रूस-यूक्रेन युद्ध का आरंभ होकर ७ महिने पूर्ण हुए । २४ फरवरी २०२२ को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर विश्व को आश्चर्य का एक बडा झटका दिया । उससे ३ दशक पूर्व अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्येता तथा विद्वान इस अवधारणा में रत थे कि प्रत्यक्ष युद्ध की संकल्पना अब कालबाह्य हो चुकी है; इसलिए भविष्य में राष्ट्रों के मध्य किसी प्रकार के युद्ध नहीं होंगे; क्योंकि वैश्विकरण तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा आर्थिक एकीकरण तथा राष्ट्रों के मध्य एक-दूसरे में स्थित आर्थिक निर्भरता के कारण कोई भी देश अपने आर्थिक हितसंबंधों को ही प्रधानता देगा । उसके कारण ‘कोई भी देश युद्ध का मार्ग नहीं अपनाएगा’, मानो ऐसी सैद्धांतिक रचना ही की जा रही थी । केवल इतना ही नहीं, प्रत्येक राष्ट्र द्वारा अपना सैन्यसामर्थ्य बढाने के लिए किए जानेवाले प्रयासों को अर्थहीन माना जा रहा था । उसके स्थान पर अनेक अध्येताओं की ओर से ‘अब राष्ट्रों को आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर ध्यान देना चाहिए’, यह मत व्यक्त किया जा रहा था; क्योंकि परिस्थिति ही उस प्रकार की थी । अमेरिका एवं चीन के मध्य राजनीतिक सूत्रों पर आधारित अनेक प्रकार के विवाद हैं; परंतु इन दोनों देशों के मध्य का व्यापार ७०० अरब डॉलर्स (५६ लाख करोड रुपए) का है । चीन एवं जापान के मध्य विगत ३ दशकों में युद्ध के अनेक प्रसंग उत्पन्न हुए; परंतु उनके मध्य ५०० अरब डॉलर्स (४० लाख करोड रुपए) का व्यापार है ।
१. रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण कर ‘प्रत्यक्ष रूप से युद्ध नहीं होगा’, ऐसे सभी सिद्धांतों को झूठा साबित करना
भारत और चीन का ही उदाहरण लिया जाए, तो पिछले अनेक वर्षाें से सीमा पर चीन की दादागिरी, विस्तारवाद, घुसपैठ एवं गतिविधियां बढने के कारण दोनों देशों के मध्य तनावपूर्ण संबंध बन गए हैं; परंतु ऐसा होते हुए भी पिछले ३ वर्षाें में दोनों देशों के मध्य का व्यापार बडे स्तर पर बढकर वह १५० अरब डॉलर्स तक (१२ लाख करोड रुपए तक) पहुंच गया है । ‘निकट भविष्य में युद्ध नहीं होंगे’, यह अवधारणा प्रभावी बन चुकी थी और उस आधार पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति के सिद्धांत रखकर पुराने सिद्धांतों को अस्वीकार किया जा रहा था; परंतु ऐसी स्थिति में भी रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर इन सभी सिद्धांतों को तोड डाला । रूस इस स्वरूप की कार्यवाही करेगा, यही संपूर्ण रूप से अप्रत्याशित था; क्योंकि उसके पूर्व अमेरिका एवं ‘नाटो’ (उत्तर एटलांटिक सुरक्षा अनुबंध संगठन) ने रूस को धमकियां दी थी; परंतु रूस ने उनकी अनदेखी कर यूक्रेन पर बम बरसाए और गोलीबारी आरंभ की ।
२. रूस के द्वारा सैनिकी बल के आधार पर यूक्रेन के २ शहरों पर वर्चस्व स्थापित करना
रूस के राष्ट्रपति पुतीन का ऐसा मानना था कि यूक्रेन पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए आरंभ किया गया यह युद्ध १-२ सप्ताह में समाप्त हो जाएगा । ‘यूक्रेन नाटो एवं यूरोपियन यूनियन में सम्मिलित न हो’, यह उसका एक उद्देश्य था । उसके अनुसार नाटो और यूरोपियन महासंघ ने यूक्रेन को स्वयं में सम्मिलित करने का कोई उद्देश्य न होने का स्पष्ट किया । दूसरी ओर रूस ने यूक्रेन के डोनबास्क और लुहांस्क शहर पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए सैनिकी बल का उपयोग किया और वहां अपना वर्चस्व स्थापित किया । इसके उपरांत इसका कुछ समाधान निकलेगा, यह अपेक्षा थी; परंतु वैसा नहीं हुआ, अपितु आज ६ महिने बीतने के उपरांत भी यह युद्ध रुकेगा, ऐसी कोई अपेक्षा नहीं रखी जा सकती, ऐसी स्थिति है ।
३. दोनों राष्ट्रों को सभी प्रकार की हानि पहुंचकर भी किसी राष्ट्र के द्वारा युद्ध से पीछे न हटना
