भारत-चीन सैनिकी संघर्ष एवं भारतीय सैनिकों का शौर्य

चीनी सैनिकों की घुसपैठ !

प्रतिकात्मक छायाचित्र

१. चीन का उल्टा आक्रोश !

इस संघर्ष में बडी संख्या में चीनी सैनिक घायल हुए । इस संपूर्ण प्रकरण की जानकारी विलंब से दी गई । इसका कारण यह है कि निश्चित रूप से क्या घटित हुआ है, यह तो निश्चित था; परंतु पहले हमारे कोई सैनिक चीन के हाथ लगे तो नहीं न ?’, इसकी आश्वस्तता की जाती है तथा उसके उपरांत जानकारी दी जाती है । इस संघर्ष में हमारे हाथ लगे युद्धबंदी अर्थात चीनी सैनिकों को छोड दिया गया । उसके उपरांत भारत के रक्षामंत्री ने जानकारी दी कि हमने चीनी सैनिकों को रोका’, वह बिल्कुल ऊपर-ऊपर की जानकारी थी । इसके विपरीत चीन का समाचार-पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ तथा चीन के प्रवक्ता ने कुछ भिन्न ही जानकारी देते हुए कहा, ‘भारतीय सैनिक चीन की सीमा में घुसे थे तथा हमने उन्हें भगा दिया । इसमें अनेक चीनी सैनिक घायल हुए हैं’, ऐसा आक्रोश था ।

(सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन

‘९ दिसंबर को भारत एवं चीन के सैनिकों के मध्य संघर्ष हुआ । ३०० से अधिक संख्यावाले चीनी सैनिक रात ३ बजे भारतीय सीमा में घुसपैठ करने का प्रयास कर रहे थे । सामाजिक माध्यमों में आपको इसके संदर्भ में अनेक वीडियोज देखने को मिले होंगे । रात के समय तवांग के (अरुणाचल प्रदेश) यांगत्से क्षेत्र में ३०० से अधिक चीनी सैनिक आए थे; परंतु उस समय पहाड पर भारतीय सैनिक तैयार थे । उन्होंने तुरंत ही उनका प्रतिकार करना आरंभ कर चीनी सैनिकों को पीटा । चीनी सैनिक इस प्रतिकार के प्रति अवगत होने से उन्होंने और अधिक सैनिक भेजे । हमारे पास भी और सैनिक थे । उसके उपरांत यह संघर्ष लंबे समय तक चला । इस संघर्ष में सेना के पारंपरिक शस्त्र नहीं; अपितु बांस तथा लाठी जैसे शस्त्रों का उपयोग किया गया । चीनी सैनिकों ने पत्थरबाजी करने का प्रयास किया । लगभग २ वर्षाें तक भारत-चीन की यह सीमा शांत थी । गलवान की घटना के उपरांत पुनः एक बार इस सीमा को अशांत बनाने का प्रयास किया गया । इस घुसपैठ के लिए ४०० चीनी सैनिक आए थे, इसका अर्थ यह है कि यह सब चीनी अधिकारियों तथा चीन सरकार की अनुमति से ही हुआ । उन्हें ऐसा लगा कि रात के समय भारतीय सैनिक सतर्क नहीं होंगे । दिसंबर माह में इस क्षेत्र में बर्फ गिरना आरंभ हो जाता है । प्रसारित वीडियो में हमें बर्फ देखने को मिलता है । बर्फ के प्रदेश में रात के समय शून्य से भी नीचे तापमान होने के कारण भारतीय सैनिक सोए हुए होंगे, यह विचार कर चीनी सैनिक अपनी ‘पिकेट’ (शत्रु की गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए शत्रु के सर्वाधिक निकट स्थित अपने सैनिकों का समूह) को लाने का प्रयास कर रहे थे । उस समय हमारे सैनिकों ने चीनी सैनिकों को पीटा । हम ‘रडार’ की सहायता से चीनी सैनिकों पर ध्यान रखे हुए थे । हमारे ‘ड्रोन’ आगे बढ रहे थे । उसके कारण चीनी सैनिकों के आगे बढने पर हम तैयार थे । उसके उपरांत चीनी सैनिक भाग गए तथा उन्हें यह भी भय था कि वहीं से १-२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘चीनी कैंप’ पर भारतीय सैनिक आक्रमण करेंगे; इसलिए उन्होंने कैंप से गोलीबारी भी की ।

२. चीन की अराजक-सदृश्य स्थिति को ढकने का चीन का दयनीय प्रयास !

