डिजिटल मार्केटींग प्रतिष्ठान की प्रबंधक हूं । आप विभिन्न स्थानों का अवलोकन करने के उपरांत आप गूगल पर अच्छा अभिप्राय (रिव्यू) देते हैं । (हम देश अथवा विदेश में जब यात्रा के लिए जाते हैं, उस समय हम जिन स्थानों पर जाते हैं, उस स्थान का लोकेशन ‘गूगल’ को ज्ञात होता है । यदि हमारी इच्छा हो, तो गूगल द्वारा उपलब्ध ऑनलाइन आवेदन में हम उस स्थान की जानकारी भर सकते हैं तथा संबंधित स्थानों पर दी जानेवाली सुविधाओं के आधशर पर उस स्थान को हम ‘बुरे से लेकर बहुत अच्छा’, ऐसी श्रेणी दे सकते हैं । हमारे अभिप्राय तथा उस स्थान की अन्य विस्तृत जानकारी दिए जाने पर गूगल की ओर से हमें अगले स्तर का ‘बैज’ (श्रेणी) दी जाती है । हमारा भी होटलों का एक ‘ग्रुप’ है । आपने यदि हमारे होटल की शृंखलाओं के लिए इस प्रकार के अभिप्राय दिए, तो उसके बदले में हम आपको सहस्रों रुपए देंगे’, ऐसा
बताया । कुछ महिने छोडकर ‘वॉट्स एप संदेश’ तथा सामाजिक माध्यम ‘टेलिग्राम’ पर मुझे ऐसे संदेश मिलने लगे; इसलिए यह निश्चितरूप से क्या है, यह देख तो लेते हैं ?, इस विचार से मैंने एक व्यक्ति को उनके साथ काम करना स्वीकार किया ।
एक ‘डिजिटल मार्केटिंग’ प्रतिष्ठान ‘एमेजॉन’ (ऑनलाइन शॉप) के लिए काम करता है । कुल मिलाकर जालस्थल पर उनके कार्य का स्वरूप मुझे कुछ मात्रा में मुझे उचित लगने से मैंने उनसे सहमति जताई । उसमें उन्होंने मुझे कुछ ‘टास्क’ (पूरे करने आवश्यक कार्य) दिए थे, जो बहुत ही सरल थे । मैंने उन्हें सहज ही पूरा कर देखा, तो उन्होंने मुझे तुरंत ही पैसे भेज दिए अर्थात यहां तक मुझे उनमें कुछ गडबडी नहीं लगी । उनके टेलिग्राम चैनल में मेरी भांति अनेक लोग ऑनलाइन कार्यरत दिखाई दिए । उसके उपरांत उन्होंने मुझे अगले स्तर का ‘टास्क’ दिया, जिसमें मुझे कुछ गडबडी लग रही थी । वह काम ऐसा था कि ‘एमेजॉन के डिलर को बडी खरीदारी करने हेतु कुछ निवेश कीजिए तथा निवेश किए गए पैसे कुछ ही मिनटों में दोगुने तथा तिगुने कर लें । यह ‘टास्क’ कुछ मिनटों में अर्थात ५ मिनट में पूरा करना था; परंतु मैं सतर्क होकर २ दिन इस ‘टास्क’में सम्मिलित नहीं हुआ । इसमें सम्मिलित अन्य अन्य व्यक्तियों द्वारा पैसों का निवेश करने पर उन्हें किस प्रकार से दोगुने, तिगुने पैसे मिले, ऐसा उन्होंने टेलिग्राम के समूह पर सूचित किया । इसके कारण कोई व्यक्ति ‘इतने शीघ्र पैसे मिलते ैहं, तो तुरंत ही बडा निवेश करेंगे’, यह विचार करेगा; इस प्रकार से उसमें वातावरण बनाया जाता है । ये कौन लोग हैं ? तथा वे कैसे इस प्रकार से लाखों रुपए का लेनदेन कर रहे हैं ?, इसकी मैं खोज करने लगा । जब मैंने उनके प्रोफाईल (अर्थात व्यक्ति की जानकारी) की पडताल की, तब वो लोग संदेहजनक प्रतीत होने लगे । मैं सभी