भले ही यह युद्ध रूस एवं यूक्रेन के मध्य चल रहा हो; परंतु आज अमेरिका एवं अमेरिका समर्थित सैन्य संगठन की आर्थिक और सैन्य शक्ति यूक्रेन के साथ है । उसके कारण रूस जैसी बलशाली सामरिक शक्ति के साथ लडते हुए भी इसमें यूक्रेन कहीं भी पीछे पडता हुआ (बैकफूट पर) दिखाई नहीं देता । पिछले ६ महिनों में अमेरिका ने यूक्रेन के लिए ४ अरब डॉलर्स की (३२ सहस्र करोड रुपए की) बहुत बडी आर्थिक सहायता घोषित की है । उसके अंतर्गत यूक्रेन को २ अरब डॉलर्स के (१६ सहस्र करोड रुपयों के) शस्त्रास्त्र भी दिए गए, साथ ही नाटो की ओर से मध्यम दूरी के कुछ क्षेपणास्त्र भी दिए गए । केवल इतना ही नहीं, अमेरिका और यूरोप के गुप्तचर विभाग आज यूक्रेन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं । उसके कारण यूक्रेन का पक्ष दुर्बल न रहकर शक्तिशाली होता हुआ दिखाई दे रहा है ।
इसके विपरीत पिछले ६ महिनों में रूस के जितने सैन्य अधिकारी मारे गए हैं, उतने कदाचित दूसरे विश्वयुद्ध में भी मारे नहीं गए होंगे अर्थात इस युद्ध में रूस को भी बहुत बडी हानि पहुंची है । दुर्भाग्यवश प्रचुर मात्रा में आर्थिक, सांपत्तिक और जीवित हानि होकर भी ये दोनों राष्ट्र युद्ध से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं । यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को अत्याधुनिक ‘सैटेलाईट सर्विसेस’ (उपग्रह के द्वारा दी जानेवाली सेवाएं) मिल गई हैं । उसके कारण वे निरंतर ‘ऑनलाइन’ माध्यम से विश्व के सामने अपना पक्ष रखते हैं और विश्वमत को अपने पक्ष में झुकाने का प्रयास कर रहे हैं । इस युद्ध को रोकने के लिए अनेक राष्ट्रों की ओर से अनुरोध किए गए; परंतु इसमें किसी ने मध्यस्थता नहीं की है । आज यह युद्ध एक अलग मोड पर पहुंच गया है ।
४. इस युद्ध के पीछे ‘रूस को आर्थिक दृष्टि से कंगाल बनाना’ अमेरिका का षड्यंत्र होना
इस युद्ध के पीछे अमेरिका की एक और कूटनीति दिखाई देती है । अमेरिका को रूस को आर्थिक दृष्टि से संपूर्ण रूप से कंगाल बनाना है । इसी के एक अंश के रूप में यह युद्ध आरंभ होने के उपरांत अमेरिका ने रूस पर ५ सहस्र प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिससे रूसी अर्थव्यवस्था को बडी हानि पहुंच रही
है । रूस जब तक आर्थिक दृष्टि से कंगाल नहीं हो जाता, तब तक अमेरिका इस युद्ध को जारी रखेगा अथवा यूक्रेन के साथ रहेगा ।
५. अमेरिका द्वारा अपना आर्थिक महासत्ता का स्थान टिकाए रखने के लिए रूस और चीन को दुर्बल बनाने का प्रयास करना
आज के समय में अमेरिका के सामने २ प्रमुख सामरिक चुनौतियां हैं, जिससे उसके सैन्य एवं व्यापारी हितसंबंध संकट में पड सकते हैं । उनमें से एक है रूस और दूसरा है चीन ! अमेरिका को प्रमुखता से चीन से सर्वाधिक संकट है; क्योंकि वर्ष २०४९ तक चीन को विश्वपटल पर अमेरिका का आर्थिक महासत्ता का स्थान छीनना है और उस दृष्टि से चीन गति से कदम बढा रहा है । इसे देखते हुए आज विश्व की दूसरे क्रम की अर्थव्यवस्था चीन आनेवाले समय में अमेरिका को पछाड सकती है । इसके लिए चीन ने अगले २ दशकों तक की योजनाएं बनाई हैं । उसके कारण अमेरिका चीन की चुनौती की ओर अधिक गंभीरता से देख रहा है । भविष्य में चीन के साथ संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई, तो रूस चीन के साथ खडा रह सकता है, इसके प्रति अमेरिका आश्वस्त है । उसके कारण ही उससे पूर्व ही रूस को आर्थिक दृष्टि से ध्वस्त करने की अमेरिका की रणनीति है । इसमें कुछ मात्रा में सफलता मिलती हुई देखकर अब अमेरिका चीन को किसी न किसी संघर्ष में फंसाने के प्रयास में है ।
– डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर, विदेश नीति विश्लेषक (१६.९.२०२२)
(साभार : फेसबुक पेज)