अ. चीन में ‘जीरो कोविड’ अथवा ‘जीरो कोरोना’ अभियान के कारण अनेक स्थानों पर यातायात बंदी लागू है, उसके कारण चीन की जनता सरकार के विरुद्ध है । वहां सरकार के विरुद्ध बडे स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं । चीनी सरकार पिछले अनेक दिनों से इन विरोध प्रदर्शनों को रोकने का प्रयास कर रही है; परंतु ये प्रदर्शन संपूर्ण रूप से रुक नहीं रहे हैं । इसके लिए चीन बडे स्तर पर प्रौद्योगिकी, ‘फेशियल रिकॉग्निशन (आधुनिक यंत्र के द्वारा चेहरे की पहचान करना)’, ‘सोनिक गन’ का उपयोग कर रहा है । इसके अतिरिक्त चीनी सैनिकों ने वहां के नागरिकों के चल-दूरभाष नियंत्रण में ले लिए हैं । सामाजिक माध्यमों पर भी चीन की दृष्टि है, इसमें किसी ने सरकार विरोधी लेख पोस्ट किया, तो उसे तुरंत बंदी बनाया जा रहा है । इतना दमनतंत्र अपनाने पर भी चीन में चल रही हिंसा रुकी नहीं है; इसलिए उन्होंने यह कृत्य किया होगा ।

आ. निर्यात पर आधारित देश होने से चीन की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है । इतना ही नहीं, उसके अनेक प्रौद्योगिकी आधारित प्रतिष्ठान एवं अचल संपत्ति से संबंधित आय का क्षेत्र बंद हो गया है । वहां बेरोजगारी भी बढ गई है । इन सभी समस्याओं से चीन की जनता का ध्यान भारत की ओर मुडे; इस घुसपैठ का दूसरा उद्देश्य यह भी हो सकता है ।

३. भारत-चीन संबंध शून्य का पहाडा है !

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आजकल बडे स्तर पर अनेक समस्याओं का सामना करना पड रहा है । कुछ अधिकारी तथा तत्त्ववेत्ता भारत-चीन संबंध सुधारने के भ्रम में रहते हैं; परंतु भारत-चीन संबंध शून्य का पहाडा है । ये संबंध कभी नहीं सुधर सकते । दिवंगत जनरल बिपिन रावत ने चीन की कूटनीति को ‘सलमी स्लाइसिंग (salami slicing)’ नाम दिया था । इसका अर्थ है थोडा-थोडा आगे बढते रहना; क्योंकि भारतीय सैनिक कभी संपूर्ण सीमा पर तैनात नहीं होते तथा वे वहां तैनात हो ही नहीं सकते । जहां सैनिक नहीं होते हैं, वहां चीनी सैनिक घुसपैठ कर अंदर आने का प्रयास करते हैं । विगत कुछ वर्षाें से हम चीन की सीमा के पास बडे स्तर पर सडकें बना रहे हैं । भारत-चीन सीमा पर चीन की सडकें २० वर्ष पूर्व ही बन चुकी हैं । इन सडकों से चीनी सैनिक कभी भी हमारे यहां आ सकते हैं; परंतु हमारी सडकें सीमारेखा से २०-३० कि.मी. पीछे थीं । पिछले कुछ वर्षाें से सीमारेखा के पास सडकें बनाने की हमारी गति बढी है; परंतु अनुमान है कि उनके पूर्ण होने में अभी २-३ वर्ष लगेंगे । कुछ दिन पूर्व ही भारत सरकार ने यह घोषणा की है कि अरुणाचल प्रदेश तथा अन्य भागों में ११२ सहस्र करोड रुपए की नई सडकें तथा रेलमार्ग बनाए जा रहे हैं । सडकें होंगी, तो सैनिक वाहनों से सीमा तक पहुंचकर चीन की घुसपैठ का उत्तर दे सकेंगे । भारतीय सेना द्वारा प्रत्युत्तर करने की अवधि अल्प होती जा रही है, यह बहुत ही अच्छी बात है । अब हमारी सीमा पर सैनिकों की संख्या भी बढ गई है तथा अब हमारी क्षमता उससे बहुत बढ गई है ।

४. ‘मेक इन इंडिया (देशांतर्गत उत्पादन)’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारत’, इन उपक्रमों की गति बढाकर सैन्य अर्थव्यवस्था सशक्त करनी होगी !

