श्री गणपति विसर्जन के संदर्भ में हमें यह जानकारी है कया ? 

पूजा के कारण मूर्ति में आया चैतन्य बहते पानी में मूर्ति का विसर्जन करने से पानी द्वारा दूर-दूर तक पहुंचता है । कुंड का पानी बहता हुआ न होने के कारण इन आध्यात्मिक लाभों से श्रद्धालु वंचित रहते हैं ।

श्री गणेश के भक्त-ऋषियों के संदर्भ का प्रसंग तथा श्री गणेश की लीला का आधारभूतशास्त्र !

एक बार नारदमुनि ने भृशुंडी ऋषि को बताया कि उसके माता-पिता, पत्नी, पुत्री तथा अन्य कुछ सगे-संबंधी ‘कुंभीपाक’ नामक नरक में नरकयातना भोग रहे हैं ।

पित्तदोष शमन के लिए गणपतिपूजन

सनातन हिन्दू धर्मानुसार मनाए जानेवाले त्योहार, उत्सव आदि का केवल आध्यात्मिक महत्त्व है, ऐसा नहीं है; अपितु ऋतुचक्र का विचार कर उससे शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर भी लाभ हो सकता है ।

श्री गणेशजी का कार्य, विशेषताएं एवं उनका परिवार

गणपति विघ्नहर्ता हैं, इसलिए नाटिका से लेकर विवाह तक एवं गृहप्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में श्री गणेशपूजन किया जाता है ।

स्वयंभू गणेशमूर्ति

श्री विघ्नेश्‍वर, श्री गिरिजात्मज एवं श्री वरदविनायक की मूर्तियां स्वयंभू हैं । बनाई गईं श्री गणेशमूर्ति की तुलना में स्वयंभू गणेशमूर्ति में चैतन्य अधिक होता है ।

अष्टविनायक

अष्टविनायकों में से एक है मोरगांव के गणपति जिसे श्री मयुरेश्‍वर भी कहते हैं । महान गणेशभक्त मोरया गोसावी ने यहां पूजापाठ का व्रत लिया था । श्री मयुरेश्‍वर गणेश का, यह स्वयंभू और आदिस्थान है ।

गणेशपूजन में दूर्वाका विशेष महत्त्व

‘गणपति से विवाह करने की कामना से एक अप्सरा ने ध्यानमग्न गणपति का ध्यानभंग किया । जब गणपति विवाह के लिए तैयार नहीं हुए, तब अप्सरा ने गणपति को श्राप दिया । इससे गणपति के मस्तक में दाह होने लगा, जिसे न्यून (कम) करनेके लिए गणपति ने मस्तकपर दूब धारण की; इसलिए श्री गणपति को दूब चढाते हैं ।’

श्रीगणेशजी को अडहुल के पुष्प अर्पण करें

देवताओं से प्रक्षेपित स्पंदन मुख्यतः निर्गुण तत्त्वसे संबंधित होते हैं । देवताओं को अर्पित पुष्प तत्त्व ग्रहण कर पूजक को प्रदान करते हैं, जिससे पुष्पमें आकर्षित स्पंदन भी पूजक को मिलते हैं ।

श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन बहते पानी में करें !

अध्यात्मशास्त्रानुसार गणेश चतुर्थी के काल में की गई शास्त्रोक्त पूजा विधियों के कारण मूर्ति में श्री गणपति का चैतन्य अधिक मात्रा में आकर्षित होता है ।

सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव : कैसा न हो तथा कैसा हो ?

हिंदूओं में धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा बढे, उन्हें संगठित करनेमें सहायता हो, लोकमान्य तिलकने इस उदात्त हेतु सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ किया; परंतु आजकल सार्वजनिक गणेशोत्सवोंमें होनेवाले अनाचार एवं अनुशासनहीनता के कारण उत्सवका मूल उद्देश्य विफल होनेके साथ उसकी पवित्रता भी नष्ट होती जा रही है ।