कारवार (कर्नाटक) के पंचशिल्पकार नंदा आचारी (गुरुजी) संतपद पर विराजमान !

पू. नंदा आचारीजी

रामनाथी (गोवा) – ३ नवंबर २०२२ को रामनाथी के सनातन आश्रम में संपन्न एक भावसमारोह में सनातन की साधिका श्रीमती विद्या विनायक शानभाग ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का संदेश पढते हुए अनासक्त तथा देहभान भूलकर मूर्ति बनाने की सेवा करनेवाले, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति अपार भाव रखनेवाले, साथ ही कर्नाटक सरकार की ओर से ‘जकणाचार्य पुरस्कार’ से सम्मानित कारवार के शिल्पी श्री. नंदा आचारी (गुरुजी) (आयु ८२ वर्ष) के संतपद पर विराजमान होने का शुभसमाचार दिया । उसके उपरांत सनातन के संत पू. पृथ्वीराज हजारेजी के करकमलों से पू. नंदा आचारीजी को शाल, श्रीफल, पुष्पमाला एवं भेंटवस्तु प्रदान कर सम्मानित किया गया ।

पू. नंदा आचारीजी (दाईं ओर) का सम्मान कऱते हुए पू. पृथ्वीराज हजारेजी

इस भावसमारोह के आरंभ में साधकों ने पू. नंदा आचारीजी द्वारा बनाई गई श्री सिद्धिविनायक की मूर्ति के विषय में, साथ ही उस मूर्ति के दर्शन करते समय प्राप्त अनुभूतियां कथन कीं । उसके उपरांत पू. नंदा गुरुजी ने मूर्ति बनाते समय उनके द्वारा अनुभव किए गए आनंद एवं भावावस्था के विषय में बताया । इस अवसर पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी भी उपस्थित थीं ।

पू. नंदा आचारीजी का मनोगत

यह सबकुछ सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा के कारण ही संभव हुआ !

यह सबकुछ सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेव डॉ. आठवलेजी की कृपा के कारण ही संभव हुआ है । जो कुछ भी हो रहा है, वह पूर्व में ही लिखा जा चुका है; इसलिए मैं केवल निमित्त हूं ।

पू. पिताजी द्वारा मूर्ति कैसे बनानी चाहिए, यह सिखाए जाने के कारण मुझे उसमें विद्यमान आनंद का अनुभव करना संभव हो रहा है ! – गजानन नंदा आचारी (पू. नंदा आचारीजी के बडे पुत्र)

जब मैं छोटा था, उस समय पिताजी ने (पू. नंदा आचारीजी ने) मूर्ति कैसी बनानी चाहिए, यह मुझे सिखाया । उसके कारण मैं भी मूर्ति बनाने में विद्यमान आनंद का अनुभव कर पा रहा हूं । यह सबकुछ पिताजी के कारण ही संभव हुआ । सनातन आश्रम में आने पर वहां स्थित श्री सिद्धिविनायक की मूर्ति देखकर ‘वह मैंने नहीं बनाई है, अपितु वह स्वयंभू मूर्ति है’, ऐसा प्रतीत होकर मेरी आंखें नम हुईं । (भावाश्रु आए) (श्री. गजानन नंदा आचारी जब यह बता रहे थे, उस समय उनका भाव जागृत हुआ था । – संकलनकर्ता)

जिस प्रकार से जकणाचार्य एक अमरशिल्पी थे, उस प्रकार से मेरे ससुर हैं ! – श्रीमती गायत्री गजानन आचारी (बहू)

