१. सिंहगढ पर काम करने का नाटक तथा उसकी अनदेखी करनेवाली राज्य सरकार !
सिंहगढ किले का नियंत्रण राज्य पुरातत्व विभाग के पास है । उसके संवर्धन के लिए १ करोड ३० लाख की धनराशि का प्रावधान कर विभाग ने एक ठेकेदार को काम सौंपा; परंतु उसने काम न कर केवल उसे करने का नाटक किया । ‘डीसील्टिंग’ के संदर्भ में (तलछट निकालने के) प्रत्यक्ष स्थान पर उपयोग की गई पद्धतियों तथा देयकों में दी गई संख्या में अंतर था । व्यय का अनुमान लगाते समय पूर्वाभ्यास नहीं था । ठेकेदार को इस काम का अनुभव नहीं था । ‘टेंडर’ में अनियमितता थी । यह काम अकुशल कारीगरों ने किया था । इस अनुबंध में घास-झुरमुट निकालने का काम भी अंतर्भूत था; परंतु वास्तव में इनमें से कोई काम नहीं हुआ था । पानी की टंकी न होते हुए भी उसके अंदर की तलछटी निकालने का नाटक किया गया । हाथी टंकी से तलछटी निकालने के पैसे लिए गए; परंतु तलछटी निकाली ही नहीं गई । हिन्दू विधिज्ञ परिषद द्वारा इस बात का ध्यान दिलाने पर भी सरकार ने इस विषय में कुछ नहीं किया । इस प्रकरण में हिन्दुवनिष्ठ संगठनों ने आवाज उठाई; परंतु यह लडाई अभी भी जारी है ।
२. विजयदुर्ग की जर्जर स्थिति एवं भ्रष्टाचार
विजयदुर्ग केंद्रीय पुरातत्व विभाग के नियंत्रण में है । नौसेना के इतिहास में उसका बडा महत्त्व है । ब्रिटिशों के आक्रमणों को यहीं से निरस्त किया गया; परंतु आज इस गढ की स्थिति जर्जर हो चुकी है । क्या यहां भी भ्रष्टाचार हुआ है ?, इस पर संदेह है । इसके कुछ उदाहरण यहां दे रहा हूं ।
२ अ. विजयदुर्ग के लिए व्यय धनराशि लाखों में दिखाई गई; परंतु काम न होने से परिषद की ओर से परिवाद प्रविष्ट ! : गढ की देखभाल के लिए केंद्र सरकार प्रचुर राशि व्यय करती है । आर्थिक वर्ष २०१९-२०२० में ११.७६ लाख रुपए, वर्ष २०२१ में १०.६६ लाख रुपए अर्थात विजयदुर्ग के ‘एन्युअल रिपेयर एंड मेंटेनेंस वर्क’ पर प्रत्येक माह औसतन ७० से ९० सहस्र रुपए का इतना बडा व्यय किया जाता है; परंतु वास्तव में यह पैसा कहां जाता है ? क्योंकि घास एवं कचरा-झुरमुट तो बढते हैं तथा गंदगी होती है । गढ पर केंद्रीय पुरातत्व विभाग के अधिकार आते ही नहीं । ४० वर्ष पुराना निर्माण कार्य, जो आज के समय में भग्न स्थिति में है, ‘वह निर्माणकार्य ‘वहां कैसे आया ?’, ऐसा पूछा जाता है । (इसका अर्थ इतने वर्षाें में यह बात किसी को ज्ञात नहीं है ।) मुख्यमंत्री के साथ हुई सुकाणु समिति की बैठक में पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी उपस्थित थे । ‘शिवप्रेमी अथवा इतिहास प्रेमी कार्यकर्ताओं की सहायता लेकर गढ की स्वच्छता की जाए’, यह प्रस्ताव पारित हुआ । हिन्दू विधिज्ञ परिषद के पास इसकी प्रति उपलब्ध है । भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को यह बात बताई ही नहीं कि ‘स्वच्छता के लिए बडी धनराशि का व्यय किया जाता है ।’ एक ओर व्यय दिखाना; परंतु वास्तव में कुछ करना ही नहीं, तो यह पैसा जाता कहां है ? इस प्रकरण में परिषद ने परिवाद किया है । इस विषय में कार्यकर्ता सरकार से स्पष्टीकरण पूछेंगे, तभी जाकर वास्तव में काम होगा, अन्यथा पुरातत्व विभाग के अधिकारी वातानुकूलित कार्यालय में बैठकर वेतन सहित यह पैसा भी खाकर बैठ जाएंगे तथा शिवप्रेमी अपनी जेब से गढ-किलों की स्वच्छता करते रहेंगे । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए आंदोलन आवश्यक है ।
२ आ. स्मारक के लिए ४५ सहस्र रुपए व्यय करने पर भी काम अधूरा ! : गढ के आरंभ में दरारों में एक स्मारक निर्मित है । धूप एवं वर्षा के कारण इस पत्थर का मूल लाल रंग अब काला पड चुका है । स्मारक के लिए ४५ सहस्र रुपए व्यय करने पर भी काम अधूरा है ।
२ इ. विजयदुर्ग के बाहर के समुद्रीय क्षेत्र में पानी के नीचे दीवारें हैं । शत्रु के जहाज पानी में ही फंसकर दीवारों से टकराकर टूट जाएं, यह इसका उद्देश्य हो सकता है । गोवा के सरकारी विभागों, ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी’ द्वारा इन दीवारों के अस्तित्व का ब्योरा देने पर भी इस विषय में किसी ने कुछ नहीं किया । हमारी निरंतर समीक्षा के उपरांत राज्य पुरातत्व विभाग ने इन दीवारों को अपनी विकास योजना में समावेश कर लिया है ।
