‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर’ के दर्शन के समय आए अनुभव

सप्तमोक्षनगरियों में से एक एवं १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक श्रीक्षेत्र काशी का हिन्दू जीवनदर्शन में अनन्यसाधारण महत्त्व है । कुछ समय पूर्व ही वहां भगवान काशीविश्वनाथ के दर्शन लेने का सुयोग आया । इस निमित्त से ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर’के दर्शन लिए, उसका अनुभव बतानेवाला यह लेख…

ज्ञानवापी मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर एवं काशी विश्वनाथ कॉरिडोर

१. काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहल करने से ‘काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर’की निर्मिति हो गई । इससे काशी विश्वनाथ मंदिर से श्रद्धालु सीधे गंगादर्शन के लिए जा सकते हैं । इस प्रकल्प द्वारा एक प्रकार से काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णाेद्धार हुआ है । पहले काशीविश्वनाथ के दर्शन लेने के लिए संकरीली गलियों से जाना होता था । काशी-वाराणसी की पहचान ही ‘गलियों का नगर’ ऐसी हो गई थी । इन गलियों में संस्कृति का शोध-बोध लेने के लिए जगभर से विशेषज्ञ आ रहे थे । काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर प्रकल्प के कारण दर्शन के लिए आनेवाले श्रद्धालुओं का मार्ग सुलभ हो गया है । काशी समान पुराने नगर में ऐसा कायापलट होना, यह असंभव लग रहा था; परंतु कोरोना की यातायातबंदी एवं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं प्रधानमंत्री मोदी की राजकीय इच्छाशक्ति के प्रभाव से यह कायापलट साध्य हुआ, ऐसा कह सकते हैं ।

श्री. चेतन राजहंस

 

२. श्रद्धालुओं द्वारा पान की पीक से रंगे हुए मंदिर प्रांगण की दीवारों के कोने !

६ माह पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर प्रकल्प श्रद्धालुओं के सुपूर्द किया । संपूर्ण निर्माणकार्य भव्य-दिव्य है । रास्ते से मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड टालने हेतु सुव्यवस्थित कतारें बनाई हैं । इस सुव्यवस्थितता में दिखाई दिया कलंक अर्थात श्रद्धालुओं द्वारा खाए पान की पीक से रंगे प्रत्येक दीवार के कोने ! नया निर्माणकार्य-नई रंगी हुई दीवारों पर यह पान की पीक का लाल रंग मन में चिढ निर्माण कर रहा था । काशी में ‘बनारसी पान’ प्रसिद्ध है । पान खाकर सर्वत्र थूकना, यह वहां की कुप्रथा हो गई है । यह कुप्रथा इतनी चरमसीमा तक पहुंच गई है कि बनारसी पान खानेवाले यह भी भूल गए हैं कि ‘मंदिर पवित्रस्थल
है ।’ वास्तव में सार्वजनिक स्थानों पर न थूकना, यह लोकशिक्षा है; जबकि पवित्रस्थल पर न थूकना, धर्मशिक्षा है । यह दृश्य देखकर इन दोनों शिक्षा की कितनी आवश्यकता है ? यह ध्यान में आया ।

३. दर्शन कतारों में एक विचित्र अनुभव

दूसरी एक कतार विशेष दर्शन की थी । साधारणतः ३०० रुपयों का दर्शन पास लेकर उस कतार से जा सकते थे । दोनों कतारें एक-दूसरे के निकट ही थीं । प्रत्यक्ष में हमें केवल १५ मिनटों में दर्शन हो गए, जबकि हमारे पासवाली कतार जिसने पास लिए थे, उन्हें दर्शन के लिए बहुत समय लग रहा था । इस संदर्भ में जानकारी लेने के पश्चात ध्यान में आया कि सभी लोग आजकल शीघ्र दर्शन होने के उद्देश्य से ‘दर्शन पास’ निकालते हैं । इसलिए दर्शन पास की कतार ही बडी होती है, जबकि सामान्य दर्शन की कतार में नगण्य लोग होते हैं । यह एक विचित्र अनुभव था । वास्तव में ‘तीर्थक्षेत्र में देवदर्शन एक यात्रा है’, इस भाव से भगवान के दर्शन लेने चाहिए; परंतु यह धर्मशिक्षा न मिलने से पैसों के प्रभाव से देवदर्शन लेने की कुप्रथा मंदिरों में पनप रही है, यह देखकर मन द्रवित हुआ ।

४. ज्ञानवापी के दर्शन एवं श्रद्धालुओं की मुक्तेश्वर पर अटूट श्रद्धा

मंदिरों के दर्शन होने पर ज्ञानवापी की ओर (वर्तमान की ज्ञानवापी मस्जिद की ओर) मुंह करके खडे नंदी के दर्शन लेने के लिए गया, तो वहां का अनुभव कुछ भिन्न ही था । मंदिर की तुलना में नंदी के एवं नंदी के सामने ज्ञानवापी के दर्शन लेनेवालों की संख्या बडी थी । वहां तैनात रक्षक एक सेकंद दर्शन होने के उपरांत श्रद्धालुओं को आगे बढने के लिए कह रहे थे । वैसे अन्य स्थानों पर मंदिर में ऐसी स्थिति होती है; परंतु यहां वह नंदी के पास थी । इससे ध्यान में आया कि श्रद्धालुओं को काशी के मुक्तेश्वर के दर्शन की आस आज भी है । ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’के प्रवक्ता अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की याचिका के कारण ‘नंदी के सामने ज्ञानवापी में शिवलिंग है’, ऐसी श्रद्धा श्रद्धालुओं में निर्माण हुई है । इसलिए वहां श्रद्धालुओं की भीड बढ गई है । नंदीदर्शन लेते समय एक श्रद्धालु महिला नंदी के कान में कुछ कह रही थी । मैंने उस महिला से पूछा, ‘‘आपने नंदी के कान में क्या कहा ?’’ उसके उत्तर से मुझे आश्चर्य हुआ । वह बोली, ‘‘मैंने नंदी से प्रार्थना की कि ज्ञानवापी के मुक्तेश्वर, विश्वनाथ तक मेरा नमस्कार पहुंचा दें ।’’ ज्ञानवापी को (मस्जिद को) टालकर ‘काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर’ बना है, तब भी ज्ञानवापी के मुक्तेश्वर के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा है, इसका यह उदाहरण था !

– श्री. चेतन राजहंस (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था. (१८.८.२०२२)