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गणेशोत्सव २०२२
सनातन हिन्दू धर्मानुसार मनाए जानेवाले त्योहार, उत्सव आदि का केवल आध्यात्मिक महत्त्व है, ऐसा नहीं है; अपितु ऋतुचक्र का विचार कर उससे शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर भी लाभ हो सकता है । हमारे ऋषि-मुनियों के तथा पर्याय से सनातन वैदिक हिन्दू धर्म का अलौकिकत्व पुनः एक बार अधोरेखित होता है । प्रस्तुत लेख में हम यह देखेंगे कि भाद्रपद मास में किए जानेवाले गणपतिपूजन का शारीरिक दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
१. सितंबर-अक्टूबर में प्राकृतिकरूप से शरीर में पित्त की मात्रा अधिक होना तथा उससे विविध शारीरिक कष्ट होना
‘सितंबर-अक्टूबर, ये २ मास एक प्रकार से छोटी गर्मी के रहते हैं । इस गर्मी में शरीर को केवल बाहर से ही नहीं, अपितु अंदर से भी कष्ट होते हैं । ये कष्ट आगे बढते ही जाते हैं । इन दिनों में कुछ लोगों के शरीर में पित्त की मात्रा बढती जाती है । इससे किसी को प्रातः ९ से १० बजे तथा सायंकाल को ४ से ५ बजे पेटदर्द होता है । किसी को रात्रि शीघ्र नींद नहीं आती । किसी को शौच द्वारा रक्तस्त्राव होता है, तो किसी को पेशाब में रक्तस्त्राव होता है । किसी के हाथ-पैरों में जलन होती है अथवा आंखों में जलन होती है । किसी के गले में जलन तथा खट्टा-कडवा पित्त गले में आता है ।
२. शरीर में वृद्धिंगत होनेवाले इस पित्त का शमन करनेका शास्त्रशुद्ध उपाय अर्थात श्री गणेशपूजन !
प्रतिवर्ष भाद्रपद-आश्विन मास में शरीर में पित्तदोष की वृद्धि होती है । गणपति पूजन की विधि के कारण यह वृद्धिंगत हुआ पित्तदोष न्यून होने के लिए सहायता होती है ।
अ. गणेशजी की सजावट, श्रीगणपति का प्रसाद, रात्रि का गायनादि ललित कार्यक्रम ये सभी पित्तदोष के शमन के लिए ही हैं ।
आ. गणपति के लिए गुड-नारियल से बिना तले हुए केवल भाप पर पके हुए (उकडी) मोदक बनाए जाते हैं । यह भी पित्तशामक है ।
इ. छुहारा, सूखा नारियल, मिश्री, किशमिश तथा खसखस, इन ५ पदार्थाें को कूटकर, इस पंचखाद्य को प्रसाद के रूप में आरती के पश्चात देते हैं । वह भी पित्तशामक ही है ।
ई. गणेशजी की सजावट करते समय केले के पत्तों का उपयोग किया जाता है तथा रंगोली बनाई जाती है । खस, गुलाब, चंदन इत्यादि सुगंधित इत्रों का उपयोग किया जाता है । उससे भी पित्तदोष न्यून होने में सहायता मिलती है ।
उ. गणपति की मूर्ति मिट्टी से बनाई जाती है । उसे विसर्जन के लिए नदी अथवा समुद्र के पानी में अंदर तक जाते हैं । उससे भी भक्त के शरीर पर पानी जो कि पित्तशामक द्रव्य है, उसका अनुकूल परिणाम होता है ।’
– वैद्या (श्रीमती) मंजिरी जोग (संदर्भ : अज्ञात)