लोगों के साथ एक ‘ग्रुप’ में ही था । उस ग्रुप पर मैं उन व्यक्तियों से ‘क्या ये ‘टास्क’ सच होते हैं अथवा झूठ ?’, ऐसा पूछ नहीं सकता था । उसके कारण मैंने उसमें सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत ‘मेसेज’ कर (संदेश भेजकर) ये लोग निश्चितरूप से कौन हैं ?’, इसका अनुमान लगाने लगा, उस समय मुझे उनके किसी प्रकार का प्रत्युत्तर मिल नहीं रहा था ।
प्रतिष्ठान का बोधचिन्ह (लोगो) आदि की ठीक से आश्वस्तता करने पर भले ही वह बोधचिन्ह ‘एमेजॉन’ का हो, तब भी वह संदेहास्पद लगा । उसमें सम्मिलित लोग तथा उनकी सभी गतिविधियां संदेहजनक लगने लगी तथा उसके उपरांत मैंने उनमें सम्मिलित होना टाला । इस डिजिटल प्रतिष्ठान की प्रबंधक मुझे बार बार ‘आप इस ‘टास्क’में सम्मिलित हों, अन्यथा आपको इस ग्रुप से निकाला जाएगा’, ऐसा बता रही थी । तब मैंने उसे कुछ कारण देकर उसमें सम्मिलित होना टाल दिया । उसके उपरांत यह ध्यान में आया कि २ दिन में वह पूरा ‘टेलिग्राम’ माध्यम का समूह ही गायब हुआ, इसका अर्थ वह समूह तथा प्रतिष्ठान फर्जी था, यह बात इससे ध्यान में आई । ऑनलाइन धोखाधडी करनेवालों का एक बडो गिरोह कार्यरत है तथा ये लोग लोगों से धोखाधडी करने हेतु इकट्ठा होकर ‘ट्रैप’ (धोखाधडी की योजना) बनाते हैं, ऐसा ध्यान में आया ।
यह धोखाधडी डिजिटल रूप में होती है । ऐसे समूह आरंभ में आपके द्वारा किए जानेवाले छोटे कामों के पैसे देते हैं तथा उसके उपरांत लोग उनपर विश्वास कर उनके बताए अनुसार कृति करने लगते हैं तथा जब वे तुरंत लाभ मिलने हेतु बडी धनराशि का निवेश करते हैं, तब धोखाधडी करनेवाले ये लोग उस धनराशि को हडपते हैं तथा वॉट्स एप एवं टेलिग्राम पर उनका समूह ही गायब हो जाता है ।
इसमें किसी के विरुद्ध शिकायत करने की कोई सुविधा नहीं है; क्योंकि इसमें सम्मिलित लोगों के नाम, प्रतिष्ठान तथा उनकी कार्यपद्धति, ये सबकुछ फर्जी होते हैं । यह धोखाधडी की एक नई पद्धति ही है । ईश्वर की कृपा से धोखाधडी की यह पद्धति ध्यान में आई तथा संबंधित लोगों के जाल में प्रवेश कर उनके किसी लालच के झांसे में आए बिना मैं अनुभव लेकर उससे बाहर निकल पाया ।
५. बैंक खाते को जोडने हैतु बैंक से संदेश
एक बार मेरे पिता को उनके खाते का सत्यापन करने हेतु अधिकोष (बैंक) से कुछ संदेश प्राप्त हुए थे । वहां एक ‘लिंक’ देकर उसपर जानकारी अद्यत (अपडेट) करने के लिए कहा गया था । लिंक के विषय में पूछने के लिए जब हम अधिकोष गए, तब अधिकोष ने बताया, ‘हमने यह लिंक नहीं भेजा है ।’ मैंने वह संदेश देखा नहीं था और जब देखा, तो वह लिंक एक फर्जी संदेश होने की बात मुझे पिछले अनुभव से ध्यान में आई ।
६. अधिकोष तथा अन्य विवरण हेतु आनेवाले संपर्क के प्रति सावधानी बरतना !
