विशेष स्तंभ
डोंबिवली के डॉ. सच्चिदानंद सुरेश शेवडे भारताचार्य पू. (प्रा.) सु.ग. शेवडेजी (आयु ८९ वर्ष) के (वर्तमान समय में रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में निवास) बडे पुत्र हैं । डॉ. सच्चिदानंद शेवडे राष्ट्र एवं धर्म के विषय पर आधारित विभिन्न पुस्तकें लिखने के साथ ही वे विभिन्न विषयों पर आधारित परिचर्चाओं में भाग लेते हैं । वर्तमान में उनके द्वारा किया जा रहा कार्य, उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें तथा उनकी कार्यप्रेरणा के विषय में आज हम जान लेनेवाले हैं ।
१. शिक्षा : एम्.फील. पीएच्.डी
२. जन्म : ९ नवंबर १९६१ (बलीप्रतिपदा)
३. आध्यात्मिक गुरु : ब्रह्मीभूत प.पू. स्वामी वरदानंद भारती (पूर्व के प्रा. अनंत दा. आठवले)
४. विशेषता : व्याख्याता, प्रवचनकार, निरुपणकार एवं साहित्यकार जैसी विभिन्न गुणविशेषताएं प्राप्त दुर्लभ संगम
५. आज तक दिए गए व्याख्यान : रामायण, भागवत कथा, भगवान श्रीकृष्ण, मनोबोध, स्वामी विवेकानंद आदि अनेक विषयों पर प्रवचन; जबकि क्रांतिकारियों, छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्धनीति, पानिपत का रणसंग्राम, कश्मीरनामा आदि विषयों पर व्याख्यान दिए ।
इन विषयों का प्रस्तुतिकरण करते समय उसे चित्रदर्शी शैली में किए जाने से श्रोताओं के सामने संबंधित व्यक्तिरेखा जीवनचरित्र अचूकता से रखने में सफलता मिली ।
छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज की स्थापना हेतु उनके सैनिकों एवं सेनापतियों द्वारा किया गया त्याग सर्वोच्च है । उसी प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक धर्म-राष्ट्र क की रक्षा हेतु ‘सैनिक’के रूप में कार्य कर रहे हैं । उनकी तथा उनके हिन्दू धर्मरक्षा के संघर्ष की जानकारी करानेवाले ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’, इस स्तंभ से अन्यों को भी प्रेरणा मिलेगी ! – संपादक
व्याख्यान अथवा प्रवचन लेते समय की स्थिति
व्याख्यान तो एक प्रखर आंधी ही होती है ! कथा के माध्यम से विषय को विस्तारित करते हुए उसका मूल सारगर्भ स्पष्ट करने का अनोखा कौशल — स्पष्ट शब्दोच्चारणों से, बोलने की विशिष्ट शढली से तथा विचारों के स्पष्टतापूर्ण प्रस्तुतिकरण से व्याख्यान को एक अलग ही ऊंचाई पर ले जाने का कौशल ! उसके कारण सहस्रों श्रोता अक्षरशः स्तब्ध रह जाते हैं तथा विषय में रत हो जाते हैं । मानो श्रोतागण शब्दों के उछालनेवाले झरने में सचैल स्नान कर निकलते हैं ।
परंतु प्रवचन लेते समय अत्यंत शांतिपूर्वक संतसाहित्य का सारगर्भ निकालते हुए दिखाई देते हैं । संतों के जीवनचरित्र का, उनके वचनों का अथवा उनकी सीख का निरूपण अत्यंत रसीली वाणी में होता है । जिस समय किसी विषय का अध्ययन उस पर आधारित अनेक ग्रंथों का गहन वाचन कर किया जाता है तथा निरीक्षण-परीक्षण कर उसका सूक्ष्मता से वैचारिकीकरण किया जाता है, तब उस पर प्रभुत्व प्राप्त होता है तथा उसे यदि वक्तृत्व का संपुट मिला; तो व्याख्यान अथवा प्रवचन तो बहारदार होगा ही ! अनेक सांगितिक कार्यक्रमों में बहारदार एवं अर्थपूर्ण निरूपण !
