‘विदेशों में सामान्य नागरिकों को ‘कार्डियाक रिससिटेशन’ की जानकारी होती है, इसलिए वे ऐसे रोगियों पर प्राथमिक उपचार कर उन्हें चिकित्सालय पहुंचाने तक जीवित रख सकते हैं । भारत के कुछ क्षेत्रों में यह उपचार सिखाने की प्रक्रिया आरंभ हुई है; परंतु अभी वह सर्वत्र आरंभ नहीं हुई है । ‘एक सामान्य व्यक्ति भी रोगी की सहायता कर सकता है’, यह सभी को ज्ञात हो; इस विषय में उद्बोधन करना समय की मांग है ।
हाल के कुछ दिनों में ‘कोविड’ महामारी के उपरांत युवा पीढी में भी ‘कार्डियक अरेस्ट’ होने की घटनाएं (हृदय का कार्य अकस्मात रुक जाने की घटनाएं) बढी हैं । ऐसे रोगी का बंद पडा हृदय यदि ३-४ मिनट उपरांत भी चालू नहीं हुआ, तो उससे मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति रुक जाने से मस्तिष्क की कार्यक्षमता समाप्त हो जाती है । उसके कारण मस्तिष्क नाकाम (ब्रेन डैमेज) होता है । ऐसी स्थिति में प्रत्येक नागरिक को ‘कार्डियक रिससिटेशन’ अर्थात ‘हृदय-पुनरुज्जीवन तंत्र’ ज्ञात होना आवश्यक है । इस विषय में आगे जानकारी दी गई है ।
१. रोगियों पर उपचार करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?

१ अ. स्वयं की तथा रोगी की सुरक्षा सुनिश्चित करें ! : ‘स्वयं के लिए तथा रोगी के लिए संबंधित स्थान सुरक्षित है न ?’, यह पहले देखें । रोगी को दुर्घटना के स्थान से हटाकर एक ओर ले लें, उदा. संबंधित स्थान महामार्ग पर स्थित हो, तो ऐसे स्थान पर ‘स्वयं भी सुरक्षित होना चाहिए’, इसका ध्यान रखें ।
१ आ. ‘क्या रोगी होश में है ?’, यह देखें ! : ‘रोगी मूर्च्छित है अथवा होश में है, यह देखने के लिए उसके कंधे पर थपथपाकर उसका नाम पूछें तथा उससे प्रत्युत्तर प्राप्त करने का प्रयास करें । ‘रोगी की सांस चल रही है अथवा नहीं ?’, यह देखें ।
१ इ. तत्काल सहायता लें : छातीदाबन आरंभ करने से पूर्व स्वयं अथवा अन्य लोगों को स्थानीय आपातकालीन सहायता केंद्र के तत्काल क्रमांक पर (क्रमांक १०८ से) संपर्क कर ‘रोगी किस स्थान पर है, यह सूचित करने के लिए बताएं, जिससे एंबुलेन्स के आने की प्रक्रिया आरंभ होगी !
२. ‘कोल्स-कॉम्प्रेशन ओन्ली लाइफ सपोर्ट’ उपचार-पद्धति क्या है ?
केवल छातीदाबन कर रोगी का जीवन बचाना संभव होता है । ‘कोल्स – कॉम्प्रेशन ओन्ली लाइफ सपोर्ट’ (COLS : Compression Only Life Support) एक उपचार-पद्धति है तथा वह ‘कार्डियक अरेस्ट’ (हृदय का अकस्मात बंद हो जाना) की तुरंत पहचान करना, हृदयक्रिया पुनः आरंभ करना, रोगी के छाती पर दबाव देना तथा रोगी को चिकित्सकीय सुविधा मिलने हेतु शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सालय भेजना’, इसपर बल देती है ।
३. रोगी का छातीदाबन (Chest Compressions) कैसे करें ?
३ अ. रोगी को ठोस सतह पर पीठ के बल लिटाएं ! : गंभीर रोगी को भूमि पर अथवा किसी ठोस सतह पर (उदा. उचित आकार के लकडी के फट्टे पर) सीधा लिटाएं । ठोस सतह उपलब्ध न हो, तो पीठ के बल लेटे हुए रोगी पर प्राथमिक उपचार आरंभ करें ।
३ आ. प्रथमोपचारक रोगी के निकट घुटनों पर बैठे !
