परेच्छा एवं साधना के प्रति लगन होनेवाली ओडिशा की सुश्री (कु.) सुनीता छत्तर ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त !

सुश्री (कु.) सुनीता छत्तर का सम्मान करते पू. नीलेश सिंगबाळजी

     वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – १४ मार्च को २०२२ को हुए श्री काशी विश्वनाथ शृंगारोत्सव के पवित्र दिन काशी नगरी के (वाराणसी सेवाकेंद्र के) साधकों के लिए ‘भक्तिसत्संग में बताए प्रयत्न कर किस प्रकार लाभ हुआ’, इस विषय में हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी के सत्संग का आयोजन किया गया था । इस सत्संग में अनेक साधकों ने भक्तिसत्संग में बताए प्रयत्नों से कैसे लाभ हुआ, इस विषय में बताया । हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी ने सुश्री सुनीता छत्तर के प्रयत्नों के कारण उनमें हुए परिवर्तन एवं उनकी गुण-विशेषताएं बताईं । इसके साथ ही उनके द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर, जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की आनंदवार्ता सभी को दी ।

सुश्री (कु.) सुनीता छत्तर (आयु ४२ वर्ष) का मनोगत

     मनोगत व्यक्त करते हुए सुश्री सुनीता छत्तर ने कहा कि वह बचपन से ही भगवान शिव की उपासना करती थीं । संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना आरंभ करने पर उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की, ‘अब मैं आपकी ही हो गई हूं न ! इसलिए आप ही मुझे अपनी पूर्णकालिक सेवा करने के लिए सेवाकेंद्र में लेकर आइए ।’ उन्होंने कहा, ‘‘भोलेनाथ ने मेरी प्रार्थना स्वीकार ली और मुझे सेवाकेंद्र में रहकर साधना करने का अवसर मिला ।’’

पू. नीलेश सिंगबाळजी द्वारा बताई गई सुश्री (कु.) सुनीता छत्तर की गुण-विशेषताएं

१. सत्सेवा की लगन के कारण वाराणसी सेवाकेंद्र में सेवा के लिए आना

     ‘सुश्री (कु.) सुनीता छत्तर मूलत: ओडिशा की हैं । उनका परिवार पिताजी की नौकरी निमित्त दीर्घकाल से जमशेदपुर, झारखंड में रह रहा था । वे झारखंड में ही सनातन संस्था के संपर्क में आईं और फिर सत्सेवा की लगन के कारण वाराणसी सेवाकेंद्र में सेवा के लिए आईं । तीव्र शारीरिक कष्ट होते हुए भी उसपर विजय प्राप्त कर वे सेवाकेंद्र की विविध सेवाएं दायित्व लेकर करती हैं ।

२. परेच्छा से बर्ताव

अ. सुश्री (कु.) सुनीता छत्तर लगभग २ वर्ष सेवाकेंद्र में रहने के पश्चात अपनी इच्छा न होते हुए भी भारी अंतःकरण से पुन: घर गईं ।

आ. परिजनोेंं ने उनके विवाह के प्रयास आरंभ किए । उसे भी उन्होंने परेच्छा से स्वीकार लिया ।

३. व्यष्टि साधना नियमितता से करना

     घर जाने पर उन्होंने अपनी व्यष्टि साधना जारी रखी और पुन: सेवाकेंद्र में आने की लगन जागृत रखी । इस अवधि में वे नियमित रूप से सेवाकेंद्र के साधकों के संपर्क में रहीं ।

४. सेवाकेंद्र में आने के लिए मिला, इसलिए कृतज्ञता लगना

     एक वर्ष से अधिक समय घर रहने के पश्चात परिवारवालों की अनुमति से वे पुन: वाराणसी सेवाकेंद्र लौटीं । अब उनका कृतज्ञभाव बहुत बढ गया है कि उन्हें गुरुकृपा से पुन: सेवाकेंद्र में आने के लिए मिला ।

५. साधना से हुए परिवर्तन देखकर माता-पिता का सुश्री (कु.) सुनीता को घर ले जाने का निर्णय बदलना

     कुछ दिनों पूर्व उनके माता-पिता पुन: एक बार उन्हें घर ले जाने के लिए आए थे । उस समय सुश्री सुनीता ने उन्हें नम्रता से बताया, ‘मैं यहां आनंद में हूं । तब भी यदि आपकी इच्छा है, तो मैं घर आऊंगी ।’ सुश्री सुनीता में साधना के कारण हुआ परिवर्तन और उन्हें आनंदी देख माता-पिता का उन्हें घर ले जाने का निर्णय बदल गया । सुश्री सुनीता के लिए गुरुकृपा से मिली यह एक महत्त्वपूर्ण अनुभूति है ।