(‘डीप स्टेट’ का अर्थ है सरकारी तंत्र तथा निजी संगठनों की गुप्त सांठगांठ ! इस व्यवस्था के द्वारा सरकारी नीतियां निजी संगठनों के लिए अनुकूल बनाई जाती हैं ।)
विश्व के विभिन्न धर्माें का प्रत्यक्ष अध्ययन करने वाले, स्वामी विवेकानंदजी ने भारत में चल रहे धर्मांतरण के संकट को पहचानकर कहा, एक हिन्दू का धर्मांतरण अर्थात धर्म से एक हिन्दू की संख्या घटना इतना ही नहीं है, अपितु हिन्दू धर्म के शत्रुओं में एक शत्रु का बढना है । धर्मांतरण के कारण हिन्दू जहां अल्पसंख्यक हो चुके हैं ऐसे कश्मीर, मणिपुर, नागालैंड जैसे भारत के राज्य तथा पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों में हम आज भी इसका प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं । आज पूरे देश में भारत विरोधी विभाजनकारी आंदोलन चल रहे हैं तथा धर्मांतरण करनेवाले ये संगठन उन्हें बल देने का कार्य कर रहे हैं । स्वयं को ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्ष) कहनेवाले ये राजनेता ऐसे लोगों को संरक्षण देने का कार्य कर रहे हैं । उसके कारण ही हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऊपर से दिखाई देनेवाले धर्मांतरण के पीछे ‘डीप स्टेट’ है । इस लेख से निश्चित ही यह बात आपके ध्यान में आएगी । १६ से ३१ दिसंबर २०२४ के पाक्षिक में प्रकाशित लेख में हमने, ‘चर्च के प्रभाव में ईसाई देशों द्वारा पंथ विस्तार के लिए पूरे विश्व के देशों पर आक्रमण करना तथा वहां की मूल संस्कृति को नष्ट करना एवं व्यापार करने के साथ ईसाईकरण करने के भी प्रयास’, इस विषय में पढा । इस लेख में हम आगे का भाग देखेंगे ।
श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
४. ईशान्य भारत को ईसाई बनाने का ब्रिटिशों का षड्यंत्र
पहले गुरुकुल अथवा पाठशालाओं से ब्राह्मण विद्यादान तथा धर्मशिक्षा देने का कार्य करते थे । उसके कारण हिन्दू समाज पीढी-दर-पीढी हिन्दू धर्म से जुडा रहता था । ब्रिटिशों ने ईसाई धर्मप्रसार में आनेवाली इस बाधा को पहचानकर दो प्रकार के उपाय सुनिश्चित किए । उसमें पहला, ब्राह्मणों द्वारा अन्य समाज के लोगों पर अत्याचार किए जाने की अवधारणा फैलाकर उन्हें अप्रासंगिक प्रमाणित करना तथा दूसरा, उनके हाथ से विद्यालय छीनकर उन्हें मिशनरियों को सौंपना ! गोवा में १६ वीं शताब्दी में फ्रांसिस जेवियर ने ब्राह्मणों को ही धर्मांतरण में मुख्य बाधा माना था । ३ फरवरी १८४६ को लिखे पत्र में तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर (आयुक्त) जेनकिंस ने कंपनी सरकार को वनवासी समूहों में से ‘गारो’ समुदाय को ब्राह्मणवाद से दूर रखने का अनुरोध किया, अन्यथा गारो समुदाय स्वयं के हिन्दू होने का दावा कर सकता है । उसके कारण उन्होंने उस पत्र में स्पष्टता से कहा है कि मिशनरी सज्जनों को ‘विद्यालयों के अधीक्षक’ के रूप में नियुक्त करें । वहां अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए वांशिक, भाषिक तथा धार्मिक वंश के आधार पर लोगों को विभाजित किया गया । वनों के संदर्भ में पर्वतीय तथा मैदानी समतल क्षेत्र, इस प्रकार विभाग बनाए गए । कुछ समुदायों को पर्वतीय क्षेत्रों में बसाया गया तथा उस माध्यम से वनवासियों को उनके मूल स्थान से दूर ले जाकर उनका धर्मांतरण किया गया । वर्ष १८८१ में नागालैंड के केवल ३ लोगों ने ईसाई पंथ को स्वीकार किया था । वर्ष १८९१ की जनगणना में यह संख्या २११ थी तथा आज उनकी जनसंख्या लगभग ८८ प्रतिशत हो गई है । लुशाई हिल जिले में (वर्तमान के मिजोरम में) वर्ष १८८१ तक एक व्यक्ति ने भी ईसाई पंथ को स्वीकार नहीं किया था । वर्ष १८९१ में दो व्यक्तियों ने ईसाई पंथ स्वीकार किया । ब्रिटिश निवेशकों ने हिन्दू संतों/पंडितों तथा अन्य लोगों को मैदानी प्रदेशों से पर्वतीय क्षेत्र में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया, जबकि मिशनरियों को उनके शिविर स्थापित करने की सुविधा प्रदान की । इसके परिणामस्वरूप लुशाई हिल में ईसाई जनसंख्या वर्ष १९०१ में ०.०५ प्रतिशत से वर्ष २०११ में ८७ प्रतिशत हो गई ।
५. स्वतंत्रता के उपरांत नेहरू ने ब्रिटिशों की नीतियां अपनाकर धर्मांतरण को प्रोत्साहन दिया !
