नई देहली – देश के कारागृहों के केवल २२ प्रतिशत बंदियों के अपराध सिद्ध होते हैं । इसलिए वे दंड भुगत रहे हैं, जबकि ७७ प्रतिशत बंदियों के अभियोग प्रलंबित होने से वे अबतक कारागृहों में बंद हैं । ‘इंडिया जस्टिस’ के विवरण (रिपोर्ट)से यह जानकारी सामने आई है । वर्ष २०१० में यह संख्या २ लाख ४० सहस्र थी, तो वर्ष २०२१ में दुगुनी होकर ४ लाख ३० सहस्र हो गई है । अर्थात उसमें ७८ प्रतिशत की बढोतरी हुई है ।
जेलों में सिर्फ 22% ही सजायाफ्ता: 77% अंडरट्रायल कैदी, 2021 में दोगुनी हो गई तादाद; नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में विचाराधीन कैदी बढ़े https://t.co/B4Y620eldA #IndiaJusticeReport pic.twitter.com/AFXufX5kCm
— Dainik Bhaskar (@DainikBhaskar) April 4, 2023
अधिक समय कारागृह में रहने से होनेवाला परिणाम !
इस विवरण में कहा गया है कि जिनके अभियोग प्रलंबित हैं, ऐसे बंदियों को लंबे समय से कारागृह में रखा गया है । ऐसा करने से देखा गया है कि अभियोग पूरा होने में भी बहुत समय व्यय होता है । तथापि केवल प्रशासकीय कामकाज ही नहीं बढता है, अपितु प्रत्येक बंदी पर होनेवाला व्यय (खर्च) भी बढ रहा है । इसका भार सरकारी कोषागार पर पडता है ।
संपादकीय भूमिकाअपराधियों को बंदी बनाकर उनके अभियोग प्रलंबित रखना, अपराधी एवं अभियोगी दोनों के साथ अन्याय है । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए सरकार को कडे प्रयास करना आवश्यक ! |