व्याख्यान देने का अनोखा कार्य

आजतक विगत ३८ वर्षाें में भारत तथा विदेशों में मिलकर कुल ५ सहस्र से अधिक कार्यक्रम संपन्न हुए तथा ५० पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । जहाज, विमान एवं बस में भी व्याख्यान देने का अनोखा कार्य किया । सेल्यूलर कारागृह में व्याख्यान देनेवाले पहले ही वक्ता… सेल्युलर कारागृह में ‘सावरकर स्मृतिदिवस’ के उपलक्ष्य में विगत निरंतर १२ वर्ष निरंतर व्याख्यान दिया । यूरोप के सर्वाेच्च शिखर स्वित्जर्लेंड के माऊंट टीटलीस पर बर्फ में खडे रहकर वहां उपस्थित लोगों को ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ सुनाया । इटली के तैरनेवाले शहर वेनिस के सेंट मार्क स्क्वेयर से ‘स्वामी विवेकानंद’ बताया । दुबई, लंदन, सिडनी, मेलबर्न , कोलंबो, नुवारा एलिया आदि स्थानों पर कार्यक्रम संपन्न हुए ।
‘एबीपी माझा’, ‘जय महाराष्ट्र’, ‘मी मराठी’, ‘जी २४ तास’, ‘साम’, ‘सुदर्शन ’ आदि समाचारवाहिनियों पर विभिन्न विषयों पर आयोजित परिचर्चाओं में भाग लिया ।
साहित्य के सभी क्षेत्रों में किया हुआ लेखन
अ. महानाट्य : क्रांतिचक्र (हिन्दी)
आ. नाटक : चाणक्य-चंद्रगुप्त (सहलेखक : जनार्दन ओक)
इ. उपन्यास : रक्तलांच्छन एवं अघोरवाडा
ई. ललित जीवनचरित्र : पुनरुत्थान (आद्यशंकराचार्य), नरेंद्र ते विवेकानंद, वासुदेव बळवंत, चापेकर पर्व, क्रांतिकारी राजगुरु (मराठी एवं हिन्दी), ज्ञानेश्वर कन्या गुलाबराव महाराज एवं भगवान परशुराम
उ. बालसाहित्य : गुरु एवं शिष्य (भाग १ एवं २)
ऊ. बालसाहित्य : कथाबोध, कथाकुसुम, वासुदेव बळवंत फडके, खुदीराम बोस, मदनलाल धिंग्रा, सरदार उधमसिंग, भगतसिंग एवं सफलता का रहस्य
ए. ऐतिहासिक : कश्मीरनामा, वंद्य वंदेमातरम्, …. एवं सावरकर, शोध श्रीलंकेचा
ऐ. संकीर्ण : मुक्तवेध, चुनिंदा मुक्तवेध, पढिए और शांत रहिए, राष्ट्रजागरण, अब तो जागिए, आंखें खोलिए, अब अपनाएंगे सुपंथ, प्रहार, मुक्तवेध, सेक्यूलर्स नहीं फेक्यूलर्स, सत्य बताईए न ..!, मार्ग हमारी संस्कृति के
ओ. धार्मिक : श्री चिंतामणी विजय कथासार, बाप्पा मोरया, मनाचिये द्वारी
औ. भावानुवाद : अद्भुत शक्ति का खजाना, भारतीय यात्री, मिशन वैष्णोदेवी, इस्लामी आघात पर हिन्दुओं का प्रत्याघात, वामपंथी विषवल्ली
सहलेखन : श्री. दुर्गेश परुळकर के साथ ‘छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्धनीति’, ‘‘पानिपत का रणसंग्राम’, ‘गोवा मुक्तिसंग्राम’, ‘सावरकर-ज्ञात एवं अज्ञात’; वैद्य परीक्षित शेवडे के साथ ‘जमात ए पुरोगामी’, ‘राममंदिर ही क्यों ?’, ‘पाकिस्तान-विनाश से विनाश की ओरे’; जबकि भारताचार्य पू. (प्रा.) सु.ग.शेवडेजी के साथ ‘महाभारत- व्यासजी का तथा चोप्रा का’ इन पुस्तकों का लेखन किया ।
