लष्कर-ए-तोयबा का आतंकवादी महम्मद आरिफ की फांसी का दंड स्थायी !

  • वर्ष २००० में देहली के लाल किले पर हुए आक्रमण का प्रकरण

  • सर्वोच्च न्यायालय ने पुन: एक बार पुनर्विचार याचिका अस्वीकार की ।

नई देहली – वर्ष २००० में देहली के लाल किले पर हुए आक्रमण के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने लश्कर-ए-तोयबा का आतंकवादी महम्मद आरिफ उपाख्य अश्फाक की पुनर्विचार याचिका अस्वीकार करते हुए उसे इससे पूर्व सुनाया गया फांसी का दंड स्थायी रखा है । सरन्यायाधीश उदय ललित तथा न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी के खंडपीठ ने यह दंड सुनाया । आरिफ द्वारा २२ दिसंबर २००० को लाल किले पर की गई अंधाधुंध गोलीबारी में ३ सैनिकों की मृत्यु हो गई थी । आरिफ मूलत: पाकिस्तान के अबोटाबाद का निवासी है । उसने लाल किले पर राजपुताना राइफल्स की सातवीं टुकडी पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी ।

इस विषय में आदेश देते हुए मुख्य न्यायाधीश उदय ललित ने कहा कि, हमने याचिकाकर्ताओं के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है कि ‘इलेक्ट्रॉनिक रेकॉर्ड पर विचार नहीं किया जाना चाहिए’, परंतु पूर्ण रूप से देखा जाए तो इस प्रकरण में उसका अपराध सिद्ध होता है । न्यायालय का इससे पूर्व दिया आदेश उचित सिद्ध कर याचिकाकर्ताओं की पुनर्विचार याचिका को हम अस्वीकार कर रहे हैं ।’

फांसी का दंड अंतिम करने में पूरे २२ वर्ष का घटनाक्रम !

  • आरिफ को २५ दिसंबर २००० को नियंत्रण में लिया गया ।
  • २४ अक्तूबर २००५ को सत्र न्यायालय ने उसे अपराधी सिद्ध कर ३१ अक्तूबर २००५ को फांसी का दंड सुनाया ।
  • उसके उपरांत आरिफ ने सत्र न्यायालय के निर्णय को देहली उच्च न्यायालय में चुनौती दी । देहली उच्च न्यायालय द्वारा १३ सितंबर २००७ को उसे दिया गया फांसी का दंड उचित होने का परिणाम आया ।
  • इस पर आरिफ ने सर्वाेच्च न्यायालय में न्याय मांगा । १० अगस्त २०११ को सर्वाेच्च न्यायालय ने भी उसकी फांसी का दंड स्थायी रखा ।
  • तत्पश्चात आरिफ द्वारा सर्वाेच्च न्यायालय में फांसी के दंड के संदर्भ में प्रस्तुत की गई पुनर्विचार याचिका २८ अगस्त २०११ को न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दी गई ।
  • उसके उपरांत वर्ष २०१४ में सर्वोच्च न्यायालय ने दंड की कार्यवाही स्थगित कर दी ।
  • वर्ष २०१६ में सर्वाेच्च न्यायालय ने पुन: एक बार पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने का निर्णय लिया । इस समय आदेश में अंकित किया गया था कि फांसी के दंड के प्रकरणों पर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई खुले न्यायालय में होनी चाहिए ।
  • अंतत: ३ नवंबर २०२२ को आरिफ की फांसी पर सर्वाेच्च न्यायालय ने पुन: एक बार ठप्पा लगाया (मुहर लगाई) ।

संपादकीय भूमिका

  • लाल किले समान राष्ट्रीय महत्त्ववाले स्थानों पर आतंकवादी आक्रमण करनेवाले आतंकवादियों की फांसी के दंड पर २२ वर्षाें में ठप्पा लगाना (मुहर लगाना) भारतीयों को अपेक्षित नहीं ! न्यायतंत्र को ऐसे प्रकरण तीव्र गति से हल करने हेतु ठोस समाधान निकालना चाहिए, प्रत्येक संवेदनशील एवं उत्तरदायी नागरिक को ऐसा प्रतीत होता है !
  • गत २२ वर्षाें से आतंकवाद का पोषण करने हेतु जनता का कितना पैसा व्यय हुआ, इसका भी विचार होना आवश्यक है !