तिथि का महत्त्व एवं व्यक्ति की जन्मतिथि निश्चित करने की पद्धति

‘भारतीय कालमापन पद्धति में ‘तिथि’ का महत्त्व है; परंतु वर्तमान में ‘ग्रेगोरीयन’ (यूरोपीय) कालगणना के अनुसार भारत में तिथि का उपयोग व्यवहार में न करते हुए केवल धार्मिक कार्य के लिए ही होता है । प्रस्तुत लेख द्वारा तिथि का महत्त्व एवं व्यक्ति की जन्मतिथि निश्चित करने की पद्धति समझ लेंगे ।

१. तिथि क्या है ?

अमावस्या को सूर्य एवं चंद्र एकत्र होते हैं । तदुपरांत चंद्र अपनी तीव्र गति के कारण पूर्व दिशा में सूर्य के आगे जाने लगता है । इस प्रकार सूर्य एवं चंद्र में १२ अंशों का अंतर होने पर १ तिथि पूर्ण होती है; २४ अंशों का अंतर होने पर २ तिथियां पूर्ण होती हैं । इस प्रकार अगली अमावस्या तक कुल ३० तिथियां होती हैं ।

२. हिन्दू धर्म में तिथि का महत्त्व होने का कारण

भारतीय कालमापन पद्धति में माह (महीना) चंद्र पर नापा जाता है । अमावस्याओं में माह (अमावस्या पर समाप्त होनेवाला) अथवा पूर्णिमा में माह (पूर्णिमा पर समाप्त होनेवाला) ऐसे माह गणना की जाती है । अपने अधिकांश त्योहार, उत्सव, देवताओं की जयंती इत्यादि चंद्रमासानुसार अर्थात तिथि अनुसार मनाई जाती हैं । इसका कारण यह है कि सूर्य का परिणाम अधिकतर स्थूल सृष्टि पर एवं स्थूल देह पर होता है, जबकि चंद्र का परिणाम सूक्ष्म सृष्टि पर एवं सूक्ष्म देह पर (मन पर) होता है । स्थूल ऊर्जा की तुलना में सूक्ष्म ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है । शारीरिक बल की तुलना में मानसिक बल अधिक महत्त्वपूर्ण होता है । पूर्णिमा एवं अमावस्या, इन तिथियों को सूर्य एवं चंद्र का संयुक्त परिणाम पृथ्वी पर होता है । अतः हिन्दू धर्म में दिनांक के स्थान पर चंद्र की तिथि को महत्त्व दिया गया है ।

३. जन्मतिथि का महत्त्व

श्री. राज कर्वे

व्यक्ति के जन्म के समय की तिथि को ‘जन्मतिथि’ कहते हैं । विशिष्ट मास, तिथि एवं नक्षत्र सदैव एकत्र होते हैं । उदा. मार्गशीर्ष पूर्णिमा को चंद्र मृग नक्षत्र में अथवा मृग नक्षत्र के आसपास के नक्षत्र में होता है । जन्म के समय की तिथि एवं नक्षत्र का परिणाम व्यक्ति के मन पर होकर उसका व्यक्तित्व बनता है । हिन्दू धर्म में बताए अनुसार जन्मदिन जन्मतिथि पर मनाने पर आरती, स्तोत्रपठन, बडों के आशीर्वाद आदि लेने के कारण व्यक्ति की सूक्ष्म देह की (मन की) सात्त्विकता बढती है, इसके विपरीत जन्मदिन जन्मदिनांक पर मनाने से केवल स्थूल देह को थोडा-बहुत लाभ होता है । जन्मदिन पाश्चात्य पद्धति से मोमबत्ती बुझाकर एवं केक काटकर मनाने से कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता ।

४. जन्म के क्षण जो तिथि होगी, वह तिथि व्यक्ति की ‘जन्मतिथि’ होना

प्रतिदिन उपयोग में आनेवाली स्थानीय दिनदर्शिका में दिनांक के समीप तिथि लिखी होती है । वह तिथि उस दिन सूर्योदय को स्पर्श करनेवाली तिथि होती है । सूर्योदयवाली तिथि उस दिन पूरे दिन होगी, ऐसा नहीं है । इसलिए जन्मतिथि निर्धारित करते समय ‘बालक के जन्म के क्षण जो तिथि होगी’, वह तिथि जन्मतिथि के रूप में लें । उदाहरण ‘नवमी’ तिथि किसी दिन दोपहर १ तक होगी तथा शिशु का जन्म दोपहर १ के पश्चात हुआ हो तो उसकी जन्मतिथि ‘दशमी’ होगी । उस वर्ष के लिए पंचांग अथवा स्थानीय दिनदर्शिका (कैलेंडर) के पिछले पृष्ठों पर तिथियों की समाप्ति का समय तत्कालीन वर्ष के पंचांग में अथवा स्थानीय दिनदर्शिका के पिछले पृष्ठों पर दी होती है । तिथि के संदर्भ में कोई शंका हो, तो ज्योतिष से अपनी जन्मतिथि उचित होने की निश्चिति कर लें ।’

– श्री. राज कर्वे, ज्योतिष विशारद, गोवा. (२६.११.२०२२)