Sri Sri Ravi Shankar On World Happiness Index : यह कहते हुए आश्चर्य होता है कि जिन देशों में संघर्ष चल रहा है वे खुशहाली में भारत से आगे हैं।

‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने ‘वैश्विक प्रसन्नता सूचकांक’ पर उठाया सवाल…

‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर (दाएं)

वाशिंगटन (यूएसए) – वैश्विक प्रसन्नता सूचकांक में भारत को ११८ वां स्थान दिया गया है। जिन देशों या क्षेत्रों में संघर्ष चल रहा है, उनमें कई देश या क्षेत्र भारत से कहीं आगे हैं। ऐसे में ये सूची बेहद अप्रसन्न करने वाली है, ऐसे शब्दों में ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने इस सूची पर सवाल उठाया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित सूचकांक में भारत को पाकिस्तान, युद्धग्रस्त यूक्रेन और फिलिस्तीन की तुलना में अधिक निराश और असंतुष्ट बताया गया है। ‘क्या ऐसे वैश्विक सूचकांक सचमुच तथ्यों पर आधारित हैं? यह सवाल उठाया जा रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि पिछले साल ७९ वें स्थान पर रहने वाले भूटान को इस साल कोई क्रमांक नहीं मिला।

इस समय अमेरिका के दौरे पर उपस्थित श्री श्री रविशंकर ने वॉशिंगटन में बातचीत के समय कई सवालों के जवाब दिए. उन्होंने भारत में मानवीय मूल्यों, जीवनशैली और समस्याओं पर भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अधिक संगठित होने का तर्क दिया गया है; लेकिन प्रसन्नता सूचकांक के लिए केवल संगठन ही पर्याप्त नहीं है। आज भारत की स्थिति बहुत अच्छी है. पिछले दशक में महत्वपूर्ण सुधार किये गये हैं।

भारत में मानवीय मूल्य बहुत ऊंचे हैं।

श्री श्री रविशंकर ने आगे कहा कि मैंने पूरी दुनिया की यात्रा की है और देखा है कि भारत में मानवीय मूल्य बहुत ऊंचे हैं।चाहें वह करुणा हो, या अतिथि के प्रति दृष्टिकोण, जिस तरह से लोग अपने संसाधनों को साझा करते हैं वह अविश्वसनीय है। भारत में अगर आपके परिवार को कुछ होता है तो पूरा गांव आपकी मदद के लिए आगे आएगा। इस प्रकार का सामाजिक बंधन देश में बहुत प्रचलित है। यानि देश में समस्याएं भी हैं; लेकिन पिछले दशक में कई सुधार हुए हैं। वस्तुतः न तो सुख और न ही दुःख का संबंध गरीबी से है।

संपादकीय भूमिका 

  • भारत सरकार वैसा कदम क्यों नहीं उठा रही जैसा कि संतों ने देखा और खुलकर इस पर आपत्ति उठायी ?
  • पश्चिमी देशों द्वारा प्रकाशित ऐसे सूचकांक नकली हैं और इसके द्वारा वे भारत जैसे देशों को घटिया साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत और अन्य देशों को अब इसका विरोध करना चाहिए।
  • खुशी की पश्चिमी परिभाषा वास्तव में भौतिक खुशी से संबंधित है। हिंदू धर्म के अनुसार साधना करने के बाद ही शुद्ध और पवित्र सुख की अनुभूति की जा सकती है। भौतिकवाद में लिपटे पाश्चात्य लोगों को इस सुख का तनिक भी आभास नहीं है, यह सत्य है।