प्राचीन काल में कर्नाटक के विख्यात एवं ऋषितुल्य अमरशिल्पी जकणाचार्य मूर्ति बनाते थे । आज के समय में मेरे ससुर भी उसी प्रकार से मूर्तियां बना रहे हैं । कर्नाटक सरकार ने मेरे ससुर को ‘जकणाचार्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया है । उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों में निरालापन प्रतीत होता है । जिस प्रकार वे मूर्ति बनाते हैं, उसी प्रकार से उन्होंने परिवार को भी बनाया है । अब मेरे पति भी उसी प्रकार से मूर्तियां बना रहे हैं तथा मेरे २ बच्चे भी विद्यालयीन शिक्षा लेने के साथ मूर्ति बनाने की कला भी सीख रहे हैं । बच्चों को भी मूर्ति बनाने में रुचि उत्पन्न हुई है ।

आनंदित, उत्साही एवं भूख-प्यास भूलकर मूर्तिकला के साथ एकरूप श्री सिद्धिविनायक मूर्ति के शिल्पी श्री. नंदा आचारी गुरुजी !

(सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. आठवलेजी

‘कर्नाटक राज्य के कारवार के निकट स्थित शिरवाड के निवासी श्री. नंदा आचारी गुरुजी ने अभी तक देवताओं की सहस्रों मूर्तियां बनाई हैं । उनकी विशेषता यह है कि किसी शिला को हाथ लगाते ही ‘उस शिला से कौनसी मूर्ति बनाई जा सकेगी ?’, इसे जानने का आध्यात्मिक सामर्थ्य उन्हें प्राप्त है ।

सनातन संस्था ने वर्ष २०२० में आचारी गुरुजी से ऋद्धि-सिद्धि सहित श्री सिद्धिविनायक की मूर्ति बनवा ली । यह मूर्ति बनाते समय गणेशजी ने अनेक बार गुरुजी को स्वप्न में दर्शन देकर ‘मूर्ति में कौनसे परिवर्तन करने चाहिए ?’, इस विषय में बताया । गुरुजी ने अविरत परिश्रम उठाकर बहुत ही भावपूर्ण पद्धति से यह सुंदर मूर्ति बनाई है । उसके कारण इस मूर्ति में शक्ति एवं चैतन्य का स्तर बहुत अधिक है । इस मूर्ति के दर्शन करते समय साधकों को अनेक अनुभूतियां होती हैं तथा श्री गणेशजी का अस्तित्व अनुभव होता है ।

जब यह मूर्ति बनाने का कार्य चल रहा था, उस समय गुरुजी ने सनातन आश्रम के २ साधकों को अपने साथ लेकर उन्हें मूर्तिकला की शिक्षा एवं आशीर्वाद भी दिए । इन साधकों ने गुरुजी के सान्निध्य में उनका प्रेमभाव, देहभान भूलकर सेवा करने की लालसा, अहंशून्यता तथा भगवान के प्रति की उनकी दृढ श्रद्धा का अनुभव किया । उनके सान्निध्य में होने के समय साधकों को ‘हम संत के सान्निध्य में हैं’, ऐसा लगता था ।

जिस स्थान पर गुरुजी मूर्ति बनाने का कार्य करते हैं, वह स्थान भी अत्यंत पवित्र बन चुका है तथा ‘वहां देवताओं का वास है’, यह अनुभूति होती है । गुरुजी में विद्यमान निष्काम भाव से, साथ ही एकरूप होकर सेवा करने की उनकी वृत्ति के कारण उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां तथा वह स्थान, ऐसा सबकुछ चैतन्यमय बन गया है ।

भगवान के प्रति दृढ श्रद्धा तथा ध्यान में, मन में तथा स्वप्न में भी केवल और केवल मूर्तिकला का ही निदिध्यास होने से गुरुजी की आध्यात्मिक उन्नति हो रही है तथा आज के इस मंगल दिवस पर वे ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर संतपद पर विराजमान हुए हैं ।

‘श्री सिद्धिविनायक की कृपा से पू. नंदा आचारी गुरुजी की आगे की प्रगति भी तीव्र गति से होगी’, इसके प्रति मैं आश्वस्त हूं ।’

– (सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. आठवले (३.११.२०२२)