अधिकोष (बैंक) तथा अन्य प्रतिष्ठानों की ओर से मिलनेवाले प्रत्येक संपर्क की ओर संदेहजनक दृष्टि से नहीं देखा जाता तथा आवश्यक सावधानी नहीं बरती जाती । इसमें मुख्य बात यह कि हमने अधिकोष तथा हमारे विभिन्न परिचयपत्रों के संदर्भ में जो काम किया होता है, उनके संबंध में ही ये संपर्क किए जाते हैं; इसलिए हम उनके झांसे में आते हैं । इसके पीछे धोखाधडी करनेवाले लोगों का एक समूह कार्यरत होता है, साथ ही गूगल के द्वारा हमारा अता-पता उन्हें मिलता है । बैंक के लेन-देन तथा अन्य ऑनलाइन लेन-देन के विषय में संबंधित प्रतिष्ठान हमें सुरक्षा का कितना भी विश्वास दिलाएं, तब भी हमारे लेन-देन तथा हमारे संपर्क पर ये ‘डिजिटल’ चोर कितनी दृष्टि रखे होते हैं, यह उक्त उदाहरणों से समझ में आता है । वर्तमान में सब्जी खरीदने से लेकर भोजन मंगवाने तथा पैसों का ऑनलाइन लेन-देन करने की ओर ही लोगों का अधिक झुकाव है । उसके कारण इस ऑनलाइन मार्ग में ऐसे चोर हमपर दृष्टि बनाए रखे होते हैं । वे आपसे संपर्क कर अथवा संदेश भेजकर आप उनके जाल में फंस रहे हैं अथवा नहीं ?, इसका २-३ बार अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं । यदि आप उनके झांसे में नहीं आते हैं, तो वे अपना अगला शिकार ढूंढने में लग जाते हैं ।
इसमें पहले ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ के नाम से एक ऑनलाइन खेल था । अब भले ही उस पर प्रतिबंध लगाया गया हो, तब भी इसमें बच्चों को विभिन्न संकटकारी ‘टास्क’ (लक्ष्य) देकर उन्हें पूरा करने हेतु बच्चों को प्रेरित किया जाता है । इसमें स्वयं की इच्छा न होते हुए भी इस खेल में इस प्रकार से वातावरण बनाया जाता है कि व्यक्ति उसमें फंसता जाता है तथा उसके उपरांत संकटकारी ‘टास्क’ में, उदा. ‘ऊंचे भवन की सज्जा की दीवार पर पैदल चलिए’ इत्यादि टास्क करने के पीछे पड जाता है तथा अपने जान से हाथ धो बैठता है ।
यहां ऑनलाइन धोखाधडी की विभिन्न पद्धतियां निश्चितरूप से कैसी होती हैं ?, यह ध्यान में आने हेतु कुछ उदाहरण दिए हैं । इसमें नए सिरे से ‘डिजिटल एरेस्ट’ की एक नई पद्धति अंतर्भूत हुई है ।
७. साधना के अंग का महत्त्व
कुल मिलाकर यह पूरी धोखाधडी ‘डिजिटल’ अर्थात सूक्ष्म स्तर की है । उसमें मन एवं बुद्धि को जागृत रखकर ऐसे विषयों का सामना करनेसहित आध्यात्मिक अंग अर्थात सूक्ष्म स्पंदन प्रतीत होना, यह विषय महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि सामनेवाला व्यक्ति कौन है ? फर्जी है अथवा सत्य है ? वह किसके साथ बात करता है अथवा कौनसे लेन-देन करता है, यह समझ में आने का कोई मार्ग नहीं है । ऐसे सूक्ष्म स्पंदन समझ में आना केवल साधना से ही संभव है । साधना करने पर ऐसे प्रसंगों में ‘कुछ तो गडबड है’, ऐसा प्रतीत हुआ, तो उसके पश्चात ‘वह गडबडी कैसी है ? क्या है ?, इसे समझ लेने के लिए मन-बुद्धि के द्वारा अच्छे प्रयास करना संभव होता है । कुल मिलाकर वर्तमान की इस धोखाधडी की नई-नई पद्धतियों में फंसने से लेकर भगवान की सहायता लेना आवश्यक है ।
श्री गुरुचरणार्पणमस्तु ।
– श्री. यज्ञेश सावंत, सनातन संकुल, देवद, पनवेल. (११.१२.२०२४)