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१. श्री मयुरेश्वर, मोरगाव
अष्टविनायकों में से एक है मोरगांव के गणपति जिसे श्री मयुरेश्वर भी कहते हैं । महान गणेशभक्त मोरया गोसावी ने यहां पूजापाठ का व्रत लिया था । श्री मयुरेश्वर गणेश का, यह स्वयंभू और आदिस्थान है । प्रत्येक घर में गाई जानेवाली सुखकर्ता दुःखहर्ता यह आरती श्री समर्थ रामदास स्वामींजी को इसी मंदिर में स्फुरित हुई थी । निकट ही कर्हा नदी है । मंदिर पर अनेक प्रकार की कलाकृतियां की गईं हैं । श्री मयुरेश्वर की आंखों में और नाभि में हीरे जडे हैं । इस मंदिर के सर्व ओर पथरीला निर्माणकार्य प्राचीन काल से हैं । पुणे जिले के बारामती तालुका में मोरगांव है । मोरगांव, पुणे से लगभग ७० कि.मी. के अंतर पर है ।
२. श्री सिद्धीविनायक, सिद्धटेक
सिद्धटेक का श्री सिद्धीविनायक भीमा नदी पर बसे अष्टविनायकों का स्वयंभू स्थान है । इसका गर्भगृह की लंबाई-चौडाई काफी है । इसके साथ ही मंडप भी बडा और प्रशस्त है । पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर ने जीर्णोद्धार कर मंदिर बनाया था । मंदिर में पीतल का मखर है और उसके सर्व ओर चंद्र-सूर्य-गरूड की प्रतिमा हैं ।
मंदिर उत्तराभिमुख और गर्भगृह सुंदर और विशाल है । निकट ही भीमा नदी होने से इस नदी के परिसर में सुंदर घाट बनाए गए हैं । समीप ही विष्णु, शिवाई, महादेव आदि देवताओं के मंदिर हैं ।
अहमदनगर जिले की कर्जत तालुका में यह स्थान दौंड से ९९ कि.मी. के अंतर पर है । राशिन से १४२ कि.मी. के अंतर पर है ।
३. श्री बल्लाळेश्वर, पाली
इस गणपति को श्री बल्लाळेश्वर म्हणतात. बल्लाळेश्वर गणपति स्वयंभू स्थान है । मंदिर पूर्वाभिमुख और गणपति की सूंड बाईं ओर है । गणेश के मस्तक और सिर पर विशाल मंदिर है । मंदिर में बड घंटा है, जिसे चिमाजी अप्पा ने अर्पण किया है ।
यह स्थान रायगढ जिले के सुधागड तालुका में है । सुधागड भव्य किले की पार्श्वभूमि और अंबा नदी के निसर्गरम्य सान्निध्य में बल्लाळेश्वर का मंदिर स्थित है । पाली के निकट ही गरम पानी के झरने और झरे और सरसगड हा प्राचीन किला है ।
४. श्री वरद विनायक, महड
महड का वरदविनायक अष्टविनायकों में से स्वयंभू स्थान है और उसे मठ भी संबोधित करते हैं । श्री वरदविनायक का मंदिर सादा और ऊपर खपरैल पडी है । मंदिर पर घुमट है, जिस पर सुनहरा कलश है । कलश पर नाग की कलाकृति है ।
इस मंदिर के संदर्भ में एक कथा प्रसिद्ध है । एक भक्त को स्वप्न में मंदिर के पीछे जलकुंड के पानी में पडी मूर्ति दिखाई दी । और ढूंढने पर वह मिल गई । उसी मूर्ति की इस मंदिर में प्रतिष्ठापना की गई है । मंदिर में पत्थर से बना महिरप तथा गणेश की मूर्ति सिंहासनारूढ है । १७२५ में पेशवा काल में इस मंदिर का निर्माण किया गया था ।
रायगड जिले के महड, जो पुणे-मुंबई राष्ट्रीय महामार्ग पर खोपोली-खालापुर के बीच है ।
५. श्री चिंतामणि, थेऊर
थेऊर के कदंब वृक्ष के नीचे श्री गणेशजी का यह स्थान है । भक्तों की चिंता का हरण करनेवाले हैं, इसलिए इन्हें चिंतामणी कहते हैं । इस गणेश की सूंड बाईं ओर है । थेऊर की गणेशमूर्ति स्वयंभू है । मंदिर का महाद्वार उत्तराभिमुख है; परंतु मूर्ति पूर्वाभिमुख है । मंदिर का आवार बडा है और सभामंडप भी बडा है । मंदिर के तीनों ओर मुळा और मुठा, इन दो नदियों से घिरा हुआ है ।