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात कांग्रेस सरकार से अपेक्षित था कि वह ब्रिटिशों के हितों की रक्षा करनेवाले कानूनों को रद्द करे; परंतु उन्होंने मिशनरियों द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण को प्रतिबंधित करनेवाले किसी भी विधेयक को पारित नहीं होने दिया । वर्ष १९५५ में भी धर्मांतरण का नियमन करनेवाला विधेयक लाया गया; परंतु नेहरू ने उसे अस्वीकार कर दिया । वर्ष १९६० में ‘एस.सी.-एस.टी.’ (अनुसूचित जातियों-जनजातियों) को धार्मिक मान्यताओं के अतिरिक्त अन्य किसी कारण से बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन करने से बचाने के लिए संसद में एक और विधेयक प्रस्तुत किया गया । तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उस विधेयक को भी अस्वीकार कर दिया । उस समय के मंत्री बी.एन. दातार ने इस विधेयक का समर्थन करने के स्थान पर मिशनरियों की ही प्रशंसा करते हुए कहा, ‘मिशनरी मानवजाति की सेवा में स्वयं को समर्पित कर येशू के ध्येय को आगे ले जा रहे हैं, जो विश्व के लिए उनका सबसे बडा योगदान है ।’ (संदर्भ : पू. सीताराम गोयल, ‘स्यूडो-सेक्युलैरिजम : ईसाई मिशन तथा हिन्दू रेजिस्टेंस’ पुस्तक) सत्ता में आसीन कांग्रेस के ऐसे दृष्टिकोण के कारण मिशनरियों के धर्मांतरण अभियान को और बल मिला, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष १९५१ से १९७१ की अवधि में ईसाई जनसंख्या १७१.१ प्रतिशत बढ गई ।
६. जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों की नीतियों को ही आगे बढाकर हिन्दू साधुओं पर प्रतिबंध लगाया तथा मिशनरियों को खुली छूट दे दी
स्वतंत्रता मिलने के उपरांत भी नेहरू की भूमिका के कारण हमारे विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों में ब्रिटिशों की नीतियां ही जारी रखी गईं । जवाहरलाल नेहरू ने ‘चर्च ऑफ नागालैंड’ के मुख्य लोगों से समझौता किया । ‘वेरियर एल्विन’ नामक ब्रिटिश अधिकारी को ‘मानववंश शास्त्र के अध्येता’ के रूप में वहां खुली छूट दी गई तथा हिन्दू संतों को नागालैंड में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया । उसी प्रकार नागालैंड में हिन्दू मंदिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया; परंतु मिशनरी विशेषाधिकारों का आनंद उठाते रहे तथा इस प्रकार धर्मप्रचार का मिशन पूरा करने की उनकी नीति चलती रही । जवाहरलाल नेहरू को ईसाई मिशनरियों की सुरक्षा की चिंता तो थी ही, साथ ही उन्होंने उन्हें सुविधाएं भी दे रखी थीं । १७ अक्टूबर १९५२ को लिखे पत्र में प्रधानमंत्री नेहरू ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ‘मिशनरियों के प्रति भेदभाव अल्प हो तथा उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो’, इसका विशेष ध्यान रखने के आदेश दिए तथा ईशान्य के कुछ मिशनरियों ने विभाजनकारी आंदोलनों को प्रोत्साहन दिया । तब भी उन्होंने संविधान का हवाला देकर धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाना अस्वीकार कर दिया ।
७. कांग्रेस की नीतियों के कारण ईशान्य भारत के राज्य विभाजन के संकट की ओर !