चीन हमारा शत्रु है और अगले १०० वर्ष तक वह शत्रु ही रहेगा । चीन को लगता है कि उसकी अर्थव्यवस्था सशक्त होने से भारतीय सैनिक घबराकर भाग जाएंगे तथा चीन को युद्ध किए बिना ही यह प्रदेश मिल जाएगा, जो संभव नहीं हो पाया । हमारे कुछ तथाकथित विशेषज्ञों तथा कुछ राजनीतिक दलों ने यह शोर मचाना आरंभ किया कि ऐसी घटनाओं को बताया नहीं जाता । यहां यह ध्यान में लेना होगा कि कुछ बातें बताई जा सकती हैं; परंतु सभी बातें नहीं ! देश की सुरक्षा के लिए किया जानेवाला आर्थिक प्रावधान बढाया जाना चाहिए । फरवरी २०२३ में देश का बजट घोषित किया जाएगा । अगले १० वर्षाें में रक्षा हेतु प्रतिवर्ष ३५ से ४० प्रतिशत बजट बढाना होगा । राजनीतिक दलों को सडकें बनाने के लिए वहां के स्थानीय लोगों को अपनी भूमि देने के लिए तैयार करना होगा । तथाकथित पर्यावरणवादी सडक निर्माण हेतु वृक्ष काटने का विरोध करते हैं । उन पर भी राजनीतिक दलों की सतर्क दृष्टि होनी चाहिए । सेना का आधुनिकीकरण करना होगा । ३ वर्ष पूर्व भारतीय सेना के तत्कालीन ‘वॉईस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (उपसेना प्रमुख)’ ने बताया था कि भारतीय सेना के ८०% शस्त्र पुराने हो चुके हैं । ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारत’ उपक्रमों के अंतर्गत निश्चित ही भारत में शस्त्र बनाना आरंभ हो चुका है । वायुदल के पास ४४ क्वाड्रंट्स होनी चाहिए, जो आज के समय में २९ भी नहीं हैं, अपितु उससे आधे हैं । नौसेना की भी ऐसी ही स्थिति है । ‘भारत फोर्ज’ प्रतिष्ठान अति आधुनिक तोपें बना रहा है; परंतु ये तोपें सेना को नहीं दी जा रही; क्योंकि भारतीय सेना के पास इन तोपों के लिए आवश्यक धन नहीं है । इसीलिए रक्षा बजट बढाना एकमात्र विकल्प है ।

५. चीन की भारत विरोधी गतिविधियां रोकने के लिए भारतीयों में एकजुटता आवश्यक !

कुछ दिन पूर्व ही चीन ने भारत की ‘ऑल इंडिया मेडिकल साइंसेस’ संस्था पर साइबर आक्रमण किया था, जिससे इस संस्था का कामकाज १५ दिनों तक ठप्प रहा था । इसमें लाखों रुपए की संपत्ति तथा अनेक लोगों को हानि पहुंची । चीन की ऐसी भारत विरोधी गतिविधियों का उत्तर देने के लिए क्या हम भी ऐसा साइबर आक्रमण कर सकते हैं ?, माओवादियों को चीन से मिलनेवाली आर्थिक सहायता को रोक सकते हैं ?, क्या पाकिस्तान से ड्रोन द्वारा भेजे जानेवाले मादक पदार्थाें के कारण होनेवाली हानि को रोकने का प्रयास किया जा सकता है ?, क्या बांग्लादेश से होनेवाली घुसपैठ को चीन से मिलनेवाली सहायता रोकी जा सकती है ?; ऐसे अनेक ‘मल्टी डोमेन’, ‘हाइब्रिड (विरोधी देशों में सामाजिक विद्वेष बढाना)’, ‘ग्रे जोन (न युद्ध न ही शांति)’ युद्ध रोकने का प्रयास करना पडेगा । कुछ आतंकियों को ‘वैश्विक आतंकी’ घोषित करना था; परंतु चीन ने हमें ऐसा करने नहीं दिया । पाकिस्तान एवं चीन का गठबंधन तोडना पडेगा । इसके लिए सभी भारतीयों एवं राजनीतिक दलों को एकत्र आने की आवश्यकता है । भारतीय नागरिकों को इन विविधांगी युद्धों का सामना करने की तैयारी रखनी पडेगी ! ऐसा हुआ, तो भारतीय सेना युद्ध में निश्चित ही देश की रक्षा करेगी !’

– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे