सरकारी सहायता प्राप्त मिशनरी स्कूलों में पादरियों तथा ननों को अपने वेतन पर आयकर देना होगा !

 

  •  सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला 

  • दिसंबर २०१४ में बीजेपी सरकार ने टैक्स लगाने का फैसला लिया था !

नई दिल्ली – एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि सरकारी सहायता प्राप्त ईसाई मिशनरी स्कूलों में पादरी तथा ननों का वेतन आयकर के अधीन है । कोर्ट ने कहा है कि इसमें कोई समस्या नहीं है कि आयकर विभाग द्वारा टीडीएस (प्रतिष्ठान द्वारा कर कटौती) नहीं काटा जाना चाहिए । टीडीएस आय के स्रोत पर लगाया जाने वाला कर है । तमिलनाडु और केरल में १०० ईसाई डायोसेसन संस्थानों और उनकी मन्डलियों की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी अनुदान के माध्यम से प्राप्त सभी वेतन पर कर लगाया जाएगा ।

१. कुछ दिन पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया । वर्ष १९४४ में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने मिशनरी स्कूलों को कर से छूट दी थी । इसके बाद *करीब ७ दशकों तक टैक्स नहीं वसूला गया । दिसंबर २०१४ में जब बीजेपी सत्ता में थी तो केन्द्र सरकार ने ‘टीडीएस’ लागू किया ।

२. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि सरकारी सहायता प्राप्त मिशनरी स्कूलों में काम करने वाले ईसाई पादरी तथा ननों पर कर नहीं लगाये जाते, जबकि उनका वेतन सरकारी खजाने से आता है यानि लोगों द्वारा दिए गए कर से ।

३. वर्ष २०२१ में, केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि ननों और पादरियों को दिया जाने वाला वेतन कर योग्य है । हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद २५ का उल्लंघन नहीं है, जो धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करता है । इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी ।

संपादकीय भूमिका

  • इसका अर्थ यह है कि कांग्रेस शासन के दौरान सरकारी सब्सिडी होने के बावजूद पादरियों तथा ननों को कर नहीं देना पडता था । इसलिए जनविरोधी कांग्रेस पर कार्यवाही की जाए और उससे हजारों करोड रुपए ब्याज सहित वसूले जाएं !

  • ध्यान दें कि इस प्रकार के ईसाई मिशनरी स्कूल धर्मनिरपेक्षता और लोकतन्त्र की हत्या हैं और हत्यारी है कांग्रेस !