‘हिन्दू समाज में शिशु का जन्म होने पर ज्योतिष से शिशु की जन्मपत्रिका बनवा ली जाती है । अनेक लोगों को उत्सुकता होगी कि इस पत्रिका में क्या जानकारी होती है । इस लेख द्वारा ‘जन्मपत्रिका क्या है और पत्रिका में कौन-सी जानकारी अंतर्भूत होती है’, इस विषय में समझ लेंगे ।
१. जन्मपत्रिका क्या है ?
जन्मपत्रिका अर्थात व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में विद्यमान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के विषय में जानकारी देनेवाली पुस्तिका । जिस प्रकार वैद्यकीय ब्योरे में व्यक्ति के शारीरिक घटकों के विषय में जानकारी दी होती है, उसी प्रकार व्यक्ति की जन्मपत्रिका में उसकी जन्मकालीन खगोलीय घटनाओं के विषय में जानकारी दी होती है । जन्मपत्रिका की जानकारी का उपयोग कर ज्योतिषी भविष्य दिग्दर्शन करते हैं । जन्मपत्रिका की कुछ जानकारी स्वयं उस व्यक्ति के लिए भी उपयुक्त होती है । उसका विवरण आगे दिया है ।
१ अ. सामान्य जानकारी : पत्रिका के आरंभ में संबंधित व्यक्ति के नाम, जन्म दिनांक, जन्म का समय एवं जन्म स्थल लिखा होता है ।
१ आ. जन्मदिन का पंचांग : व्यक्ति के जन्म के समय की ‘तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण’ ये ५ अंग पत्रिका में लिखे जाते हैं ।
१ इ. कालमापन के घटक : व्यक्ति के जन्म के समय संवत्सर (वर्ष), अयन (उत्तरायण-दक्षिणायन), ऋतु (वसंत, ग्रीष्म इत्यादि), मास (महिना) एवं पक्ष की जानकारी पत्रिका में होती है ।
१ ई. जन्मनक्षत्र की विशेषताएं : जन्म के समय चंद्र जिस नक्षत्र में होगा, वह व्यक्ति का ‘जन्मनक्षत्र’ होता है । सभी ग्रहों की तुलना में चंद्र पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने से उसकी सूक्ष्म ऊर्जा का (आपतत्त्व का) एवं स्थूल ऊर्जा का (गुरुत्वाकर्षण का), ऐसे दोनों स्तरों की ऊर्जा का पृथ्वी पर प्रभाव पडता है । इससे ज्योतिषशास्त्र में चंद्रनक्षत्र को (जन्मनक्षत्र को) अधिक महत्त्व दिया है । जन्मनक्षत्र से संबंधित देवता, दानवस्तु, आराध्यवृक्ष, वर्णाक्षर आदि की जानकारी पत्रिका में दी हुई होती है । उनका उपयोग विविध प्रसंगों में होता है ।
१ उ. फलित : कुछ पत्रिकाओं में छपा हुआ फलित (भविष्य) दिया होता है । वह फलित संगणकीय प्रणाली द्वारा (‘सॉफ्टवेयर’ द्वारा) बना हुआ होने से उसमें तथ्य अत्यल्प होता है; परंतु जिस पत्रिका में ज्योतिष ने स्वयं अध्ययन कर कुंडली का फलित लिखा होगा, उस फलित का उपयोग व्यक्ति के जीवन में मार्गक्रमण करते समय होता है ।
२. कुंडली क्या है ?
कुंडली पत्रिका का एक भाग है । कुंडली अर्थात व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में विद्यमान ग्रहों का आकृतिबद्ध मानचित्र । कुंडली के १२ स्थानों में ग्रह एवं राशि दर्शाई होती हैं । कुंडली से ‘व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में कौनसा ग्रह किस दिशा में था ? वह किस राशि में था ? वे ग्रह एक-दूसरे से कितने अंश दूर थे ?’, आदि जानकारी तुरंत समझ में आती है । पत्रिका में लग्नकुंडली, राशिकुंडली, वर्गकुंडली इत्यादि विविध प्रकार की कुंडलियां दी होती हैं । उनका उपयोग ज्योतिषी भविष्य का दिग्दर्शन करते हुए विविध कारणों के लिए करते हैं ।
३. बालक का जन्म होने के उपरांत कितने दिनों में जन्मपत्रिका बनवा लें ?
बालक का जन्म होने के उपरांत तुरंत ही अर्थात २-३ दिनों में ही जन्मपत्रिका बनवा लें; क्योंकि जन्मपत्रिका बनाते समय ज्योतिषी देखते हैं कि ‘बालक का जन्म किस योग पर हुआ ।’ कुछ अशुभ तिथि, नक्षत्र एवं योगों पर जन्म होने पर शिशु को उसका कष्ट न हो, इसलिए शास्त्र ने जननशांति करने के लिए कहा है । यह जननशांति जन्म के बारहवें दिन की जाती है । जन्मपत्रिका बनाने में देर होने पर जननशांति का निर्धारित काल परिवर्तित हो जाता है । जननशांति अधिक विलंब से करने पर उसकी प्रभावकारिता भी अल्प हो जाती है ।
४. जन्मपत्रिका बनानेवाले ज्योतिष को कौनसी जानकारी दें ?
जन्मपत्रिका अध्ययनशील एवं सदाचरणी ज्योतिष से बनवा लें । ज्योतिष को शिशु की जन्मदिनांक, जन्म का समय एवं जन्मस्थल की अचूक जानकारी दें; क्योंकि इन तीन बातों पर जन्मपत्रिका बनाई जाती है । नवजात शिशु के विषय में कुछ विचित्र लगे, तो वह भी ज्योतिष को बताएं, उदा. शिशु के जन्म से ही दांत होना, अवयव अधिक अथवा अल्प होना इत्यादि ।
५. जन्मपत्रिका बनवाने का महत्त्व
जन्मकुंडली दिशा एवं काल का मनुष्य से होनेवाला संबंध दर्शाती है । पूर्वजन्मों में किए हुए अच्छे एवं बुरे कर्मों का फल मनुष्य प्रारब्ध रूप में अगले जन्मों में भोगता है । व्यक्ति का प्रारब्ध जानने का कुंडली एक माध्यम है । जन्मकुंडली द्वारा जीवन की उपलब्धियां, काल की अनुकूलता एवं प्रतिकूलता, सुख-दुःख, अरिष्ट इत्यादि का बोध होता है । इसलिए अपने जीवन का स्वरूप समझने के लिए जन्मपत्रिका सहायक होती है ।
६. जन्मपत्रिका संभालकर रखें, इसके साथ ही सहजता से मिले, ऐसे स्थान पर रखें !
उपनयन (जनेऊ), विवाह इत्यादि मंगलकार्य के प्रसंग में, साथ ही अनेक बार आपातकालीन परिस्थिति में जन्मपत्रिका की आवश्यकता होती है । जन्मपत्रिका ठीक से न रखने के कारण उसके खो जाने से असुविधा होती है; पुन: बनवाने में समय एवं धन व्यय होता है । इसलिए जन्मपत्रिका संभालकर ऐसे स्थान पर रखें कि वह सहजता से मिल जाए ।’
– श्री. राज कर्वे, ज्योतिष विशारद, गोवा. (२२.१०.२०२२)