पुणे के निकट स्थित चिंचवड में मोरया गोसावी नामक तपस्वी पुरूष ने इस स्थान पर गणपति की उपासना कर सिद्धि प्राप्त की थी । थेऊर में मंदिर मोरया गोसावी के सुपुत्र चिंतामणि देव ने बनाया था ।
थेऊर पुणे-सोलापुर महामार्ग को जोडनेवाले रास्ते पर, हवेली तालुका में है और पुणे से ३० कि.मी. के अंतर पर है ।
६. श्री गिरिजात्मज, लेण्याद्री
जुन्नर तालुका में जुन्नर लेण्या के समुदाय में और कुकडी नदी के परिसर में पहाडी पर लेेण्याद्री का श्री गिरिजात्मज ये गणेश का स्वयंभू स्थान है । श्री गणेशजी की प्रसन्न मूर्ति पत्थर पर पत्थर में उकेरी गई है । मंदिर परिसर की चट्टानों पर उकेर कर बनाई गई हैं । पेशवा काल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था । मंदिर में पत्थर के खंबे हैं । मंदिर में जाने के लिए पहाडी पर लगभग सुमारे ४०० सीढियां हैं ।
लेण्याद्री का श्री गिरिजात्मक जुन्नर से ७ कि.मी. के अंतर पर है, वह पुणे से लगभग ९७ कि.मी. के अंतर पर यह स्थान है ।
७. श्री विघ्नेश्वर, ओझर
यहां भगवान गणेश की मूर्ति लंबी-चौडी है और अष्टविनायकों में से सबसे धनवान गणपति के रूप में श्री विघ्नेश्वर जाने जाते हैं । उनके नेत्रों में माणिक और मस्तक पर हीरा है । ऐसे प्रसन्न और मंगल मूर्तिवाले श्री गणेश विघ्नों का हरण करते हैं, इसलिए इस गणपति को विघ्नेश्वर कहते हैं । यह गणेश की मूर्ति स्वयंभू है ।
मंदिर के चारों ओर तटबंदी निर्माण कार्य और मध्यभाग में गणेशजी का मंदिर है । कुकडी नदी के तट पर बना यह मंदिर एक जागृत स्थान है । ज्येष्ठ बाजीराव पेशवा के भाई चिमाजी अप्पा द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार किए जाने का उल्लेख इतिहास में मिलता है ।
जुन्नर तालुका में यह स्थान लेण्याद्री से १४ कि.मी. पर और पुणे से ८५ कि.मी. के अंतर पर है । छत्रपति शिवाजी महाराजजी का जन्मस्थान, शिवनेरी किला भी समीप ही है ।
८. श्री महागणपति, रांजणगाव
यह महागणपति का स्वयंभू स्थान है । पुणे-नगर मार्ग पर शिरूर तालुका में यह स्थान है । यह श्री महागणपति का स्थान इ.स. १० वीं शताब्दी का है । श्री गणेश के दस हाथ हैं ।
इस स्थान के संदर्भ में एक दंतकथा है, वह इसप्रकार है – त्रिपुरासुर नामक दैत्य को भगवान शंकर ने कुछ शक्तियों प्रदान की थीं । इन शक्तियों का दुरुपयोग कर वह स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक के लोगों को कष्ट देने लगा । अंत में एक समय ऐसा आ गया कि भगवान शंकर को श्री गणेश का नमन कर, त्रिपुरासुर का वध करवाना पडा । इसलिए इस गणेश को त्रिपुरारीवदे महागणपति भी कहा जाता है ।
यह श्री महागणपति का स्थान इ.स. १० वीं शताब्दी का है । पुणे-नगर मार्ग पर शिरूर तालुका में यह स्थान है ।
टिप्पणी : इसमें गणपतियों का क्रम भारतीय संस्कृतिकोष इस संदर्भग्रंथों में दिए अनुसार लिया है । समाज में अष्टविनायकों का क्रम अलग-अलग माना जाता है ।
सौजन्य : सनातन संस्था