हमारा देश निश्चित कौन सी दिशा में अग्रसर हो रहा है ? – सर्वोच्च न्यायालय

वृत्तवाहिनियों पर हो रहे चर्चासत्रों द्वारा किए जानेवाले द्वेषपूर्ण एवं विषैले विधानों का प्रकरण

नई देहली – वृत्तवाहिनियों पर हो रहे विविध विषयों के चर्चासत्रों में किए जा रहे द्वेषपूर्ण एवं विषैले विधानों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रसन्नता व्यक्त की है । सर्वोच्च न्यायालय ने प्रश्न पूछा है कि वास्तव में हमारा देश किस दिशा में बढ रहा है ? उसने मत व्यक्त करते हुए कहा है कि माध्यमों के लिए नियमावली की आवश्यकता है । उसने प्रश्न पूछा है कि तुच्छ सूत्र कहकर सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है ? तथा परामर्श दिया है कि सरकार को इस प्रकरण में अगुआई करनी चाहिए । न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस प्रकरण में उत्तर देने के लिए कहा है । उसने सरकार को स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं कि क्या द्वेषपूर्ण अपराधों का सामना करने के लिए विधि आयोग की अनुशंसा के अनुसार कानून बनाने का विचार है ? वृत्तवाहिनियों पर द्वेषपूर्ण विधानों के विषय में प्रविष्ट कुल ११ याचिकाओं की सुनवाई की गई है । इसमें ‘सुदर्शन न्यूज’ वाहिनी को दिखाने से रोका गया ‘यू.पी.एस.सी. जिहाद’ का कार्यक्रम, तथा धर्मसंसद के भाषण समाहित हैं । इस प्रकरण की अगली सुनवाई २३ नवंबर को होगी ।

१. न्यायालय ने पूछा है कि भारत में द्वेषयुक्त भाषणों के संदर्भ में कानून में क्या प्रावधान है । याचिका कर्ताओं में से एक अधिवक्ता श्री. अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि कानून में द्वेषयुक्त भाषण एवं किंवदंतियां (अफवाह) फैलाने की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है ।

२. केंद्र सरकार के अधिवक्ताओं ने इस विषय में कहा है कि वृत्तवाहिनियों का संगठन इस दिशा में कदम उठा रहा है । तभी न्यायालय ने प्रश्न पूछा है कि अब तक आपने ४ सहस्र आदेश दिए, क्या उसका कुछ उपयोग हुआ ?

३. न्यायालय ने कहा कि मुख्य प्रवाह की वृत्तवाहिनियां यह द्वेष रोक सकती हैं । ऐसे प्रकरणों को रोकने के लिए वृत्तवाहिनियों के निवेदकों की भूमिका मह‌‌त्त्वपूर्ण है । उनको जागृत होना चाहिए कि द्वेषपूर्ण भाषा का प्रयोग न हो ।