क. ध्वनिचित्रचक्रिका (सीडी) : समरगाथा, विजयगाथा
डॉ. शेवडे को प्राप्त पुरस्कार

अ. ‘वंद्य वंदेमातरम्’ पुस्तक को महाराष्ट्र साहित्य परिषद का (‘म.सा.प.’का) इतिहास से संबंधित ग्रंथलेखन का पुरस्कार
आ. ‘क्रांतिकारी राजगुरु’ पुस्तक का वंदना प्रकाशन का जीवनचरित्र ग्रंथ का पुरस्कार
इ. ‘सेक्यूलर्स नहीं फेक्यूलर्स फेक्युलर्स’ पुस्तक को उत्कृष्ट स्तंभलेखन का ‘म.सा.प.’की ओर से पुरस्कार
ई. पु.भा. भावे स्मृति समिति की ओर से दिए जानेवाले ‘पु.भा. भावे वक्तृत्व पुरस्कार’ से सम्मानित, ‘रत्नागिरी कीर्तन कुल’की ओर से सम्मानपत्र प्रदान, ‘कल्याण-डोंबिवली महापौर पुरस्कार’ प्राप्त, ‘लोकमत’ समूह ने वर्ष २०१३ में ‘आइकॉन ऑफ ठाणे’ के रून में सम्मानित किया । ‘उत्तुंग परिवार, विलेपार्ले ’की ओर से वीर सावरकर राष्ट्रविचार प्रसारक पुरस्कार’ प्राप्त; जुलाई २०१६ में ‘व्यास क्रिएशंस, ठाणे’की ओर से ‘व्यासरत्न पुरस्कार’से सम्मानित; नवंबर २०१६ में ‘मुंबई साहित्य संघ’की ओर से ‘संत एवं आध्यात्मिक लेखन के लिए पुरस्कार’ से सम्मानित, वर्ष २०१८ में ‘तिलकनगर शिक्षा संस्थान, डोंबिवली’की ओर से ‘सावरकर पुरस्कार’से सम्मानित; वर्ष २०१९ में श्रद्धेय ‘अशोकजी सिंघल स्मृति राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित; ‘आम्ही सारे ब्राह्मण’ पाक्षिक की ओर से ‘ब्राह्मणभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित
कुछ पुस्तकों का विशेषतापूर्ण लोकार्पण
अ. ‘…आणि सावरकर आणि प्रहार’ पुस्तक का लोकार्पण अंदमान के ‘सेल्युलर कारागृह’ में किया ।
आ. ‘पढिए और शांत रहिए’ पुस्तक का लोकार्पण ‘मॉरिशस’, जबकि ‘सावरकर-ज्ञात एवं अज्ञात’का लोकार्पण लंदन में आयोजित ‘तृतीय सावरकर विश्व सम्मेलन’ में किया । ‘सत्य बताईए न — ! का लोकार्पण सिडनी में ‘चतुर्थ सावरकर विश्व सम्मेलन’ में हुआ ।
हिन्दूविरोधी वातावरण में भी समाज में जागरण करने हेतु मिली प्रेरणा भारताचार्य पू. प्रा. सु.ग. शेवडेजी

१. लेखन एवं व्याख्यान के क्षेत्र की ओर मुडने के लिए प्राप्त प्रेरणा
मेरे पिता पू. भागवताचार्य पू. (प्रा.) सुरेश शेवडेजी भी इसी क्षेत्र में कार्यरत हैं । उसके कारण मैं बचपन से उनके कार्यक्रम सुनता आया । हमारे घर में धार्मिक, आध्यात्मिक जैसे विभिन्न विषयों की सहस्रों पुस्तकें थीं । उसके कारण उनका अध्ययन करने के साथ ही अतिरिक्त वाचन भी बहुत बडी मात्रा में हुआ तथा उससे विचारों की नींव सशक्त हुई । महाविद्यालयीन शिक्षा के समय में प.पू. स्वामी वरदानंद भारतीजी की पुस्तकें पढी । उससे मन पर अपना मत दृढतापूर्ण पद्धति से रखने का संस्कार मिला ।
