पुरी (ओडिशा) – यहां के विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर की वार्षिक रथ यात्रा १ जुलाई अर्थात आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया से प्रारंभ होगी। जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत के अति प्राचीन एवं पवित्र चार धाम मंदिरों में से एक है। यह ८०० वर्ष से अधिक पुरातन है। यहां भगवान कृष्ण श्री जगन्नाथ के रूप में विराजमान हैं। उनके साथ उनके अग्रज बंधु बलराम और बहन सुभद्रा की भी यहां पूजा की जाती है।
Jagannath Puri Rath Yatra 2022 Date, Time & Live Streaming Online: Watch Live Telecast of Chariot Festival and Get Darshan of Lord Jagannath, Lord Balabhadra and Devi Subhadra at Festival Held in Odisha#JagannathRathYatra #RathaYatra https://t.co/txe1Z4023H
— LatestLY (@latestly) June 30, 2022
१. रथयात्रा के लिए भगवान श्री कृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथों का निर्माण किया गया है। शोभायात्रा प्रारंभ होने पर सामने बलराम का रथ, बीच में देवी सुभद्रा का रथ और पीछे भगवान श्री जगन्नाथ का रथ होता है।
२. बलराम के रथ को ‘तलध्वज’ कहा जाता है। उनके रथ का रंग लाल और हरा है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदालन’ या ‘पद्मरथ’ कहा जाता है, जिसका रंग काला या नीला होता है। भगवान श्री जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहा जाता है, जो लाल या पीले रंग का होता है।
३. जब तीन रथ यात्रा के लिए तैयार हो जाते हैं, तो ‘छर पहानरा’ नामक एक अनुष्ठान किया जाता है। पुरी के गजपति राजा यहां पालकी में आते हैं एवं इन तीनों रथों की पूजा करते हैं एवं उसके उपरांत सोने की झाड़ू से रथ मंडप और यात्रा मार्ग की स्वच्छता करते हैं।
४. ढोल बजाकर श्रद्धालु रथ खींचते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिन्हें रथ खींचने का अवसर मिलता है वे अनन्य भाग्यशाली होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
५. शोभायात्रा जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। वहां पहुंचने के उपरांत भगवान श्री जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा ७ दिनों तक विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान श्री जगन्नाथ के दर्शन को ‘आडप दर्शन’ कहा जाता है।
६. गुंडीचा मंदिर भगवान श्री जगन्नाथ की मौसी का घर है। इसे ‘गुंडिचा बाड़ी’ कहा जाता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर लौट जाते हैं। इस के साथ यात्रा संपन्न हो जाती है। जब वे लौटते हैं, तब सभी मूर्तियां रथ में ही रहती हैं। एकादशी के दूसरे दिन मंदिर के कपाट देवताओं के लिए खोले जाते हैं। इसके उपरांत नामजप के घोष के साथ स्नान कर विधिवत मूर्तियों की पुनर्स्थापना की जाती है।