ज्योतिषशास्त्रानुसार रत्न धारण करने का महत्त्व

‘भारत में रत्नों का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है । प्राचीन ऋषि, ज्योतिषी, वैद्याचार्य आदि ने उनके ग्रंथों में ‘रत्नों के गुणधर्म एवं उपयोग’ संबंधी विवेचन किया है । ज्योतिषशास्त्र में ग्रहदोषों के निवारण के लिए रत्नों का उपयोग किया जाता है । रत्न धारण करने के पीछे का उद्देश्य एवं उनका उपयोग इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

रत्नों के प्रकार

१. रत्नों के प्रकार

रत्नों के खनिज, जैविक इत्यादि प्रकार हैं । जैविक रत्न कीटक अथवा जीव-जंतुओं से निर्माण होते हैं, उदा. मोती एवं मूंगा । खनिज रत्न भूगर्भ में रासायनिक क्रिया के कारण सैकडों वर्षों में तैयार होते हैं, उदा. माणिक, पन्ना, नीलम इत्यादि । उन्हें तराशकर फिर उनका शुद्धीकरण किया जाता है ।

श्री. राज कर्वे

२. रत्न धारण करने के पीछे उद्देश्य

रत्न प्राकृतिक दिव्य पदार्थ हैं । रत्नों से उनके गुणधर्म के अनुसार सूक्ष्म ऊर्जा वातावरण में प्रक्षेपित होती रहती है, इसके साथ ही ग्रहों से आनेवाली सूक्ष्म ऊर्जा रत्नों में आकृष्ट होती है । इसलिए रत्न धारण करनेवाले व्यक्ति के शरीर एवं मन पर रत्नों की सूक्ष्म ऊर्जा का परिणाम होता है । रत्न घन पदार्थ होने से उनमें सूक्ष्म ऊर्जा अधिक काल तक बनी रहती है ।

३. रत्न एवं ग्रह का संबंध

प्रत्येक रत्न का विशिष्ट रंग है । आधिदैविक विज्ञानानुसार प्रत्येक रंग में सत्त्व, रज एवं तम, ये गुण अल्प-अधिक मात्रा में होते हैं । उदा. काले रंग में तमोगुण, लाल रंग में रजोगुण एवं पीले रंग में सत्त्वगुण अधिक होता है । रत्न एवं ग्रह की रंग-समानता पर उनका संबंध निश्चित किया गया है । उदा. ‘माणिक’ ये लाल रंग का रत्न रवि से संबंधित हैं, ‘पुष्कराज’ ये पीले रंग का रत्न गुरु ग्रह से संबंधित हैं इत्यादि ।

४. रत्नों का ज्योतिषशास्त्रीय उपयोग

व्यक्ति की जन्मकुंडली में जो ग्रह बलहीन अथवा दूषित होते हैं, उन ग्रहों से संबंधित रत्न धारण किए जाते हैं अथवा शरीर में जो ऊर्जा बढनी आवश्यक है, उस ऊर्जा से संबंधित रत्न धारण करना लाभदायक होता है । उदा. व्यक्ति में आत्मविश्वास अल्प होने से उसका रवि का माणिक रत्न धारण करना लाभदायक है । रत्न अंगूठी में जडवा लेना उत्तम है । आगे की सारणी में वह दिया है कि ‘रत्नों से सबंधित ग्रह, रत्नों का उपयोग एवं हाथ की किस उंगली में कौनसा रत्न धारण करें ।’

५. रत्न धारण करने के संदर्भ में कुछ सूत्र

५ अ. महिलाओं को बाएं हाथ में और पुरुषों को दाएं हाथ में रत्न धारण करना चाहिए । योगशास्त्रानुसार बायां हाथ चंद्रनाडी से और दायां हाथ सूर्यनाडी से संबंधित है ।

५ आ. रत्न धारण करने से पूर्व उस पर मंत्रपूर्वक अभिषेक करते हैं । इसलिए रत्न पर चैतन्य का संस्कार होता है ।

५ इ. जिस ग्रह से संबंधित रत्न है, उस ग्रह के वार पर सूर्योदय के उपरांत रत्न धारण करें ।

५ ई. रत्न भंग होने पर उसका उपयोग न करें ।

६. कृत्रिम रत्नों का उपयोग करना टालें !

वर्तमान काल में कृत्रिम (synthetic) रत्न भारी मात्रा में बनाए जाते हैं । प्राकृतिक रत्न एवं कृत्रिम रत्न दिखने में एक समान होते हैं; परंतु कृत्रिम रत्न तुलना में भुरभुरे होते हैं । इसलिए उनमें कम पहलू (facets) होते हैं; कृत्रिम रत्नों का मूल्य अल्प होता है; परंतु प्राकृतिक रत्नों में विद्यमान दैवीय ऊर्जा कृत्रिम रत्नों में नहीं होती । इसलिए ग्रहदोषों के एवं व्याधियों के निवारण के लिए प्राकृतिक रत्नों का उपयोग लाभदायक है ।’

– श्री. राज कर्वे, ज्योतिष विशारद, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२०.१२.२०२२)