स्वयं की इच्छा से विवाह करना यह बात आधुनिक नहीं, यह तो रामायण और महाभारत के समय से है !

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का बयान !

चंडीगड – ‘स्वयंवर’ अर्थात ‘स्वयं की इच्छा से विवाह करना’ यह कोई आधुनिक बात नहीं । इसकी जडें प्राचीन इतिहास में खोजी जा सकती हैं । इसमें रामायण, महाभारत जैसे प्रवित्र ग्रंथों का समावेश है । हमारे संविधान ने धारा २१ के अंतर्गत मानवाधिकार को मूलभूत स्वतंत्रता के रूप में लागू किया है, ऐसा मत पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक मुकदमे की सुनवाई के समय रखा । इस मुकदमे में एक युवक पर उसकी प्रेमिका को भगाकर उससे विवाह करने का आरोप लगाया गया है । न्यायालय ने उपर्युक्त मत रखते हुए इस आरोप को निरस्त कर दिया ।

उच्च न्यायालय ने कहा कि, भारतीय संस्कृति में विवाह एक समझौता नहीं, पवित्र बंधन है । विवाह केवल विपरीत लिंगों का शारीरिक मिलन नहीं है, बल्कि समाज की एक महत्वपूर्ण और पवित्र संस्था है । यहां २ परिवार एक होते हैं । विवाह बिना जन्म लिए बच्चे को विवाहितों को होने वाले बच्चे के अनुसार मान्यता नहीं मिलती है । इससे विवाह का महत्व अधिक ध्यान में आता है । इस समय न्यायालय ने स्पष्ट करते हुए कहा कि, कानून का प्रयोग किसी अपराधी को दंड देने के लिए है; लेकिन किसी प्रकरण में किसी व्यक्ति की कोई बात अन्यों को अच्छी नहीं लगी; इसलिए उसे दंड नहीं दिया जा सकता ।