सेनाप्रमुख जनरल (उसके उपरांत फील्ड मार्शल) करियप्पा ने नेहरू को यह सुझाव दिया कि ईशान्य के लोगों को राष्ट्रीय धारा में लाने के लिए उन्हें विकसित किया जाना चाहिए; परंतु नेहरू को अत्यंत प्रिय ब्रिटिश मिशनरी वेरियर एल्विन ने नेहरू को यह सुझाव दिया कि उस प्रदेश में अनेक वनवासी समुदाय हैं । इसलिए उनकी मूल संस्कृति को संजोने हेतु सरकार को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।’ नेहरू द्वारा इसे स्वीकार कर लेने के कारण वहां के विदेशी ईसाई मिशनरियों को खुली छूट ही मिल गई । (२३.१०.२०२४)
वेरियर एल्विन ने नेहरू द्वारा उसे दी गई सुविधाओं का अनुचित लाभ उठाकर आदिवासी लडकियों का शोषण किया । जब वह ४० वर्ष का था, तब उसने १३ वर्ष की आदिवासी लडकी के साथ विवाह किया, जो उसकी छात्रा थी । उसने उसका ‘गिनीपिग’ जैसे (चिकित्सकीय प्रयोगों के लिए उपयोग किए जानेवाले प्राणी जैसे) उपयोग किया तथा उसके साथ आंतरिक यौन क्रियाओं का विवरण प्रकाशित किया । विवाह के लगभग ९ वर्ष उपरांत एल्विन ने उसे छोडकर अरुणाचल प्रदेश की लीला नाम की आदिवासी लडकी से विवाह किया । इसके द्वारा उसने भारत के साथ वनवासी समूहों के संबंध तोडकर उन्हें ‘वन के आदिवासी’ घोषित कर दिया । उसके कारण आज वे स्वयं को मूल निवासी मानते हैं तथा भारत के साथ एकनिष्ठता स्वीकार नहीं करते । आज मणिपुर के कुकी समुदाय के आतंकियों के माध्यमों में उपलब्ध वीडियो देखें, तो उनके पास आधुनिक बंदूकें तथा ड्रोन आदि दिखाई देते हैं, साथ ही उनका रहना तथा भोजन चर्च में होता दिखाई देता है; परंतु इससे ‘भारत विरोधी इन विभाजनकारियों को चर्च का समर्थन क्यों है ?’, कोई भी यह प्रश्न नहीं पूछता ।
८. केवल धर्मांतरण ही नहीं, अपितु राष्ट्रांतर !
गोवा की मुक्ति हेतु अनेक स्वतंत्रता सेनानी प्राणों की बाजी लगाकर लडे । उनमें से डॉ. टी.बी. कुन्हा को गोमंतक के ‘आधुनिक स्वतंत्रता के जनक’ के रूप में जाना जाता है । वर्ष १९६१ में पुर्तगाली भारत से चले गए; परंतु गोवा में अभी भी पुर्तगालप्रेमी हैं । डॉ. टी.बी. कुन्हा ने ‘गोमंतकवासियों का अराष्ट्रीयकरण कैसे हुआ है ?’, अपने ‘डिनेशनलाइजेशन ऑफ गोवन्स’, पुस्तक में इसका विस्तृत इतिहास लिखा है । उनकी पुस्तक पढने पर यह समझ में आता है कि भारत के प्रति, धर्मांतरित ईसाईयों की अपने मूल धर्म के प्रति तथा देवताओं के प्रति श्रद्धा नष्ट हो गई है तथा उनके मन में उन्हें गुलाम बनानेवाले पुर्तगालियों के प्रति प्रेम है । इतना ही नहीं, वे गोवा को भारत से अलग करने की असफल संकल्पना रख रहे हैं । वे उनके मूल देवताओं से तो द्वेष कर ही रहे हैं । ‘गोवा का रक्षक विदेशी जेवियर नहीं, भगवान परशुराम हैं’, ऐसा कहने पर पुर्तगाल प्रेमी ईसाईयों को पेटदर्द होने लगता है । गोमंतकवासियों पर अमानवीय अत्याचार करने को प्रधानता देनेवाले फ्रांसिस जेवियर उन्हें ‘गोवा का साहिब’ लगता है । वीर सावरकर भी कहते थे, ‘धर्मांतरण तो राष्ट्रांतर होता है ।’
(क्रमशः)
– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
(साभार : साप्ताहिक ‘हिन्दुस्थान पोस्ट’ का दीपावली विशेषांक)