१. प्रथमोपचारक रोगी के कंधे तथा छाती के एक ओर उसके निकट घुटने पर बैठे ।
२. रोगी के शरीर पर वस्त्र हों, तो उसकी छाती का भाग खोलें । वस्त्र पूर्णतः हटाने में समय व्यर्थ न करें ।
३ इ. एक हथेली रोगी की छाती पर उरास्थि के निचले भाग पर रखें !
१. एक हाथ की तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) तथा मध्यमा (बीच की उंगली) की सहायता से रोगी की छाती की अपनी ओर की सबसे निचली पसली टटोलकर सुनिश्चित करें ।
२. वे दोनों उंगलियों को पसलियों के निचले भाग के आधार से छाती एवं पेट की सीमा पर एक छोटा गड्ढा होता है, वहां ले जाएं । (वहां पसली उरास्थि से अर्थात ‘स्टर्नम’ से जुडी होती है ।)
३. उरास्थि के निचले सिरे से २-३ सें.मी. ऊपर की दिशा में दूसरी हथेली की कलाई की ओर का मांसल भाग रखें ।
४. रोगी की छाती पर रखे पहले हाथ पर दूसरे हाथ की हथेली रखते समय दूसरे हाथ की उंगलियां पहले हाथ की उंगलियों में फंसाएं । पहले हाथ की उंगलियों का अगला भाग यथासंभव रोगी की छाती पर न रखें । (छायाचित्र १)
३ ई. रोगी व्यक्ति पर छातीदाबन कैसे करें ?
१. प्राथमिक उपचारक अपने घुटने पर खडा रहे ।
२. दोनों हाथों की कलाई से कंधे तक का भाग संबंधित हाथ की हथेली के समकोण में रखें ।
३. दोनों हाथों की कोहनियां सीधे रखें ।
४. शरीर के ऊपरी भाग के भार का पूर्ण उपयोग कर, अर्थात कंधों से बल देकर हाथ की हथेलियों से रोगी की उरास्थि पर दबाएं । (छायाचित्र २)
५. उरास्थि पर दबाव देते समय (‘स्टर्नम’ का) उसका बल इतना रखें कि उरास्थि का भाग न्यूनतम ५ सें.मी. तक ही दबे ।
६. दाबन की गति न्यूनतम ‘प्रति १८ सेकेंड में ३० बार’ इतनी रखें । १, २, ३… इस प्रकार ३० आंकडों तक छातीदाबन करें । ३० अंकों तक दबाने के उपरांत पुनः १ से ३० तक के आंकडे गिनते हुए दबाव दें । (पुनः छातीदाबन करें) ऐसा ५ बार करें ।
७. एक बार छाती दबाने के उपरांत उसे पुनः दबाने तक हाथ की हथेलियां उरास्थि से (‘स्टर्नम’ से) न हटाएं; परंतु इस अवधि में ‘छाती पर दबाव न हो’, यह सावधानी रखें ।
८. जब तक रोगी की सांस तथा उसमें हलचल आरंभ नहीं होती, तब तक तथा आगे की चिकित्सकीय सुविधा मिलने के लिए चिकित्सालय पहुंचने तक छातीदाबन करते रहना आवश्यक है ।
९. ५ बार छातीदाबन करने के उपरांत अन्य प्रथमोपचारक यदि उपलब्ध हो, तो वह तुरंत छातीदाबन आरंभ करें । पहला प्रथमोपचारक यदि बहुत थक गया हो, तो दाबन करना बंद करना पडता है । ऐसी स्थिति में अन्यों से सहायता लेना अपेक्षित है ।
४. छातीदाबन का प्राथमिक उपचार करने पर रोगियों के प्राण बचने की विशेषतापूर्ण अनुभूतियां !
