‘बार काउन्सिल ऑफ इंडिया’ ने पोशाक के विषय में अभ्यास करने के लिए बनाई समिति !

अधिवक्ताओं के पोषाक के विरोध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खण्डपिठ में याचिका !

लक्ष्मणपुरी (लखनऊ, उत्तर प्रदेश) – इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खण्डपिठ में, यहां के अधिवक्ताओं द्वारा उनके पोषाक के सन्दर्भ में प्रविष्ट किए याचिका पर ‘बार कौन्सिल ऑफ इंडिया’ ने प्रतिज्ञा पत्र सादर किया है । इसमें कहा है कि, ‘पोशाक के सन्दर्भ में विचार करने के लिए, पांच सदस्यों की समिति का गठन किया है । वे इस विषय का ब्यौरा काउन्सिल को सौंपने वाली है ।’

अधिवक्ताओं का पोशाक भारतीय वातावरण के लिए अयोग्य !

स्थानिक अधिवक्ता अशोक पाण्डेय ने यह याचिका प्रविष्ठ की हैं । उन्होंने उसमें कहा है कि, “न्यायालय में उपस्थित रहने के लिए अधिवक्ताओं को काला कोट, गाऊन एवं बैंड धारण करने का नियम है । बार काउन्सिल द्वारा बनाया यह नियम ‘ऐड्वकट ऐक्ट’ का उल्लंघन करता है । बार कौन्सिल को पोशाक बनाने का अधिकार देते समय, वह पोशाक अधिवक्ताओं के लिए वातावरण के अनुरूप होना बताया गया था । मात्र बार कौन्सिल ने सम्पूर्ण देश में पूर्ण वर्ष के लिए एक ही पोशाक तैयार किया । भारत के कई क्षेत्रों में ९ महिना, तो कई बारह महीनों ग्रीष्म वातावरण रहता है ।”

अधिवक्ता द्वारा प्रयोग करनेवाले बैंड ईसाइयों का धार्मिक चिह्न !

अधिवक्ता अशोक पाण्डेय ने याचिका में आगे कहा है कि, “अधिवक्ता जो बैंड लगाते हैं, उसे ईसाई देशों में ‘प्रिचिंग बैंड’ कहा जाता है । ईसाई धर्मगुरु धार्मिक प्रवचन देते समय यह बैंड प्रयोग करते हैं । ये बैंड ईसाई धर्म का धार्मिक चिह्न हैं । इसलिए, वह अधिवक्ताओं को परिधान करने को बताना विधिसम्मत नहीं है ।”