२ ई. डेक (गोदी) के आसपास ईसाई मछुआरों का निवास तथा परिषद की समीक्षा के उपरांत ऊपरी काम होना : विजयदुर्ग किला कान्होजी आंगरे के काल से एक महत्त्वपूर्ण स्थान होते हुए भी उसकी खाडी में ऐतिहासिक मराठाकालीन डेक (नौकाओं में सुधार करने का स्थान) की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया है । प्राकृतिक रूप से समुद्र का पानी अलग कर बनाया गया यह स्थान ऐतिहासिक है । यह स्थान पर्यटकों को भी आकर्षित करता है; परंतु आज के समय में वहां ईसाई मछुआरों का निवास है । क्या भविष्य में इस स्थान को सेंट लुइस अथवा एडमिरल मायकल के स्थान के रूप में दिखाए जाने पर ही हम जाग पाएंगे ? सरकार ने इस विषय में कुछ नहीं किया था । समुद्र के पानी के नीचे की दीवारों, साथ ही डेक के विषय में परिषद की समीक्षा के उपरांत राज्य पुरातत्व विभाग ने दोनों स्थान विकास परियोजना में लिए हैं; परंतु अभी यह लडाई समाप्त नहीं हुई है ।
२ उ. विजयदुर्ग बंदरगाह के स्थान पर विभिन्न देशों के हल मिले हैं; परंतु उसके शोध के विषय में उपेक्षा हुई है ।
२ ऊ. शिवकालीन मंदिर में दी गई अल्प धनराशि के विषय में परिषद की ओर से लडाई होना : सिंधुदुर्ग किले पर छत्रपति शिवाजी महाराज का एकमात्र शिवराजेश्वर मंदिर है । उसके लिए राज्य सरकार बहुत ही अल्प, केवल ३ सहस्र रुपए की धनराशि देती है । उसे बढाने की आवश्यकता है । हिन्दू विधिज्ञ परिषद को यह लडाई भी लडनी पड रही है ।
२ ए. सरकार के विलंब के कारण अतिक्रमणकारियों को मिली खुली छूट ! : विशाळगढ पर किया गया अतिक्रमण तो हिन्दुत्वनिष्ठों के हृदय पर किया गया आघात ही है । सरकार के सामने इस अतिक्रमण के विषय में कानूनी जानकारी रखकर सरकार को कार्यवाही करने के लिए बाध्य करने में परिषद के अधिवक्ताओं का अमूल्य योगदान था; परंतु अतिक्रमण करनेवालों ने उच्च न्यायालय जाकर अतिक्रमण तोडने की सरकारी कार्यवाही पर रोक लगवाई । सरकार की विलंब की नीति अतिक्रमण करनेवालों के कैसे काम आती है, यह इसका दुर्भाग्यजनक उदाहरण है । इस किले पर अनेक शिवकालीन वास्तुएं जीर्ण स्थिति में हैं । वहां की दरगाह के आसपास अच्छी सडक बनाने के लिए सरकार १० लाख रुपए का व्यय करती है; परंतु वीर बाजीप्रभु देशपांडे की समाधि के ऊपर छत नहीं बना सकती । इसके लिए हमें केवल सडक की लडाई ही नहीं, अपितु दबावतंत्र का भी उपयोग करना पडेगा । पन्हाळा किले पर भी अतिक्रमण किया गया है, सूचना के अधिकार के अंतर्गत हमने उसकी भी जानकारी प्राप्त की है ।
नाशिक का दायित्वशून्य जिलाधिकारी कार्यालय !
नाशिक जिले के मालेगांव किले पर भी बडे स्तर पर अतिक्रमण किए गए हैं । इस विषय में बार-बार पत्राचार करने पर भी जिलाधिकारी कार्यालय ने इस पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की है ।
पुरातत्व विभाग के पास हिराकोट गढ की जानकारी नहीं !
रामनाथ (अलिबाग) का हिराकोट गढ कारागार के रूप में उपयोग किया जाता है । उसका यह उपयोग कब से किया जा रहा है, राज्य पुरातत्व विभाग के पास वर्ष २०१८ तक इसकी कोई जानकारी नहीं थी तथा अब भी उन्हें कुछ जानकारी मिली होगी, ऐसा नहीं लगता ।
सूचना के अधिकार से मिली जानकारी में
रायगढ किले पर किए गए अतिक्रमणों की पुरातत्व विभाग को जानकारी न होने का स्पष्टीकरण !
रायगढ किले पर सरकार एवं पर्यटन विभाग ने ‘रेस्ट हाउसेस’ (विश्रामगृह) का निर्माण किया था; परंतु केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने वर्ष २०१८ में कहा, ‘वो कब से हैं, हमारे पास इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है’ । ‘रायगढ किले का विस्तार १८५ एकड में है तथा उसके लगभग १.७५ एकड क्षेत्र में अतिक्रमण किया गया है’, उन्होंने ऐसा उत्तर
दिया । कोल्हापुर में आज के समय के छत्रपति संभाजीराजे की अध्यक्षता में रायगढ विकास समिति कार्यरत है । इस समिति को इसका अध्ययन कर आगे की दिशा सुनिश्चित करना आवश्यक है ।
– अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद