वाराणसी आश्रम के प्रति कृतज्ञभाव में रहनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी

उत्तर भारत में प्रतिकूल परिस्थिति में भी धर्मप्रसार का कार्य अत्यंत लगन से करनेवाले, प्रेमभाव से हिन्दुत्वनिष्ठों से निकटता साधनेवाले एवं विनम्र वृत्ति के हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी २९.६.२०२२ को सद्गुरुपद पर विराजमान हुए । वाराणसी आश्रम में रहकर, आश्रमजीवन का अनुभव करनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी का आश्रम के प्रति कृतज्ञताभाव तथा आश्रम के चैतन्य में होनेवाली वृद्धि दर्शानेवाले बुद्धि-अगम्य परिवर्तन यहां प्रस्तुत हैं ।

सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ

१. ‘जब मैंने साधना आरंभ की, उस समय सनातन के साधक फोंडा के सुखसागर आश्रम में सेवा करते थे । उस समय मैं गोवा राज्य में धर्मप्रचार की सेवा करता था । सेवा हेतु मुझे सुखसागर में जाने का अवसर मिलता था । सुखसागर में जाने के पश्चात मुझे सदैव ऐसा लगता कि ‘यह स्थान कितना पवित्र है । यहां रहकर सेवा करनेवाले साधक कितने सौभाग्यशाली हैं । क्या मेरे जीवन में ऐसे क्षण कभी आएंगे ?’

२. वर्ष २००४ में परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से उज्जैन (मध्य प्रदेश) के कुंभ मेले के पश्चात मुझे वाराणसी आश्रम जाने का अवसर मिला । उस समय मुझे अत्यंत कृतज्ञता लगी । वही कृतज्ञता आज भी मेरे मन में जागृत है ।

३. आरंभ में ‘आश्रम का क्या अर्थ है’, यह मेरे ध्यान में नहीं आता था । उस समय परात्पर गुरुदेवजी के मार्गदर्शन से ज्ञात हुआ कि ‘भवन की दीवारें, आश्रम नहीं हैं, अपितु प्रत्येक साधक ही आश्रम की अभिव्यक्ति (प्रतिरूप) है !’ अतः मैं साधकों से निरंतर कहता हूं कि ‘हमें आश्रम अपने मन (अंतर्मन) में निर्माण करना है !’

वाराणसी आश्रम का चैतन्य वृद्धिंगत हो रहा है, यह दर्शानेवाले कुछ बुद्धिअगम्य परिवर्तन तथा साधकों को हुई अनुभूतियां !

१. आश्रम के परिसर में प्रतीत हुए कुछ प्राकृतिक परिवर्तन

वाराणसी आश्रम के परिसर में अमरूद के पेड पर लगे अनेक अमरूद गोलाकार में दिखाए हैं !

अ. ‘वाराणसी आश्रम के परिसर में एक अमरूद का पेड है । इस अमरूद के पेड की विशेषता यह है कि उसपर अनेक स्थानों पर एक साथ ४ से ५ अमरूद आते हैं तथा एक डाली पर अनेक अमरूद एक पंक्ति में आते हैं । इस पेड की ओर देखने पर आनंद एवं उत्साह प्रतीत होता है ।

आ. आश्रम के परिसर में ४ आम के पेड भी हैं । इस वर्ष इन पेडों पर इतने आम आए थे कि प्रश्न उठता था कि इतने आम कब खाएंगे, कैसे इन्हें समाप्त करेंगे ?

इ. पहले हवा का हल्का-सा झोंका आने पर भी आम नीचे गिर जाते थे; परंतु इस वर्ष पकने से पूर्व आम नीचे नहीं गिरे ।

ई. इसी वर्ष की यह घटना है । एक दिन ध्यान में आया कि अब आम पेड पर से निकाल लेने ही चाहिए । फिर वैसा नियोजन करना निश्चित किया; परंतु कुछ कारणवश अगले १-२ दिन हमें आम निकालना संभव नहीं हुआ । अंत में हमने इस सेवा के लिए समयमर्यादा डाली और उसी दिन सभी आम निकाले । अगले ही दिन जोर की आंधी आई । यदि हम एक दिन पूर्व आम नहीं निकालते, तो हमारे हाथ एक भी आम नहीं आता । तब ऐसा लगा कि हमारे आम निकालने तक भगवान ने ही यह आंधी रोक रखी थी ।

उ. आश्रम में एक गुडहल का पेड है । उसे अनेक वर्षाें के पश्चात फूल आए । विशेष रूप से एक ही शाखा पर २ रंग के फूल आए थे । उस समय हमें प्रतीत हुआ कि ‘एक फूल में प्रभु श्रीराम का तत्त्व है, तो दूसरे में भगवान श्रीकृष्ण का तत्त्व है ।’

ऊ. आश्रम के आसपास के घरों के परिसर के बेल, जास्वंद, आम जैसे सात्त्विक वृक्ष भी आश्रम की ओर झुक रहे हैं ।

ए. आश्रम के परिसर में नेवला, गिलहरी, मोर आदि सहजता से घूमते हैं । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ‘उन्हें यहां घूमने में किसी भी प्रकार का भय नहीं है ।’ एक दिन एक मोर आश्रम परिसर में आया । सर्वत्र घूमकर वह आश्रम के दरवाजे पर कुछ समय तक बैठा । नेवले के दर्शन होते हैं, जो कि एक आध्यात्मिक शुभसंकेत होता है ।

गत कुछ माह से प्रकृति, पशु-पक्षियों से मिलनेवाले इन शुभसंकेतों को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि ‘भगवान ही इस माध्यम से अपने अस्तित्व का संकेत दे रहे हैं ।’

२. पानी की तरंगों समान फर्श पर तरंगें दिखाई देना

वाराणसी आश्रम में पुरानी पद्धति की ‘मोजैक’ फर्श (टाइल्स) हैं । पानी पर जिस प्रकार तरंगें दिखाई देती है, उसी प्रकार की तरंगें फर्श पर दिखाई देती हैं । रामनाथी आश्रम में भी ऐसे परिवर्तन पुरानी फर्श पर दिखाई देते हैं । आश्रम में आपतत्त्व वृद्धिंगत होने की यह अनुभूति है ।

३. आश्रम के नूतनीकरण के समय सात्त्विक व्यक्तियों का धर्मकार्य से जुड जाना

अ. कुछ समय पूर्व ही वाराणसी आश्रम का नूतनीकरण हुआ । नूतनीकरण करने के लिए सात्त्विक कारीगर भी मिल गए । उनमें से कुछ कारीगर अब गुरुकृपायोगानुसार साधना भी कर रहे हैं, तो कुछ ने नामजप आरंभ किया है ।

आ. नूतनीकरण के लिए जिनसे निर्माणकार्य की सामग्री खरीदी थी, वे वितरक अब पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ के लिए विज्ञापन दे रहे हैं ।

४. नूतनीकरण के पश्चात साधक तथा धर्माभिमानियों को हुई अनुभूतियां

अ. धर्मप्रेमी जब आश्रम आते हैं, तब उन्हें आनंद अथवा शांति की अनुभूति होती है । धर्माभिमानी जब उनकी सेवा पूर्ण कर आश्रम से निकलने लगते हैं, तब उन्हें स्वयं में कुछ परिवर्तन प्रतीत होता है ।

आ. कोरोना महामारी के कारण कुछ साधक आश्रम नहीं आ पाए थे । दो वर्ष पश्चात जब वे आश्रम आए तो उन्होंने बताया, ‘हमें यहां सनातन के रामनाथी (गोवा) आश्रम समान अनुभूतियां हो रही हैं ।’