आज से ४४ वर्ष पूर्व क्रांतिकारियों के विषय में बोलना चौंकानेवाला था । उसमें भी वीर सावरकर के विषय में बोलना, जहां बहुत दूर की बात थी; परंतु उनके विषय में सुननेवालों को भी भय प्रतीत होता था, समाज में इस प्रकार का वातावरण उस समय था । कुछ लोग मुझे कहते थे, ‘वीर सावरकर के विषय में बोलने के कारण सरकार आपको कारागृह में डाल देगी ।’ लोकतंत्र होने से सभी को आचार-विचारों की स्वतंत्रता थी, उसके कारण मैंने इसकी चिंता नहीं की; परंतु कांग्रेस ने लोगों के मन में निश्चित ही एक प्रकार का आतंक उत्पन्न किया था । विद्यालय-महाविद्यालयों में ‘भारत को केवल कांग्रेस के कारण ही स्वतंत्रता मिली’, यह सिखाया जाता था । उस विद्यालयीन जीवन में मैंने क्रांतिकारियों के जीवनचरित्र पढे । तब ‘ये बातें लोगों तक पहुंचनी चाहिए’, ऐसा मुझे लगा । इस विचार से मैंने समाज का उद्बोधन आरंभ किया, जो आज तक जारी है ।
२. प्रवाह के विरुद्ध जाकर समाज का उद्बोधन
४०-५० वर्ष पूर्व आज के जैसे सामाजिक माध्यम नहीं थे । उस समय समाचारपत्र तथा मासिक थे । उनसे कुछ विशिष्ट लोगों को ही प्रसिद्धि दी जाती थी । जो लोग निरंतर लिखते आए, सर्वत्र उनकी ही प्रतिमा ही चमकती रही । समाज इन बडे लोगों को बुद्धिजीवी मानता था । तत्कालिन सरकारों ने उन्हें मिठाई की भांति विभिन्न पुरस्कार देकर उनका महिमामंडन किया । देवी-देवताओं का उपहास करनेवाले व्यक्ति को बडा माना गया । उस समय मैंने प्रवाह के विरुद्ध जाकर समाज का उद्बोधन किया ।
– डॉ. सच्चिदानंद शेवडे
हिन्दुत्व का कार्य बढाने की दृष्टि से आवश्यक प्रयासवर्तमान समय में ‘राजनीतिक हिन्दुत्व’ बोलनेवाले बढ रहे हैं । सत्ता का हिन्दुत्व बढ रहा है । उसके कारण कहीं न कहीं नवहिन्दुत्वनिष्ठ एकत्रित होने लगे हैं । हिन्दुत्व से उनका कोई लेना-देना नहीं है । हम हिन्दुत्वनिष्ठ होते जा रहे हैं, इसका क्या अर्थ है ? आज भी जाति पर आधारित लोगों को जाना जाता है तथा उनके प्रति पूर्वग्रह रखा जाता है । इसे ‘हिन्दुत्ववाद’ नहीं कहते । ऐसी स्थिति में वर्तमान बडे हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को समाज में अभ्यासवर्गाें के आयोजन करने चाहिएं । उससे कार्यकर्ता तैयार होंगे तथा वे समाज में जाकर जागरण करेंगे । इन अभ्यासवर्गाें को ‘ऑनलाइन’ लिया जा सकता है अथवा छोटे-छोटे रिल्स ‘रिल्स’ (छोटे-छोटे वीडियोज) बनाकर सामाजिक माध्यमों पर उनका प्रसारण किया जा सकता है । – डॉ. सच्चिदानंद शेवडे |