४ अ. प्राथमिक उपचारवर्ग में आनेवाली जिज्ञासु महिला द्वारा उसकी सासू मां पर छातीदाबन का उपचार करने पर उनका होश में आकर उन्हें स्वस्थ लगना : ‘एक रात चोपडा (जिला जलगांव, महाराष्ट्र) की जिज्ञासु श्रीमती निर्मला अलकरी की सासू मां मूर्च्छित हुई तथा उनकी सांस रुक गई । तब श्रीमती निर्मला अलकरी ने प्राथमिक उपचार वर्ग में सिखाए अनुसार उनकी सासू मां पर ‘छातीदाबन’ उपचार किए । उसके कुछ समय उपरांत उनकी सांस पुनः चलने लगी । दूसरे दिन सवेरे उन्हें चिकित्सालय ले जाकर उनका चिकित्सकीय परीक्षण किया गया, उस समय डॉक्टर ने कहा, ‘‘दादीजी को ‘कार्डियक अरेस्ट (हृदय का अकस्मात बंद हो जाना)’ हुआ था, तो आपने रात में इतने समय तक क्या किया ?’’ उसपर जिज्ञासु साधिका ने कहा, ‘‘प्राथमिक उपचार वर्ग में सिखाए अनुसार सासू मां पर ‘छातीदाबन’ उपचार करने के उपरांत उन्हें स्वस्थ लगा ।’’ यह सुनकर डॉक्टर ने उनकी प्रशंसा की ।’
– श्रीमती सुनीता व्यास, जळगांव, महाराष्ट्र. (वर्ष २०१९)
४ आ. अकस्मात छाती में पीडा होकर मूर्च्छित चालक पर तत्परता से छातीदाबन के प्राथमिक उपचार करने से चालक के प्राण बच जाना : ‘श्री. बंडू चेचरे रत्नागिरी में काम पर गए हुए थे । उनके साथ के एक चालक की छाती में अकस्मात पीडा होने लगी । उसके हाथ-पैर की उंगलियां नीली-काली पड गई तथा वह मूर्च्छित हो गया । उस समय वह किसी बात का प्रत्युत्तर नहीं दे रहा था तथा उसकी सांस भी चल नहीं रही थी । श्री. चेचरे ने उसपर छातीदाबन के उपचार किए, उससे वह चालक होश में आया । श्री. चेचरे अल्पशिक्षित हैं; परंतु प्राथमिक उपचार वर्ग में सिखाए अनुसार उपचार कर उस चालक के प्राण बचाना उन्हें संभव हुआ ।’
– श्रीमती समृद्धि सचिन सनगरे, रत्नागिरी, महाराष्ट्र. (२८.१.२०२२)’
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण (भाग १)
‘छातीदाबन’ ज्ञात होना क्यों आवश्यक है ?
‘वर्ष २०२२ में अमेरिका के टेक्सास में एक बॉक्सर ‘कार्डियक अरेस्ट’ होने से नीचे गिर गया । उसके साथ के बॉक्सरों को ‘कार्डियक रिससिटेशन’ (‘हृदय-पुनरुज्जीवन तंत्र’) ज्ञात था । उन्होंने उसपर उपचार कर उसके प्राण बचाए । अगस्त २०२३ में भारत में ५२ वर्ष का एक बैडमिंटन खिलाडी नीचे गिर गया; परंतु उसके साथी खिलाडियों को ‘ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए ?’, यही ज्ञात नहीं था । इससे ‘कार्डियक रिससिटेशन’ ज्ञात होने का महत्त्व ध्यान में आता है ।
कोल्स – कॉम्प्रेशन ओन्ली लाइफ सपोर्ट’ (COLS : Compression Only Life Support)’ यह ‘कार्डियक रिससिटेशन’ की प्रक्रिया सीखने के लिए स्थानीय चिकित्सा केंद्र अथवा सरकारी चिकित्सालय से संपर्क कर अधिक जानकारी लें । यह प्रक्रिया एक छद्म पुतले पर (‘डमी मैनेक्विन’ पर) सिखाई जाती है तथा उसका अभ्यास करवाया जाता है । यह विषय विशेषज्ञों से सीखकर हम लोगों के प्राण बचा सकते हैं !’
– डॉ. (श्रीमती) लिंदा बोरकर, फोंडा, गोवा. (२०.३.२०२४)