इ. ‘आश्रम के नूतनीकरण के पश्चात वृद्धिंगत हुए चैतन्य के कारण यह प्रतीत होता है कि ‘आश्रम के साधकों की सेवा करने की क्षमता बढ गई है ।’ वाराणसी में हवामान अत्यंत प्रतिकूल रहता है । वहां सर्दी के समय कडाके की ठंड पडती है, तो गर्मी में कडी धूप ! इसका परिणाम सभी पर होता है । सर्दियाें के दिनों में प्रातः अथवा धूप के समय तीव्र धूप के कारण समाज के लोग घर से बाहर नहीं निकलते । किंतु आश्रम के साधक सभी परिस्थिति में सेवारत रहने का प्रयास करते हैं । साधकों को गुरुदेवजी ने इतना बल दिया है कि साधकों को सेवा करते समय प्राकृतिक प्रतिकूलता की कोई भी बाधा प्रतीत नहीं होती । साथ ही यह बात भी ध्यान में आई है कि ‘नूतनीकरण के पश्चात साधकों के सेवा घंटों में वृद्धि हुई है ।’

५. कोरोना महामारी के समय वाराणसी आश्रम का नूतनीकरण करते समय साधकों ने ईश्वरीय कृपा का अनुभव किया !

५ अ. कोरोना प्रतिबंधित करने के लिए आवश्यक साहित्य का अर्पण शुभचिंतकों द्वारा अपने मन से दिया जाना : कोरोना महामारी के समय आश्रम में सैनिटाइजर, थर्मल स्कैनर (तापमान गिनती करनेवाला उपकरण), ऑक्सिमीटर (व्यक्ति के शरीर में रहनेवाला ऑक्सिजन का स्तर दर्शानेवाले उपकरण) आदि की आवश्यकता थी । उस समय शुभचिंतकों ने स्वयं ही भ्रमणभाष कर सूचित किया कि ये वस्तुएं आश्रम के लिए जितनी मात्रा में चाहिए, उतनी अर्पण स्वरूप दे सकते हैं ।

५ आ. कोरोना की मात्रा अधिक होने के पश्चात सेवा हेतु बाहर गए साधकों की रक्षा होना : नूतनीकरण के समय बाहर कोरोना रुग्णों की संख्या बढती जा रही थी । ऐसी परिस्थिति में निर्माणकार्य के लिए सामग्री खरीदने तथा अन्य सेवाओं हेतु आश्रम के २ साधकों का बाहर जाना आवश्यक रहता था । उस समय साधकों ने अपना पूरा-पूरा ध्यान रखते हुए नियमों का पूरी तरह से पालन भी किया । ‘प्रतिदिन समाज में जाने के पश्चात भी उन्हें सामान्य ज्वर भी नहीं आया ।’ यह हमारे लिए विशेष अनुभूति है ।’

– सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति (२९.६.२०२२)

मूलत: गोवा राज्य के निवासी सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी का वाराणसी में धर्मप्रसार हेतु नियोजन करने की दृष्टि से उन्हें प्रतीत होनेवाला कार्यकारण भाव !

‘मेरे मन में कभी-कभी ये विचार आते थे कि ‘ईश्वर ने मेरे लिए वाराणसी ही सेवा का क्षेत्र क्यों चुना ?’ इसका उत्तर ईश्वर ने मुझे इस वर्ष के अधिवेशन में दिया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में गोवा के श्री मंगेशी देवस्थान के न्यासी ने कहा, ‘प्रतिवर्ष काशी का (वाराणसी का) गंगाजल गोवा के श्री मंगेशी देवस्थान में लाया जाता है । उस गंगाजल से गर्भगृह की सफाई करने के पश्चात ही ईश्वर पर अभिषेक किया जाता है ।’ इससे काशी विश्वनाथ तथा श्री मंगेशी देवस्थान का संबंध ध्यान में आया । मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ‘भगवान शिव का रूप तथा हमारे कुलदेवता श्री मंगेशी ने ही मुझे शिवक्षेत्र काशी (वाराणसी) स्थित आश्रम में सेवा हेतु भेजा ।’ – सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति (२९.६.२०२२)