आतंकवादियों की अंतिम यात्रा में सहभागी होना राष्ट्र विरोधी नहीं ! – जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय

  • संविधान की धारा २१ की ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ का दिया संदर्भ !

  • कश्मीर की कथित स्वतंत्रता के लिए भडकाऊ भाषण देनेवाले इमाम को जमानत !

(इमाम अर्थात मस्जिद में प्रार्थना करवाने वाला प्रमुख)

श्रीनगर – जिहादी आतंकवादियों की अंतिम यात्रा में सहभागी होना, इसे राष्ट्रविरोधी नहीं कहेंगे । संविधान की धारा २१ के अंतर्गत ऐसा करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है । इस कारण ऐसा करने से किसी को रोक नहीं सकते, ऐसा निर्णय जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक प्रकरण की सुनवाई करते समय दिया ।

१. न्यायमूर्ति अली मोहम्मद माग्रे और एम.डी. अकरम चौधरी की खंडपीठ ने इस प्रकरण की सुनवाई करते समय व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सर्वाधिक प्रधानता है, ऐसा बताया ।

२. न्यायालय ने इस प्रकरण में कहा कि, जब किसी व्यक्ति के विरोध में अपराधिक प्रकरण चल रहा होगा अथवा उसे दोषी ठहराकर कारागृह का दंड सुनाया गया होगा, तभी उस व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नियंत्रित किया जा सकता है ।

३. वर्ष २०२१ में हिजबुल मुजाहिद्दीन इस आतंकवादी संगठन के एक जिहादी को भारतीय सेना ने मुठभेड में मार गिराया था । उस समय उसकी अंतिम यात्रा में सहभागी हुए इमाम और स्थानीय लोगों के विरोध में ‘यूएपीए’ अर्थात अनाधिकृत कृत्य प्रतिबंधक कानून के अंतर्गत कार्यवाही कर बंदी बनाया गया था ।

४. आतंकवादी की दफनविधि के समय जाविद अहमद शाह इस इमाम ने नमाज का आयोजन किया था । इसके उपरांत स्थानीय मुसलमानों की भावनाओं को भडकाते हुए कश्मीर को स्वतंत्रता मिलने तक संघर्ष करने का आवाहन किया था ।

संपादकीय भूमिका

‘आतंकवादियों का महिमामंडन होना, यह कभी भी अस्वीकार होकर इस माध्यम से जिहादी आतंकवाद और उसका समर्थन करने वालों को एक प्रकार से प्रोत्साहन तो नहीं मिल रहा ?’, यह देखना आवश्यक है । साथ ही राष्ट्रद्रोह की व्याख्या स्पष्ट कर यह सर्वसाधारण नागरिकों को ज्ञात होने के लिए न्याय व्यवस्था को प्रयास करना चाहिए, यह अपेक्षा !