शनि ग्रह की ‘साढे साती’ आध्यात्मिक जीवन को गति देनेवाली अवधि है !

‘शनि ग्रह की ‘साढे साती’ कहते ही सामान्यतः हमें भय लगता है । ‘मेरा बुरा समय आरंभ होगा, संकटों की शृंखला आरंभ होगी’, इत्यादि विचार मन में आते हैं; परंतु साढे साती सर्वथा अनिष्ट नहीं होती । इस लेख द्वारा ‘साढे साती क्या है तथा साढे साती की अवधि में हमें क्या लाभ हो सकता है’, इसकी जानकारी लेंगे ।


१. साढे साती का अर्थ क्या है ?

साढे साती अर्थात साढे सात वर्षों का कालखंड । ३ राशियों से भ्रमण करने में शनि ग्रह को लगभग साढे सात वर्ष लगते हैं । ‘व्यक्ति की जन्मरास, जन्मराशि की पिछली रास एवं जन्मराशि की अगली रास’ ऐसी ३ राशियों से शनि ग्रह का भ्रमण होते समय व्यक्ति को साढे साती होती है । इस प्रकार की राशि पर आधारित गणना भी स्थूल रूप से प्रचलित है । इस विषय में सूक्ष्म पद्धति ऐसी है कि व्यक्ति की जन्मराशि में चंद्र जिस अंश पर होता है, उसके पीछे ४५ अंश पर शनि ग्रह आने पर साढे साती का आरंभ होता है और उसके आगे ४५ अंश पर शनि ग्रह जाने पर साढे साती समाप्त होती है । शनि ग्रह पूर्ण राशिचक्र लगभग ३० वर्षां में भ्रमण करता है । इसलिए व्यक्ति के जीवन में एक बार साढे साती आने के पश्चात वह पुन: लगभग ३० वर्षों में आती है ।

२. साढे साती की अवधि में किस प्रकार के कष्ट होते हैं ?

शनि ग्रह वायुतत्त्व से संबंधित ग्रह है । विकार, वियोग, विलंब, व्यय इत्यादि वायुतत्त्व के अनिष्ट परिणाम हैं । इसलिए शनि ग्रह सांसारिक जीवन के लिए बाधक होता है । साढे साती की अवधि में सामान्यतः शारीरिक व्याधि, आर्थिक हानि एवं पारिवारिक कलह जैसे दुष्परिणाम मार्ग में आते हैं । साढे साती का सर्वाधिक परिणाम मन पर होता है । ‘इच्छापूर्ति न होना एवं इच्छा के विरुद्ध बातें होना’ ये परिणाम अनुभव होते हैं ।

३. साढे साती सदा अशुभ फल देती है क्या ?

प्रत्येक व्यक्ति की जन्मकुंडली की ग्रहस्थिति के अनुसार साढे साती के प्रभाव का स्वरूप भिन्न होता है । कुछ व्यक्तियों को साढे साती में विशेष कष्ट नहीं होता, जबकि कुछ के लिए साढे साती का काल अच्छा जाता है । वर्तमान में शनि ग्रह मूल जन्मकुंडली के अशुभ स्थान से अथवा अशुभ ग्रहों से भ्रमण होने से कष्ट अधिक होता है । इसके विपरीत शनि ग्रह शुभ स्थान से एवं अन्य ग्रहों के शुभ योगों से जा रहा हो, तो कष्ट अल्प होता है । इस कारण साढे साती सर्वथा अनिष्ट एवं हानिकारक नहीं होता ।

श्री. राज कर्वे

४. साढे साती की अवधि में व्यक्ति को होनेवाले लाभ

शनि ग्रह सांसारिक जीवन के लिए भले ही बाधक हो, तब भी आध्यात्मिक जीवन को गति प्रदान करता है । चिंतनशील स्वभाव, संयम, समाधान, विवेक, वैराग्य इत्यादि शनि ग्रह के शुभ गुण हैं । साढे साती के काल में व्यक्ति को इन गुणों की वृद्धि करने का अवसर मिलता है । मानव मन की दौड सतत माया की ओर होती है । मन की इच्छा एवं महत्त्वाकांक्षा उत्तरोत्तर बढती ही रहती है । सांसारिक जीवन समृद्ध करने की भागदौड में ‘आध्यात्मिक जीवन भी समृद्ध करना आवश्यक है’, यह हम भूल जाते हैं । साढे साती इसका स्मरण करवानेवाला काल है । संकटकाल में केवल ईश्वर ही सहायता हेतु आते हैं । साढे साती व्यक्ति को अंतर्मुख करता है । व्यक्ति के जीवन में माया की अशाश्वतता आकर उसके जीवन में अध्यात्म को स्थान मिलता है । इसलिए साढे साती की ओर सकारात्मक दृष्टि से देखना आवश्यक है ।

५. साढे साती का कष्ट किसे नहीं होता ?

आध्यात्मिक उन्नति साध्य किए हुए साधक को साढे साती का मानसिक कष्ट नहीं होता । ऐसे साधक का ‘मनोलय’ हो चुका होता है, अर्थात मन साधना में स्थिर हो चुका होता है । इसलिए साढे साती के काल में, इसके साथ ही सामान्य जीवन में भी होनेवाले सुख-दुख के प्रसंगों की ओर साधक तटस्थता से देखता है । प्रारब्ध में जो लिखा है, उसे टालना अपने हाथ में नहीं; परंतु प्रारब्ध के कारण होनेवाला मानसिक कष्ट टालना हमारे हाथ में है ।

६. साढे साती की अवधि में बरती जानेवाली सावधानी

६ अ. संबंधियों से अपेक्षा न करते हुए स्वयं ही संबंधियों की सहायता करने का प्रयत्न करें । अपेक्षा करने से तनाव निर्माण होता है, तो सहायता करने से सुसंवाद साधा जाता है ।

६ आ. आर्थिक निर्णय भावनाशीलता अथवा उतावलेपन में न लेकर विचारपूर्वक लें । अनावश्यक व्यय (खर्च) टालें ।

६ इ. शरीर निरोगी रहने के लिए आयुर्वेदानुसार आचरण करने का प्रयत्न करें । (अधिक जानकारी हेतु पढें सनातन का ग्रंथ : ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियोंके निरोगी रहें !’)

६ ई. प्रारब्ध सुसह्य होने के लिए ‘कुलदेवी’ एवं ‘दत्त’, इन देवताओं का नामजप प्रतिदिन करें । (अधिक जानकारी के लिए पढिए सनातनका ग्रंथ : ‘नामजप कौनसा करें ?’)’

– श्री. राज कर्वे, ज्योतिष विशारद, गोवा.